Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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दरसन मंत्री परमातम राजा को कैसै सेवै है सो
कहिए हैपरमातमराजा की प्रजा अनन्तगुण शक्ति परजाय सकल राजधानी दरसन देखवे ते दरसि भई, तब साक्षात भई। दरसन न देखता, तब अदरसि भये ज्ञान कहां ते जानता? देखनेजानने में न आवे, तब ज्ञेय वस्तु न होय; तब सब परमातम का पद न रहता। तारौं दरसन गुण देखि-देखि सकल सर्वस्व को साक्षात् करे है | ज्ञान को देखे है, तब ज्ञान अदरसि न होय है, तब ज्ञान का अभाव न भये, सद्भाव ज्ञान का रहे है । वीर्य को देखे है, तब वीर्य अद्रश्य न होय है, तब ज्ञान वीर्य को जाने है; तब साक्षात् होय है। ऐसे अनंतगुण परमातमा के राखवे को दरसन कारण है। दरसन निराकार रूप नित्य है सो निराकार शक्ति जनावे है। सामान्य सत् निर्विकल्पपने अवलोके है। तामें निरविकल्प सेवा दरसन की है। जो ऐसी निरविकल्प सेवा दरसन न करता, तो निरविकल्प सत् न रहता। साक्षात्कार निरविकल्पता दरसन ने दिखाई है। निरविकल्प ही वस्तु का सर्वस्व है। प्रथम सामान्य भाव होइ, तो विशेष होइ । सामान्य भाव बिना विशेष न होय । सामान्य विशेष को लिये है; तातें दरसन निरविकल्प प्रगट करे है, तहां विशेष की भी सिद्धि होय है। काहे ते? सामान्य भये विशेष नांव पावे है, तातै वस्तु की सिद्धि दरसन करे है। ऐसी सेवा करे है। दरसन सब गुणन में बहोत बारीकी को धरे है। काहे ते विशेष में बहु पावे । दरसन सामान्य अवलोकन मात्र में सब सिद्धि तो है, परि याको अंग अतिसूक्ष्मरूप, निरविकल्प दसा रूप, निराकाररूप, अक्रियरूप, अमूरतिरूप, अखंडितरूप तामें गम्य जब होइ, तब सब सिद्धि १ बिना 'देखे, २ अत्यन्त. बहुत, ३ परन्तु
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