Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
View full book text
________________
वेद न वरण लोकरीति न बताइये। धारणा न ध्यान कहुं व्यवहारीज्ञान कह्यो, विकलप' नाहिं कोउ साधन न गाइये। पुन्य-पाप-ताप तेउ तही नहीं मास हैं, चिदानन्दरूप की सुरीति ठहराइये। ऐसी सुद्धसत्ता की समाधिभूमि कही जामें, सहज सुभाव को अनंतसुख पाइये ।।१७७।। विषैसुख भोग नाहीं रोग न विजोग जहां. सोग" को समाज जहां कहिये न रंच है। क्रोध मान माया लोभ कोउ नहीं कहे जहां, दान शील तप को न दीसे परपंच है। करम कलेस लेस लचो नहीं परे जहां, महा भवदुःख जहां नहीं आगि अंच' है। अचल अकंप अति अमित अनंत तेज,' सहज सरूप सुद्ध सत्ता ही को संच है ।।१७८|| थापन न थापना उथापना न दीसतु है, राग-द्वेष दोउ नहीं पाप पुन्य अंस है। जोग न जुगति जहां भुगति न भावना है, आवना न जावना न करम को वंस" है। नहीं हारि-जीति जहां कोऊ विपरीति नाहि. सुभ न असुभ नहीं निंदा-परसंस" है। स्वसंवेदज्ञान में न आन कोऊ भासतु है, ऐसो बनि रह्यो एक चिदानंद हंस है।।१७६ ।। करण करावण को भेद न बताइयतु,
१ विकल्प, र वे भी, ३ वियोग, ४ शोक, ५ विस्तार.६ अंश मात्र, अल्प.७ अग्नि-ताप, ८ साँचा, ६ उत्थापन करना, निर्मूल करना, ५० वंश. कुल, ११ प्रशंसा १२ शुद्धात्मा
११०