Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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यथार्थ में यह अखण्ड ज्ञानानन्द परम सुख का सहज स्वाभाविक धाराप्रवाहपन्थ है। स्वयं पं० कासलीवाल के शब्दों मेंअनुभौ अखण्ड रस धाराधर जग्यो जहाँ, तहाँ दुःख दावानल रंच न रहतु है। करम निवास भद्रवास घटा भानवे को, परम प्रचण्ड पनि मुनिजन कहतु है 1 याको रस पिये फिर काहू की न इच्छा होय, यह सुखदानी सब जग में महतु है।
आनन्द को धाम अभिराम यह सन्तन को,
याही के धरैया पद सासतो लहतु है। (ज्ञानदर्पण, पद्य १२७) इतना ही नहीं, जो भी अर्हन्त सिद्ध परमात्मा हुए हैं वे इस
निज शुद्धात्मानुभव के प्रसाद से ही हुए हैं। कवि के शब्दों मेंपंच परम गुरु जे भए, जे होंगे जगमांहि,
ते अनुभौ परसाद तैं थामें धोखो नाहिं ।
गुण अनन्त के रस सबै अनुभौ रस के मांहि, यातै अनुभौ खो और दूसरी
१५३५० "ज्ञानदर्पण" के अन्त में रचना का प्रयोजन प्रकाशित करते हुए पं० कासलीवाल जी कहते हैं
आपा लखने को यहै, दरपणज्ञान गिरंथ,
तथा
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श्री जिनधुनि अनुसार है, लखत लहे शिवपंथ । परम पदारथ लाभ हवै, आनंद करत अपार; दरपणज्ञान गिरंथ यह कियो दीप अविकार ।।
( ज्ञानदर्पण, १६४, १९५ ) वास्तव में यह चिदानन्द चैतन्य विज्ञान घन ही ज्ञान की मूर्ति है। ज्ञानी इसके सिवाय अन्य किसी की उपासना नहीं करता है। स्वयं उनके शब्दों में
ज्ञानमंई मूरति में ज्ञानी ही सुथिर रहे, करे नहीं फिरि कहुँ आन की उपासना | चिदानन्द चेतन चिमत्कार चिन्ह जाको, ताको उर जान्यो मेरी मरम की वासना । १६