Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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आतम दरब जाको कारण सदैव महा, ऐसो निज चेतन में भाव अविकारी है। ताहि की धरणहारी जीवन सकति ऐसी, तासों जीव जीवे तिहुंलोक गुणधारी है। द्रव्य-गुण-पराजय एतो जीवदसा सब, इन ही में वस्तु जीव जीवनता सारी है। सब को अधार सार महिमा अपार जाको, जीवन सकति 'दीप' जीव सुखकारी है ।।५।। दरसन-गुण जामें दरसि सकति' महा, ज्ञायक सकति ज्ञान मांही सुखदानी है। अतुल प्रताप लिए प्रभुत्व सकति साहे. सकति अमूरति सो अरूपी बखानी है। इत्यादि सकति जे हैं जीव की अनंत रूप, तिन्हें दिढ़ राखिवे को अति अधिकानी है। वीरज सकतिर 'दीप' भाए निज भावन में, पावन परम जातें होई सिवथानी है।।६०11 तिहुंकाल विमल अमूरति अखंडित है, आकरती जाकी परजाय कही व्यंजनी। अचल अबाधित अनूप सदा सासती है, परदेस' असंख्यात धरे है अभंजनी। विकलप भाव को लखाव कोउ दीसे नाहिं, जाकी भवि जीवन के रुचि भव-भंजनी । महा निरलेप निराकार है सरूप जाको, दरसि सकति ऐसी परम निरंजनी । ६१ ।।
१ दृशि शक्ति, २ वीर्य शक्ति. ३ आकृति, आकार, ४ प्रदेश, ५ अविनाशी, ६ निर्लेप, कर्म-मल से रहित
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