Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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अनुमी अखंड रस उर में न आयो जो तो, सिवपद पावे नाहिं पररस भीने हैं। आप अवलोकनि में आप सुख पाइयतु, पर उरझार होय परपद चीने' हैं। तातें तिहुंलोकपूज्य अनुभौ है आतमा को, अनुभवी अनुभौ अनूप रस लीने हैं||१३०।।
अडिल्ल परम धरम के धाम जिनेश्वर जानिये। शिवपद प्रापति हेतु आप उर आनिये।। निहचे अरु व्योहार जिथारथ पाइये। स्याद्वाद करि सिद्धिपंथ शिव गाइये।।१३१।।
सवैया
लक्षन के लखे बिनु लक्ष्य नहिं पाइयतु, लक्ष्य बिन लखे कैसे लक्षण लखातु है। यातें लक्ष्य लक्षिन के जानिबे को जिनवानी, कीजिये अभ्यास ज्ञान परकास पातु है। ऐसो उपदेस लखि कीनो है अनेक बार, तोहू होनहार मांहि सिद्धि ठहरातु है। निहचे प्रमाण किए उद्यम विलाय जाय, दोउ नै विरोध कहु किम यो मिटातु है।।१३२ ।। मानि यह निहचे को साधक व्योहार कीजे, साधकके बाधे कहुं निहचो न पाइये। जद्यपि है होनहार तद्यपि है चिन्ह वाको, १ पहचान लिए, २ लिए हुए. ३ यथार्थ, वास्तविक, ४ प्राप्त करता, ५ कहो. ६ किस प्रकार. ७ दूर होता है, मिटता है, ८ बाधक होने पर. ६ निश्चय, परमार्थ
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