Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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होय । विरला जन दरसन में गम्य करे, संसार अवस्था में विशेष कहे सब जाने । सामान्य मात्रा में कोई विरला पावे, विशेष में बहु पावे । सो यह कथन संसार विविक्षा' को है | दरसन की सिद्धि सामान्य जनायवे को कह्यो है । जो कोई अपने प्रभु समीप जाय है सो प्रथम देखे है, तब सब क्रिया होय है। प्रभु को न देखे है, तो कछु न होय; तैसे परमातम राजा के देखे सब सिद्धि है। जैसे निरविकल्प रोति कारे दरसन सेवेताको निरविकल्प आनंद फल होय है ।
आगे ज्ञानमंत्री परमातम राजा को कैसे सेवे है?
परमातम राजा के जो विभव है, ताको विशेष जामें अनंतगुण की अनंतशक्ति, अनंतपर्याय, एक-एक गुण की परजाय में अनंतनृत्य, नृत्य में अनंत थटर, थट में अनंतकला, कला में अनंतरूप, रूप में अनंतरूप, रूप में अनंतसत्ता, सत्ता में अनंतभाव, भाव में अनंतरस, रस में अनंतप्रभाव, प्रभाव में अनंत विभव, विभव में अनंतरिद्धि, रिद्धि में अनंत अतीन्द्रिय, अनाकुल, अनोपम, अखंडित, स्वाधीन, अविनासी आनंद, ये सब भाव ज्ञान जाने, तब व्यक्त होय, तब नांव पावे। ज्ञान न जाने, तब वेदवो न होय, तब हूवा ही न हूवा । तातैं ज्ञान अनन्त गुणपर्याय की समुदाय को प्रगट करे है। तब परमातमा को पद प्रगट करे है। तब परमातमा को पद प्रगट होय है। ज्ञान जाने परमातमा ने, तब सर्वस्व परमातमा को प्रगटे । ज्ञान त्रिकालवर्ती पदार्थ जाने या शक्ति ज्ञान में है। स्वसंवेदन ज्ञान, तातैं ज्ञान सकल विशेष भाव स्वपर का, लखावा वालो छै सो ज्ञान सकल ने प्रगट करे । सो परमातम राजा को प्रभुत्व ज्ञान प्रगट करे
१ विवक्षा कथन की अपेक्षा, २ घाट ३ अनुपम
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