Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust

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Page 198
________________ अर्थ-एक दृष्टि से देखने पर जीव निजस्थान से त्रिकाल व्यापक है। अतः मैं इस लोक से भिन्न भली प्रकार अपने भिन्न सहज भाव में रहता हूं। छद्मस्थ सम्यग्दृष्टि जीवका ज्ञान, दर्शनादि, इन्दियमन सहित और इन्द्रियमन अतीतका किंचित् विवरण दोहा बुद्धि अबुद्धि करि दुधा, बढ़े छदमस्थी धार। इन को नास परमात्म बन, भव जलनिधि के पार।।६। अर्थ-छद्मस्थ जीव में बुद्धि-अबुद्धि दो प्रकार से परिणामों की धारा प्रवाहित होती है। भव-समुद्र के पार जाने के लिए तथा परमात्मा होने के लिये इन को नष्ट कर। सोरठा जे अबुद्धिरूप परिनाम, ते देखे जाने नहीं। तिन को सर्व सावरन काम, कैसे देखे जाने वापुरे।।१०।। अर्थ-जो अबुद्धिरूप परिणाम हैं, वे देखते-जानते नहीं हैं। उन का सर्व कार्य आवरण सहित होने से ये विचारे स्वयं कैसे देख, जान सकते हैं? पुनः जु बुद्धरूपी धार, सो जथाजोग जाने देखे सदा। ते क्षयोपशम आकार, तातें देखे जाने आप ही।।११।। १७१

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