Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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आगे द्रव्य नर अपनी परिणति तिया' का संभोग करे है सो कहिये है
द्रव्य आप द्रवत ते नाम पाया है । द्रव्य जब द्रवे है, तब गुण- परजाय की सिद्धि है। द्रव्य अपने अन्वयी गुण को द्रवे व्यापे है, क्रमवर्ती परजाय को द्रवे है, तातैं द्रव्य है। द्रवे बिना परिणति न होती, परणये बिना गुण न होते, तब द्रव्य (का) अभाव होता, तातैं द्रवना द्रव्य को सिद्ध करे है। द्रवत गुण द्रवरूप परिणति तैं है । जो द्रवरूप न परणवता, तो द्रव न होता, तब द्रव्य न होता । तातैं परिणति द्रवत को कारण है । तातैं परिणतिनारी ते द्रवत पुरुष की सिद्धि है। द्रवत अपनी परिणतिनारी का अग विलसे है। परिणतिनारी द्रवत पुरुष को विलसे है।
द्रवत सब गुण में है, सो सब गुण के द्रवत के सब अंग एक बार में परिणतितिया विलसे है जब सब गुण के द्रवत में विलसी, तब सब गुण के द्रवत आधार सब गुण थे। ऐसे द्रवत के विशेष विलास की करणहारी भई परिणति मिले द्रवत की सिद्धि, तातैं परिणतिनारी का विलास द्रवत को अनंतगुण का आधार पद को थापे है ।
प्रश्न
द्रवत परिणति सब गुण में पैठी । इहां द्रवत ही का विलास काहे को कहो ? सब गुण कहो, सब गुण की परिणति कहो ।
ताको समाधान
सब गुण में तो द्रवत भया, द्रवत की परिणति द्रवत की साथि भई । तातैं द्रवत की परिणति द्रवत में कहिये: अनन्तगुण
१ पत्नी, नारी, २ ढलते हुए द्रवते हुए ३ प्रविष्ट, बैठी हुई,
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