Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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कहूं नहीं जाय दिढ राखे गुणवृन्द को। रसिया सुर सरस रस के जे रसिया हैं, रस ही सों भर्यो देखे देव चिदानंद को ।।५।। चक्षु-अचक्षु गुण दरशन आतमा को, प्रत्यक्ष ही दीसे ताहि कैसे के निवारिये'। कुमति-कुश्रुत ये हू सारे जग जीवन के, ज्ञेय ज्ञान करे कहु कैसे ताहि हारिये। इन्द्रिन की क्रिया ताको परेरकर आतमा है, मन-वच-काय वरतावे गो विचारिये। सब ही को स्वामी अरु नामी जग मांहि यो ही, मोक्ष जगि यो ही कहो ताहि कैसे हारिये।।५६ ।। क्रोध--मान-माया--लोभ चारों को करैया यो. विषैरस भोगी यो ही भव को भरैया है। यो ज्ञान कछु धारि अंतर सु आतमा हदै, यो ही परमातमा वै शिव को वरैया है।। यो ही गुणथान५ अरु मारगणा मांहि यो ही, शुभाशुभ शुद्धपयोग को धरैया है। ज्ञानी औ अज्ञानी होय वरते सो ही है, यो ही ऊँच-नीच विधि सब को करैया है।।६० ।। यो ही है असंजमी सुसंजम को धारी यो ही, यो ही अणुव्रत-महाव्रत को धरैया है। यो नट कला खेले नाटक बणावे यो ही, यो ही बहु सांग लाय सांग को करैया है ।। यो ही देव नारक जु तिरजंच मानव द्वे, यो ही गति चारि मांहि चिर को फिरैया है। १ दूर करें, २ प्रेरक, ३ भरने वाला, ४ वरण करने वाला, ८ स्वांग, नाटक, तभाशा. ६ भ्रमण करने वाला,
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