Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
View full book text
________________
परम पदारथ को देखे परमारथ है, स्वारथ सरूप को अनूप साधि लीजिए।। अविनाही एक सुखासी सोहे घट ही में, ताके अनुभौ' सुभाव सुधारस पीजिये।। देव भगवान ज्ञानकला को निधान जाको, उर में अनाया सदाकाल थिर कीजिए।। ज्ञान ही में गम्य जाको प्रभुत्व अनंत रूप, वेदि निज भावना में आनंद लहीजिए ||४|| दशा है हमारी एक चेतना विराजमान, आन परभावन सों तिहु काल न्यारी है। अपनो सरूप शुद्ध अनुभवे आठों जाम, आनंद को धाम गुणग्राम विसतारी है।। परम प्रभाव परिपूरन अखंड ज्ञान, सुख को निधान लखि आन रीति डारी है। ऐसी अवगाढ़ गाढ़ आई परतीति जाके, कहे 'दीपचंद' ताको वंदना हमारी है। 1५11 परम अखंड ब्रहमंड विधि लखे न्यारी, करम विहंड करे महा भवबाधिनी। अमल अरूपी अज चेतन चमतकार, समैसार साधे अति अलख अराधिनी।। गुण को निधान अमलान भगवान जाको, प्रतच्छर दिखावे जाकी महिमा अबाधिनी। एक चिदरूप को अरूप अनुसरे ऐसी, आतमीक रुचि है अनंतसुखसाधिनी ।।६।। १ अनुमय प्रत्यक्षगम्य, र उपयोग लगा कर, ३ जानन में आने वाली, ४ अनुभव कर ५ प्राप्त कीजिए. ६ तीनों (काल). ७ गुणों का समूह, ८ अन्य दूसरी. ६ विश्व, १० चकनाचूर, ११ त्रिकाली ध्रुव शुद्धात्मा, १२ प्रत्यक्ष