Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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सदा सुखकंद महा गुणवृंद धारी हैं। स्वसंवेदज्ञान कर लीजिये लखाय ताहि, अनुभौ अनूपम द्वै दोष दुखहारी हैं ।। आप परिणाम ही तैं परम स्वपद भेंटि लहिये अमल पद आप अधिकारी हैं । सहज ही भावना तैं शिव सादि सिद्ध हूजे, यहे काज कीजे महा यह सीख सारी हैं । । ४६ ।। सुद्ध चिद ज्योति दुति दीपति' विराजमान, परम अखंड पद धरें अविनासी है। चिदानंद भूप की प्रदेशन में राजधानी, परम अनूप परमातमा विलासी है ।। चेतन सरूप महा मुकति तिया को अंग ताके संग सेती सो ही सदा सुखरासी है। निहचे स्वपद देखि श्रीगुरु बतावतु है,
अहो भवि जो तो निज आनंद उल्हासी है । । ५० ।।
गुण परजायनर द्रये ते रवि कह्यो, द्रव्य द्रयगुण परजायन को व्यापे हैं। द्रव्य परजाय द्रयः मिले आप सुख, होय हैं अनंत ऐसे केवली आलापे' हैं ।। अर्थक्रियाकारक ये द्रये ते सधि आवे, द्रव्य ही गुण परजै" को द्रव्यत्व ही थापे हैं । ऐसी है अनंत महा महिमा द्रवत्व ही,
आतमा द्रवत्व करि आप ही में आये हैं । । ५१ । । सामान्य-- विशेष रूप वस्तु ही में वस्तुत्व,
सो ही द्रव्य लिये सदा सामान्यविशेष हैं ।
१ दीप्तिमान, प्रकाशमान २ पर्यायों के ढलने से ४ द्रव्य, ५ द्रवित ६ कहते हैं, ७ पर्याय को
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