Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
View full book text
________________
ताहि तू विचारि और काहे पर ध्यावत है, परम प्रधान सदा सुद्ध चिदरूप है ।। अचल अखंड अज अमर अरूपी महा, अतुल अमल एक तिहुंलोक भूप है। आन धंधर त्याग देखि चेतना निधान आप, ज्ञानादि अनंत गुण व्यकत सरूप है । । २१ ।। कह्यो बार-बार सहज सरूप तेरो.. सुखरासी सुद्ध अविनासी वणि रह्यो है। दरसन ज्ञान अमलान है अनूप महा, परम प्रधान भगवान देव को है ।। सदा सुखशान केरो नायक निधानगुण, अतुल अखंड ज्ञानी ज्ञान मांहि गह्यो है। और तजि भाव यो लखाव करि निहचे में, स्वसंवेद भूमि यो हमारो हम लह्यो' है ।। २२ ।।
दोहा
परम अनंत अखंड अज, अविनासी सुखधाम,
.
प्रभु वंदत पद निज लहे गुण अनूप अभिराम ।। २३ ।। श्रीजिनवर पद वंदिके, ध्यान सार अविकार ।
भवि हित काज करतु हो, धरि भवि है भवपार । । २४ । ।
सवैया
सिद्धथान मांहि जेते सिद्ध भये ते ते सही. आतमीक ध्यान ते अनूप ते कहाये हैं। धारिके धरमध्यान सुर नर भले भये,
१ क्यों. २ धन्धा (विषय- कषाय का व्यापार), ३ प्रकट गुणों का प्रकाशित ४ बन रहा है, सहज, ५ का, ६ स्वात्मानुभूति की भूमिका में जो हूँ वही प्राप्त किया है।
१२१