Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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ज्ञानी ज्ञान मांहि लखि थिर होय रह्यो है।।१६१। आतम सुभाव करे करम कहावे सो ही, सुख को निधान परमाण पाइयतु है। लक्षण सुभाव गुण पोखत' पदारथ को, ग्रंथ ग्रंथमाहि जस जाको गाइयतु है।। करम सकति' काज आतम सुधारतु है, चिदानंद चिन्ह महा यों बताइयतु है। लक्षन तैं लक्ष्य सिद्धि कही जिनआगम में, यात भाव भावना को भाव भाइयतु है।।१६२ ।। आप परिणाम करि आप पद साधतु है. साधन सरूप सो ही करण बरवानिये। आप भाव भए आप भव ही की सिद्धि होत, और भाव भए भावसिद्धि नहीं मानिये। करण सकति करे एक में अनेक सिद्धि, एक है अनेक मांहि नीके उर आनिये। निहचे अभेद किए भेद नाहीं भासतु है, ज्ञान के सुभाव करि ताको रूप जानिये।।१६३ ।। आपने सुभाव आप आपन को दए आप, आप ले अखंड रसधारा बरसावे है। संप्रदान सकति अनंत सुखदायक है, चिदानंद देव के प्रभाव को बढ़ावे है। याही में अनंत भेद नानावत भासतु है, अनुभौ सुरसस्वाद सहज दिखावे है। पावत सकति ऐसी पावन परम होय, सारो जग जस जाको जगि-जगि गावे है।।१६४ ।। १ पोषण करता है, २ कर्म शक्ति. ३ करण शक्ति, ४ सम्प्रदान शक्ति,
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