Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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दोहा अंचल अखसित शाननय, आनंदवन गुगनाम । अनुभौ ताको कीजिये, शिवपद वै अभिराम ।।७६ ।।
सवैया सहज परकास' परदेश का वणि रह्या, देश ही देश में गुण अनंता। सत अरु वस्तु बल अगुरु आदि दे. सकल गुण मांहि लखि भेद संता ।। ज्ञान की जगनि में जोति की झलक है, ताहि लखि और तजि तंत-मंता । धारि निज ज्ञान अनुभौ करो सासतो, पाय पद सही ह्वै मुकति कंता । १७७ ।। सहज ही ज्ञान में ज्ञेय दरसाय है, वेदि है आप आनंद भारी। लोक के सिखर परि सासते राजि हैं, सिद्ध्व भगवान आनंदकारी।। अमित अदभुत अति अमल गुण को लिये, शुद्ध निज आप सब करम टारी। देह में देव परमातमा सिद्ध सों, तास अनुभौ करो दुखहारी।।७८ ।। सहज आनंद का कंद निज आप है, ताप भव-रहित पद आप बेवे । आप के भाव का आप करता सही,
१ प्रकाश. २ प्रदेश, ३ त्याग कर, ४ तन्त्र-मन्त्र, ५ स्वामी. ६ उत्पन्न करता है
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