Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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का प्रवेश न होने देहै । परपरिणाम चोर कैसा है सो कहिये हैं
स्वरूप रूप परिणाम के द्रोही हैं, पररूप को धुके' है, परपद का निवास पाय आतम निधि चोरवे को प्रवीन हैं। रागादि रूप अवस्था ते अनाकुल सुख का संबंध जिन के कबहू न मया है, पररस के रसिया हैं । भववासी जीव को अतिविषम हैं, तोऊ प्रिय लागे हैं | बंधन के करता हैं; पराधीन हैं. विनासीक हैं। अनादि-सादि पारणामिकता को लिये हैं. परंपस्या अन्नादि हैं। ऐसे परपरणाम का प्रवेश परणाम-कोटवाल न होने देहै। विस परणाम कोटवाल ने परमातम राजा के दस की प्रजा की संभार समय-समय करी है। विस के बड़ा जतन है। परमातम राजा ने एक स्वरूपरूप अनन्तगुणन की रखवाली का ओहदा सौंप्या है। हमारे देस की सब सुद्धता तातें है। तब ऐसा जानि गुणप्रजा की समय-समय और राजा की समय-समय संभार करे है । सब गुण के घर के प्रवेश करि विनके निधान को साबूत करि प्रतक्ष विनका प्रभाव प्रगट करे है। या कोटवाल में ऐसी शक्ति है जो नेक वक्र होय, तो राजा का सब पद असुद्ध होय; शक्ति मंद होय संसारी की नाई । तातै परणाम कोटवाल सकल पद को सुद्ध राखे है। परणाम के आधीन राजपद है, ताते परमरक्षाकारी कोटवाल है। परणाम कोटवाल में ऐसी शक्ति है सो सब राज को, राजा की गुण प्रजा को, मंत्री को, फौजदार को अपनी शक्ति मिलाय विद्यमान राखे है। सब अपणी महिमा को याते धरे हैं। या करि विनका सर्वस्व है. ऐसा परणाम कोटवाल परमातम पद का कारण है. ताते यामें अपार शक्ति
१ झुकते हैं, २ चुराने के लिए, ३ चतुर, ४ उस. ५ पद, ६ उनके, ७ प्रमाणित कर, ८ तरह, समान, ६ उनका. १० इसमें, ११ अनुपम
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