Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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व्रत तप सील संजमादि उपवास क्रिया, द्रव्य भावरूप दोउ बंध को करतु हैं । करम जनित तातैं करम को हेतु महा बंध ही को करें मोक्षपंथ को हरतु हैं । आप जैसो होइ ताको आप के समान करे. बंध ही को मूल यातैं बंध को भरतु हैं । याको परंपरा अति मानि करतूति करे, तेई महा मूढ़ भाव - सिंधु में परतु' हैं | |८६ | । कारण समान काज' सब हो बखानतु हैं, यातैं परक्रिया मांहि परकी धरणि' है। याही ते अनादि द्रव्य क्रिया तो अनेक करी, कछु नाहिं सिद्धि भई ज्ञान की परणि है। करम को वंस जामें ज्ञान को न अंश कोउ, बढ़े भववास मोक्ष - पंथ की हरणि है। यातें परक्रिया उपादेय तो न कही जाय, तातैं सदा काल एक बंध की दरणि है । ८७ ।। पराधीन बाधात बंध की करैया महा,
सदा विनासीक जाको ऐसो ही सुभाव है। बंध उदै रस फल जीमें च्या एक रूप, सुभ वा असुभ क्रिया एक ही लखावे है । करम की चेतना में कैसे मोक्षपंथ सधे. माने तेई मूढ हिए जिन के विभाव है। जैसे बीज होय ताको तैसो फल लागे जहां,
यह जग मांहि जिन-आगम कहाव है | |ce !!
१ पड़ते हैं. गिरते हैं, २ कार्य, ३ घरने वाली ४ परिणति ५ हरने वाली ६ ढलने वाली ७ जिसमें घारों ही
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