Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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सवैया गुण परिजाय को सुभाव धरि भयो द्रव्य, गुण परिजाय भये द्रव्य के सुभाव ते। परिजाय भाव करि व्यय, उतपाद भये. ध्रुव सदा भयो सो तो द्रव्य के प्रभाव ते।। व्यय, उतपाद, ध्रुव सत्ता ही में साधि आये, सत्ता द्रव्य लक्षण है सहज लखाव ते । याही अनुक्रम परिपाटी जानि लीजियतु, पावे सुखधाम अभिराम निज दाव ते।।४।। सहज अनंतगुण परम धरम सौ है, ताही को धरैया एक राजतदरव है। गुण को प्रभाव निज परिजाय' शकति ते, व्यापियो जितेक गुण आप के सरव है।। परम अनंतगुण परिजंत साधक ऐसे. . जाने ज्ञानवान जाके कछु न गरव' है। याही परकार उपयोग मांहि सार पद, लखि-लखि लीजे जगि बड़ो यो परवर्ष है।।४१।। एक परदेश में अनंतगुण राजतु हैं, एक गुण में शकति परजै अनंत हैं। वहै परिजाय काज करे गुण गुण ही को, ऐसो राज‘पावे सदा रहे जयवंत है।। सुख को निधान यो विधान है अतीव भारी, अविकारी देव जाको लखे सब संत है। याही परकार शिव सारपद साधि-साधि, । पर्याय२ शक्ति के द्वारा, ३ सब, ४ पर्यन्त, ५ अहंकार, ६ पर्व, धर्माराधन का समय ७ पर्याय, ८ वहीं
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