Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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दोहा सकल विरोध विहंडनी स्यादवादजुत जानि। कुनयवादमतखंडनी, नमों देवि जिनवानि ।।१६२।
अथ ग्रंथ-प्रशंसा
सवैया अलख अराधन अखंड जोति साधनसरूप की समाधि को लखाव दरसावे है। याही के प्रसाद भव्य ज्ञानरस पीवतु है. सिद्ध सो अनूप पद सहज लखावे है। परम पदारथ के पायवे को कारण है, भवदधितारण जहाज गुरु गावे है। अचल अनंत सुख-रतन दिखायवे को, ज्ञानदरपण ग्रंथ भव्य उर भावे है।।१६३ ।।
दोहा आपा लखचे. को यहै, दरपणज्ञान गिरंथ। श्रीजिनधुनि अनुसार है, लखत लहे शिवपंथ । १६४ ।। परम पदारथ लाभ है, आनंद करत अपार । दरपणज्ञान गिरंथ यह, कियो 'दीप' अविकार ।।१६५ ।। श्रीजिनवर जयवंत है, सकल संत सुखदाय । सही परम पदको करे, है त्रिभुवन के राय ।।१६६ ।। इति श्री शाह दीपचन्द साधर्मी कृत ज्ञानदर्पण ग्रन्थ
समाप्त।
१ समाप्त करने वाली. खण्डित करने वाली, २ जिनवाणी
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