Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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सवैया
साधि निज नैगम ते वर्तमान भाव करि, संग्रह स्वरूप ते स्वरूप को गहीजिये । गुणगुणीभेद व्यवहार ते सरूप साधि, अलख अराधिके अखंड रस पीजिये ।। होय के सरल ऋजुसूत्र' ते स्वभाव लीजे, 'अहं' अस्मि" शब्द साधि स्वसुख करीजिये । अभिरूद आप में अनूप पद आप कीजे:
एवंभूत" आप पद आप में लखीजिये । । ७० || स्वपद मनन करि मानिये स्वरूप आप, भाव श्रुत धारिके स्वरूप को संभारिये । अवधि स्वरूप लखे पाइये अवधिज्ञान, मनपरजे ते मनज्ञान मांहि धारिये ।। केवल अखंड ज्ञान लोकालोक के प्रमाण, सो ही है स्वभाव निज निहचे विचारिये । प्रत्यक्ष परोक्ष परमान ते स्वरूप को, सदा सुख साधि दुख-द्वंद को निवारिये । ।७१ ।। आप निज नाम ते अनेक पाप दूरि होत, सोहं की संभार शिव सार सुख देतु है। आकृति स्वरूप की सो थापना स्वरूप की है, ज्ञानी उर ध्याय निज आनंद को लेतु है । दरवि के देखे दुख-द्वंद सो विलाय जाय, याही को विचार भवसिंधु ताको सेतु" है । केवल अखंड ज्ञान भाव निज आप को है, लोकालोक भासिवे को निरमल खेतु है । । ७२ ।।
१ सूक्ष्म ऋजुसूत्र नय, २ सोऽहं. ३ समभिरूद नय, ४ एवंभूत नय, ५ सम्हालिये, आत्मानुभव कीजिए, ६ मनः पर्यय ज्ञान से ७ पुल, ८ क्षेत्र (केवलज्ञान )
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