Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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अथ बहिरात्मा-कथन लिख्यते
विराजतु हैं, पोये हैं ।
मणि के मुकुट महा सिर पै हिए मांहि हार नाना रतनके अलंकार और अंग-अंग में अनूप बने, सुन्दर सरूप दुति देखे काम गोये हैं। सुरतरु कुंजनि में सुरसंघ साथ देखें, आवत प्रतीति ऐसी पुन्य बीज बोये हैं। करम के ठाठ ऐसे कीने हैं अनेक बार, ज्ञान बिनु भाये" यों अनादि ही के सोये हैं । ।११८ || सुरपरजायनि में भोग भाव भए जहां,
सुख रंग राचो रति कीनी परभाव में ।
रंभा हाव-भावति को निति निवार देखें, प्रेम परतीति भई रमणिरमाव में। देखि देखि देवनि के पुंज आय पाँय परे", हिय में हरष धरें लगिनि लगाव में । पर परपंचनि में संचिके करम भारी, संसारी भयो फिरे जु पर के उपाव में ||११६ | ।
छप्पय
अजर अमर अविलिप्त, तप्त भव भय जहँ नाहीं । देव अनंत अपार, ज्ञानधारक जग मांही । जिहिं वाइक जग सार, जानि जे भवदधि तरि हैं। गुर निरगंथ महंत, संत सेवा सब करि हैं।
१ पिरोये हुए, २ डुबोये हुए, सराबोर, ३ देवताओं की टोली ४ भावना भाए. ५ रचा हुआ. रंगा हुआ, तल्लीन, ६ देवी ७ प्रणाम करते हैं, ८ पर-प्रपंथ विषय-भोग, ६ जिस प्रकार, १० वाचक, विद्वान्
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