Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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भये हैं अनंत सिद्ध शिवतिया कंत हैं।।४२।। एक गुण सत्ता सो तो दरवि को लक्षण है, . सो ही गुण सत्ता ते अनंत भेद लया है। एक सत वीरजि यो सामान्यविशेष रूप, परिजाय भेद ते अनंत भेद भया है ।। ऐसी भेद भावना ते पावना अलख की है, अलख लखावने ते भवरोग गया है। भव अपहार' ही तैं शिवथान मांहि जाय, परम अखंडित अनंत सिद्ध थयारे है।।४३।। चरित चखैया' ज्ञान स्वपद लखैया महा सम्यक्त्व प्रधान गुण सबै शुद्ध करे है। दरसन देखि निरविकलप रस पिये, परम अतीन्द्री सुख भोग भाव धरे है।। महिमानिधान भगवान शिवथान माहि, सासतो सदैव रहि भव में न परे है। ऐसो निज रूप यो अनूप आप वणि रह्यो, गहे जेही जीव काज तिन ही को सरे है।।४४ ।। स्वपद लखावे निज अनुभौ को पावे शिव-थान मांहि जावे; नहीं आवे भव-जाल में। ज्ञानसुख गहे निज आनंद को लहे अविनासी होय रहे एक चिदज्योति ख्याल में।।। ऐसो अविकारी गुणधारी देखि आप ही है आपने सुभाव करि आप देखि हाल में। तिहुंकाल मांहि संत जेतेक अनंत कहे, ते-ते सब तिरे एक शुद्ध आप चाल में ।।४५।। १ अभाव, २ हुआ है, ३ चखने वाला, आस्वादक, ४ आत्मानुभव करने वाला ५ अतीन्द्रिय, इन्द्रियातीत
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