Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
View full book text
________________
महा दुखदानी भव थिति के निदानी' जातैं. होय ज्ञान हानी ऐसे भाव चमैयार हैं। अति ही विकारी पापपुंज अधिकारी सदा, ऐसे राग-दोष भाव तिन के दमैयार हैं। दया - दान -- पूजा - सील संजमादि सुभभाव, एहू पर जाने नाहिं इन में उन्हैया हैं। सुभासुम रीति त्यागि जागे हैं सरूप माहिं, तई ज्ञानवान चिदानंद के रमैया' हैं । । २५ ।। देहपरिमाण गति गतिमांहि भयो जीव, गुप्त है रह्यो तोऊ धारे गुणवृंद है। करम कलंक तोऊ जानें न करम कोऊ, रागदोष धारें हू विसुद्ध निरफंद है। धारत सरीर तोऊ' आतमा अमूरतीक, सुध पक्ष गहे एक सदा सुखकंद है। निहचे विचार देख्यो सिद्ध सो सरूप 'दीप', मेरे तो अनादि को सरूप चिदानंद है । । २६ ।। व्यवहारपक्ष परजाय धरि आयो तोऊ, सुद्धनै विचारे निज पर में न फंसा है। ज्ञान उपयोग जाकी सकति मिटाई नाहिं, कहा भयो जो तू भववासी होय वसा है। द्वैत को विचार किए भासत संयोग पर, देखे पद एक पर ओर नहिं धसा है ।
निचे बिचारके सरूप में संभारि देखी, मेरी तो अनादि ही की चिदानंद दसा है । । २७ ।।
१ जाँच करने वाले, २ शमन करने वाले, दबाने वाले, ३ दमन करने वाले ४ उमंग रखने वाले ५ रमण करने वाले ६ तब भी, ७ शुद्धनय का पक्ष ग्रहण करने पर ८ शुद्धनय (आत्मानुभव) से १ तरफ १० झुका, प्रविष्ट
६१