Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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गुणरूप, गुणवस्तु पर्यायरूप, पर्यायवस्तु सब वस्तुत्व ते हैं। संसार में वस्तु न होय, तो नाम' पदार्थ न होय । इहां कोई प्रश्न करे है
शून्य है नाम, शून्य भया वस्तु कहा कहोगे? ताको समाधान
एक शून्य आकाश है सो सामान्यविशेष लिये क्षेत्री वस्तु हैं। आकाश क्षेत्र में सब रहे हैं। दूजो भेद यह जु अभावमात्र में सामान्य अभाव, विशेष अभाव, सामान्यविशेष तो है, परि अभाव मात्र है। सामान्यविशेष. सामान्यविशेष वस्तु में जैसे-तैसे अभाव में कहिए। अभाव को शून्यता तो है, परि नाम सामान्यविशेष ते अभाव को भयो है। तातें सब सिद्धि सामान्यविशेष ते होय है। वस्तु के नाममात्र आवत ही सामान्यविशेषता ते अभाव ऐसा नाम पाया। जो नास्ति तैं सिद्धि न होती, तो नास्तिस्वभाव स्वभावन में न होता । सत्ता अस्ति इति सत् सामान्यसत् नास्ति अभाव सत्, विशेष सत्ता का कहना भया । जो नास्ति का अभाव न होता, तो सत्ता में अस्तिभाव न होता, तातै अभाव ही ते भाव भया है। वस्तु के प्रकाश को वस्तुत्व करे, वस्तु जो है नास्ति नाहीं। वस्तु को ज्ञेय कहिए, ज्ञायक कहिए, ज्ञान कहिए सब प्रकाश एक चैतन्य वस्तु का है। वस्तुत्व पर्याय करि वस्तुत्व परिणामी है; परवस्तु करि अपरिणामी है। जीवन वस्तु करि जीव रूप है; जड परवस्तु करि जीवरूप नाहीं है। चेतनमूरति चेतनावस्तु करि है, जडमूरति नाहीं, तातैं अमूरति है। अपने प्रदेश की विवक्षा करि सप्रदेशी है; परप्रदेश नाहीं, तातैं अप्रदेशी है । वस्तु एक की अपेक्षा एक है, गुणवस्तु करि अनेक है। आपने प्रदेश की अपेक्षा क्षेत्री है; पर वस्तु उपजने का क्षेत्र नाहीं। अपनी
१ संज्ञा, २ कैसे. ३ क्षेत्रीय, प्रदेश को लिए हुए