Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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अबै देव गुरु जिनवाणी को संजोग जुर्यो', सिवपंथ साधो करि आतमविचार सों ।।१२३।। परपद आपो मानि जग में अनादि भन्यो, पायो न सरूप जो अनादि सुखथान है। राग-दोष भावनि में भवथिति बांधी महा, बिन भेदज्ञान भूल्यो गुण को निधान है। अचल अखंड ज्ञानजोति को प्रकाश लिये, घट ही में देव चिदानन्द भगवान है। कहे 'दीपचन्द' आय इंद हू से पाँय परे, अनुभौ प्रसाद पद पावे निरवान है।।१२४ ।।
दोहा चिदलच्छन पहचान ते, उपजे आनन्द आप। अनुभौ सहज स्वरूप को. जामें पुन्य न पाप ।।१२५ ।।
कवित्त
जग में अनादि यति जेते पद धारि आए. तेऊ सब तिरे लहि अनुभौ निधान को। याके बिन पाए मुनि हू सो पद निंदित है, यह सुख-सिंधु दरसावे भगवान को। नारकी हू निकसि जे तीर्थंकरपद पावे, अनुभौ प्रभाव पहुंचावे निरवान को। अनुभौ अनंत गुण के धरे याही को. तिहुंलोक पूजे हित जानि गुणवान को । १२६ ।।
१ मिला है, २ साधना कर, ३ परिम्रमण किया, ४ इन्द्र के समान भी. ५ वे भी. ६ धाराप्रवाह ज्ञान
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