Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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क्रिया सुम कीजे पै न ममता धरीजे कहूं, हूजे न विवादी यामें पूज्य भावना ही है। कीजे पुन्यकाज सो समाज सारो पर ही को, चेतना की चाहि नाहिं तधे याके याही है। याको हेय जानि उपादेय में मगन हूजै, मिटै है विरोध वाद' रहे न कहा ही है। आठों जाम आतम की रुचि में अनंत सुख, कहे 'दीपचंद' ज्ञान भाव हू तहां ही है।।६।।
इति बहिरात्माकथन
अथ पंचपरमेष्ठी कथन
दोहा सकल एक परमातमा, गुण ज्ञानादिक सार। सुध परणति परजाय है, श्रीजिनवर अविकार ।।६011
छियालीस गुण-कथन
सवैया विमल सरीर जाको रुधिर वरण' खीर', स्वेद तन नाहिं आदि संस्थानधारी है। संहनन आदि अति सुन्दर सरूप लिए. परम सुगंध देह महा सुखकारी है। धरे सुभ लक्षण को हित-मित वैन जाके, बल है अनंत प्रभु दोष दुखहारी है।
१ वाद विवाद, २ वर्ण, रग. ३ क्षीर. दूध, ४ पसीना, ५ शरीर, ६ नजवृषभनाराच संहनन,
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