Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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पैंड-पैंड परि नया स्वच्छंद दसा धरि विषय-कषाय सों व्यापव्यापकता पर-परणति असुद्धता करि संसार वारा' तिस मोह ने कराया है। इन संसारी जीवन को मोह की महिमा शरीरादि अनित्य माने, मोह ते परम प्रेम करि सुख-दुख माने है। महामोह की कल्पना ऐसी है । अनंतज्ञान के धणी को भुलाय राख्या है। ऐसा प्रतिकूली बैरी को सम्यक्त फौजदार न आवने दे। परमातम राजा की आण ऐसी मनावे है। वेदनीय कर्म करि संसारी साता-असाता पावे है। तहां सुख-दुख वेदे है। हरप- सोक मानि-मानि महा परसि भये स्वरूप अनुभव न करि सके । परास्वाद में रस माने है। ऐसे प्रतिकूली को न आवने देहै। नामकर्म की करी' नाना विचित्रता है। कोई देवनाम, नरनाम, नारकनाम, तिरजंचनाम, जात्यादिनाम, सरीरादिनाम अनेक नाम हैं, ते धरें हैं। संसारी ते सूक्ष्मगुण को न पावे हैं। ऐसे प्रतिकूली का प्रवेश न होने देहै-सम्यक्त फौजदार। ऊंच-नीच गोत्रकर्म के उदय ते ऊंच-नीच गोत्र संसारी धरे है। तातै अगुरुलघु गुण को न पावे है। ऐसे कर्म का प्रवेश न होने देहै। आयुकर्म च्यारि प्रकार, अंतराय पांच प्रकार इनको न आवने देहै-सम्यक्त फौजदार । 'मावकर्म, नोकर्म का प्रवेश न होय, ऐसा तेज सम्यक्त का है। परमातमा राजा की राजधानी यथावत जैसी है तैसी राखे है। परमातमा राजा के जेते गुण हैं तेते सुद्ध या सम्यक्त ते हैं, तातैं याको ऐसा काम सौंप्या है।
-आगे परिणाम कोटवाल का वर्णन कीजिये है
परिणाम कोटवाल, मिथ्यात परिणाम--परपरिणाम चोर
५ वाला. २ की हुई, ३ जितन, ४ उतने. ५ कोतवाल,
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