Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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परमारथ पंथ वा सम्यक व्योहार नाम,
जाको उर जानि जानि जानि भाइयतु' हैं । १०६ ।। आगम अनेक भेद अवगाहे रुचि सेती. लेखिके रहसि जामें महा मन दीजिये । अरथ विचारि एक उपादेय आप जाने, पर भिन्न मानि मानि मानिके तजीजिये । जामें सो तत्त्व होय जथावत जाने जाहि, लखि परमारथ को ज्ञान-रस पीजिये, गुनि परमारथ यों भेदभाव भाइयतु. चिदानन्द देव को सरूप लखि लीजिये । १५० ।। सुद्ध उपयोगी देखि गुण में मगन होय, जाको नाम सुनि हिए हरखर धरीजिये । मेरो पद मोहि में लखायो जिहि संग सेती, सो ही जाकी उरि भाय भावना करीजिये । साधरमी जन जामें प्रापति सरूप की है, ताको संग कीजे और परिहरि दीजिये ! यतिजन सेवा वह जान्यो भेद सम्यक को, कहे 'दीप' याको लखि सदा सुख कीजिये । 1999 || मिथ्यामती मूढ़ जे सरूप को न भेद जाने, पर ही को माने जाकी मानि नहीं कीजिये ! महा सिवमारग को भेद कहुं पावे नाहिं, मिथ्यामग लागे ताको कैसे करि धीजिये । अनुभौ सरूप लहि आप में मगन है है, तिन ही के संग ज्ञान सुधारस पीजिये ।
१ भावना माते हैं. २ रहस्य ३ हर्ष उल्लास, ४ लगे हुए, प्राप्त कर
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विश्वास दिलायें, ६
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