Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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सहज सुभाव के अनन्त गुण गाइये। याके उर जाने तत्त्व आतमीक पाइयतु, लोकालोक ज्ञेय जहां ज्ञान में लखाइये ।।१५५|| दरसन ज्ञान सुख वीरज अनंतधारी, सता अधिकारी ज्योति अघल अनंत है। चेतना विलास परकास परदेशनि' में, वसत अखंड लखे देव भगवंत है। याही में अनूप पद पदवी विराजतु है, महिमा अपार याकी भाषत महंत है। सहज लखाव सदा एक चिदरूप भाव, सकति अनंती जाने वंदे सब संत हैं ||१५६ ।। परजाय भाव को अभाव समै--समै होय, जल की तरंग जैसे लीन होय जल में । याही परकार करे उत्तपाद-व्यय धरे, भाव को अभाव यहे सकतिः अचल में। सहज सरूप पद कारण बखानी महा, वीतराग देव भेद लह्यो निज थल में। महिमा अपार याकी रुचि किए पार भव, लहे भवि जीव सुख पावे ज्ञान कल में ।।१५७।। अनागत काल परजाय भाव भए नाहिं, तेई समै–समै होय सुख को करतु हैं। याही तैं अभाव भाव सकति बखानियतु, अचल अखंड जोति भाव को भरतु हैं। लच्छनि में लक्षण लखाइयतु याको महा, याके भाव अविनासी रस को धरतु हैं। १ प्रदेशों में, २ इसी में. ३ भावशक्ति, ४ इसी प्रकार. ५ अभावशक्ति. ६ सुख, ७ भविष्यत्काल. ८ अभावभाव शक्ति
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