Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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निज घर की प्रगटी | ज्ञान का जुगप्त भाव परणति ने वेद्या, तब एकता रस उपज्या। परणति ज्ञान में न होती, तो अनन्तशक्तिरूप ज्ञान न परणवता, तब महिमा ज्ञान की न रहती। तातें ज्ञान निज परणति धरि विलास ज्ञान करे है। ज्ञान में जानपणा था सो परणति परणई, तब जानपणा वेद्या, तब ज्ञानरस प्रगट्या ज्ञान में अतीन्द्रियभोग परणतितिया के संजोग ते है. तातें ज्ञान अपणी नारी का विलास करे है। तहां आनंद पुत्र होय है। ऐसे अनंत गुणपुरुष सब अपणी गुणपरणति का विलास करे है। सब गुण का सरवस्व परणति सब गुण की है। वेद्यवेदकतारूप रस सब परणति ते सब में प्रगटे है। प्रश्न
एक गुण सब गुण के रूप होइ वरते है। तहां सब गुण की परणति ने सबका विलास कियाक न किया? ताका समाधान
गुणरूप परणति जिस गुण की है तिस ही की है; और की नाहीं। विनमें जो परजाय द्वार करि व्यापकता की है, तिस परजायरूप अपने अंग में परणवे है, तिस विलास को करे है; तातें अपने अंग गुण के हैं. ते-ते विलसे हैं। गुण निज पुरुष जो है ताको विलसे है। जो यो न होय, तो और गुण की परणति और गुण रूप होइ, तब महादूषण लागे; तातें अपनी परिणति को गुण जो है सो ही विलसे है। यहां अनन्तसुख विलास एक-एक गुणपरणतितिया जोग ते करे है। सब याही प्रकार विलास करे है। अनन्त महिमा को धरे है, ऐसे परमातम राजा के राज में सब गुणपुरुष नारी अनन्त विलास को करि सुखी
१ युगपत् २ किया या नहीं किया? ३ उनमें, ४ अन्य. दूसरे, ५ योग के द्वारा
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