Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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आप परिणाम को नाहिं धारे। सहज का भाव है खेद जामें नहीं, आप आनंद को ना संभारे।। कहे गुरु बैन जो चैन की चाहि है, राग अरु दोषको क्यों न टारे। त्यागि पर थान अमलान आपा' गहे, ज्ञानपद पाय शिव में सिधारे ।।२।। मूठि कपि' की कहो कौन ने पकरी, पाडली को जल कौन पीये। कांच के महल में श्वान कहा दूसरो, कूप में सिंह गरजे नहीं वे ।। जेवरी' में कहूं नाग नहीं दरसि हैं, नलिनि सूवा न पको कहीं वे । भूलिके भाव को तुरत जो मेटि दे, पावके अमर पद सदा जीवे ।।३।। गमन की बात यह दूरि ह्वै तो कहूं, दुख हवै तो कहूं सुखी थावो । खेद वै तो कहूं नेक विश्राम ल्यो, अलाभ वै तो कहूं लाभ पावो11 बंध ह्वै तो कहूं मुकति को पद लहो, आप में कौन है द्वैत दावो"। सहज को भाव वो सदा जो वणि रह्यो, ताहि लखि और को मति उपावोर ।।४।। देव चिदरूप अनूप अनादि है, १ अपनापन. २ बन्दर की मूठ. ३ मृगमरीचिका, ४ कुत्ता, ५ रस्सी. ६ तोता पकड़ने की पुंगेरी. ७ तोता, ८ प्राप्त कर, ६ हो जाओ, १० विश्राम लो. ११ मिन्नत: करो. १२ उपाय मत करो
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