Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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सूच्छम सुभाव को प्रभाव सदा ऐसो जिहिं, सबै गुण सूच्छम सुभाव करि लीने हैं। वीरज सुभाव को प्रभाव भयो मेलो तिहि, अपने अनंत बल सब ही को दीने है। परम प्रताप सब गुण में अनंत ऐसे, जाने अनुभवी जे अखंड रस भीने' हैं। अचल अनूप 'दीप' सकति प्रभुत्व' ऐसी, उर में लखावे ते सुभाव सुध कीने है।।६५।। अगुरुलघुत्व को विभूति है महत महा, सब गुण व्यापिके सुभाव एक रूप है। ऐसे गुण गुणनि में विभूति बखानियतु, जानियतु एक रूप अचल अनूप है। निज-निज लक्षण की सकति है न्यारी-न्यारी, जिहि विसतारी जामें भाव चिदरूप है। कहे “दीपचंद सुख कहूं में सकति ऐसी, विभूति लखे ते जीव जगत को भूप है।।६६ ।। सकल पदारथ की अवलोकनि सामान्य, करे है सहज सुधाधार की चरसनी । जामें भेद-भाव को लखाव कोउ दीसे नाहिं, देखे चिदजोति शिवपद की परसनी | सकति अनंती जेती जाही में दिखाई देत, महिमा अनंत महा भासत सुरसनी । कहे 'दीपचंद' सुख कंद में प्रधान-रूप, सकति बनी है ऐसी सरव दरसनी ।।६७ ।।
१ सराबोर. २ प्रभुत्वशक्ति, ३ अगुरुलघुत्व शक्ति, ४ निरन्तर टलने वाली चरस के समान, ५ स्पर्श करने वाली, ६ जिस में,७ उत्तम. स्वाद याली, ८ सर्वदार्शित्वशक्ति
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