Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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मेरो है अनूप चिदरूप रूप मोहि माहि. जाके लखे मिटे चिर महा भवबाधना।। जाके दरसाव में विभाव सो बिलाय जाय, जाको रुचि किए सध अलख अराधना ।। जाकी परतीति रीति प्रीति करि पाई तातें, त्यागी जगजाल जेती सकल उपासना' ।। अगम अपार सुखदाई सब संतन को, ऐसी 'दीप' साधे ज्ञानी सांची ज्ञानसाधना ।।१३।। आप अवलोके विना कछु नाही सिद्धि होत, कोटिक कलेशनि की करो बहु करणी। क्रिया पर किए परभावन की प्रापति है: मोक्षपंथ सधे नाहीं बंध ही की धरणी।। ज्ञान उपयोग में अखंड चिदानंद जाकी, सांची ज्ञान भावना है मोक्ष अनुसरणी।। अगम अपार गुणधारी को सुभाव साधे, 'दीप' संत जीवन की दशा भवतरणी।।१४।। वेदत सरूप पद परम अनूप लहे, गहे चिदभाव महा आप निज थान है।। द्रव्य को प्रभाव अरु गुण को लखाव जामें, परजाय को उपावे ऐसो गुणवान है।। व्यय, उतपाद, ध्रुव सधे सब जाही करि, ताहि ते उदोत लक्ष्य लक्षनको ज्ञान है। महिमा महत जाकी कहाँ लों कहत कवि, स्वसंवेदभाव 'दीप' सुख को निधान है ।।१५।। १ मुद्रित पाठ है-उपाधना. २ करोड़ों. ३ क्रियाकाण्ड, ४ शरीरामित पुदगल की क्रिया बुद्धि पूर्वक करने से राग-द्वेष की उत्पत्ति होती है, ५ जिसके द्वारा, ६ उससे, ७ झान प्रकाश