Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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कहिये कहां लों याकी महिमा अपार रूप, चिदरूप देखें निजगुण सुमस्तु . १.!! पर को अभाव जो अतीत काल हो आयो, अनागत काल में हू देखिए अभाव है। भाव नहीं जहां ताके कहिए अभाव तहां, ताही को अभाव तातें कीजे यो लखाव है। अभाव अभाव यात सकति बखानियतु, चिदानंद देव जाको सांचो दरसाव है। याही के लखैया लक्ष्य लक्षण को जानतु हैं, याके परसाद अविनासी भाव भाव हैं ||१५६ ।। काल जो अतीत जामें जोई भाव बै तो जहां, सो ही भाव भाव मांहि सदाकाल देखिये। याः भाव भाय' यह सकति सरूप. की है, महिमा अपार महा अतुल विसेखिये। चिद सत्ता भाव को लखाव सो है दरव में, वह भाव गुणनि में सहज ही पेखिये। यातें भावाभाव को सुभाव पावें तेई धन्य, चिदानंद देव के लखैया जेई लेखिये ।।१६० ।। स्वयं सिद्धि करता है निज परणामनि को, ज्ञान भाव करता स्वभाव ही में कह्यो है। सहज सुभाव आप करे करतार यातें, करता सकति सुख जिनदेव लह्यो है। निहचे विचारिए सरूप ऐसो आप ही को, याके बिनु जाने भवजाल मांहि बह्यो है करता अनंत गुण परिणाम केरो होय, १ जो ही. २ भावभाव शक्ति, ३ यह, ४ भावाभाव शक्ति. ५ कर्तृशक्ति, ६ का
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