Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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है घर में निधि जाचत है पर, भूलि यह नहीं जात कही है।। तू भगवान फिरे कहूं आन', बिना प्रभु जाणि कुवाणि गही है। भोरि भई सुभई वह भोरि, अबै लखि 'दीप' सरूप सही है।।१०।। लगे ही लगे पर मांहि पगे, ये सगे लखि के निज वोर न आये। लोक के नाथ प्रभु तु आथ, किये पर साथ कहा सुख पाये ।। देखो निहारि के आप संभारि, अनूपम वे गुण क्यों विसराये। अहो गुणवान अब धूरो ज्ञान, लहा सुख सो भगवान बताये ।।११।। बानर मूंठि न आपही खोले, कांच के मंदिर स्वान भुसाये। भाडली' को लखि दौरत हैं मृग, नैंक" नहीं जल देत दिखाये।। सुक" हू नलिनी दिढतर पकरी, भूलि त आपही आप फंदाये। बिनु ज्ञान दुखी भव माहि भये, सो ही सुखी जिहि आप लखाये।।१२।। वारि लखे घन हू वरषे, निजपक्ष में चन्द करे परकासा। रितु" को लग्जिने जनरायफले जाने समो पसु ह ग्रहे वासा।। सीप हू स्वाति नक्षत लखे सुपरे जल बूंद ह्दै मुक्तविकासा । पूज्य पदारथ यो समोर ना लखे, यों जग मैं है अजब तमासा ।।१३।। देव चिदानन्द है सुखकन्द, लिये गुणवृन्द सदा अविनासी। आनन्दधाम महा अभिराम, तिहूं जग स्वामि सुभाव विकासी।। हैं अमलान प्रभु भगवान, नहीं पर आन है ज्ञान प्रकासी। सरूप विचारि लखे यह सन्त, अनूप अनादि है ब्रह्म विलासी । (१४ ।। नहीं भवभाव विभाव जहां, परमातम एक सदा सुखरासी। वेद पुराण बतावत हैं जिहि, ध्यावत हैं मुनि होय उदासी ।
१ अन्य स्थान पर, २ खोटी रीति, ३ सम्यक, ४ प्रारम्भ से, ५ अपूर्ण, अधूरा. ६ बन्दर, ७ मुट्ठी, ८ कुत्ता. ६ भौंकते हैं. १० मृगमरीचिका, ११ थोड़ा. १२ तोता, १३ फंसे हुए. १४ जल, १५ बादल, १६ शुक्ल पक्ष, ५७ ऋतु, मौसम, १८ वन-पंक्ति, १६ विकसित होती. २० भली पड़ती है, २१ समान, २२ अन्य
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