Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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वह अपनी ज्ञान परिणति सों मिलि भोग करे है, ताका वरणन कीजिये है
ज्ञान अनंतशक्ति स्वसंवेदरूप धरे, लोकालोक का जाननहार, अनंतगुण को जाने | सत् परजाय, सत् वीर्य, सत् प्रमेय, सत् अनंत गुण के अनंत सत् जाने। अनंत महिमा निधि ज्ञानरूप ज्ञान ज्ञानपरिणति नारी ज्ञान सों मिलि परिणति ज्ञान का अंग–अंग मिलन ते ज्ञान का रसास्वाद परिणति ज्ञान की ले ज्ञान परिणतिका विलास करे । जाननरूप उपयोग चेतना ज्ञान की परिणति प्रगट करे है । यो परिणति-नारी का निसास न होता, तो ज्ञान अपने जानन लक्षण को यथारथ न राखि सकता। जैसे अभव्य के ज्ञान है, ज्ञान परिणति नहीं, तातै ज्ञान यथारथ न कहिये । ज्ञान ज्ञानपरिणति को धरे, तब यथारथ नांवर पावै । तातै ज्ञानपरिणति ज्ञान यथारथ प्रभुत्व राखे है। जैसे भली नारी अपने पुरुष के घर का जमाव करे है. तैसे ज्ञान स्व व सुख जुक्त घर ज्ञानपरिणति करे है। ज्ञानपरिणति ज्ञान के अंग को वेदि-वेदि विलसे है । ज्ञान के संगि सदा ज्ञान परिणति नारी है। अनंत शक्ति जुगपत सब ज्ञेय जानन की ज्ञान में तो है, परि जब ताई ज्ञान के परिणति नारी सों भेंट न भई, तब ताई अनंत शक्ति दबी रही। यह अनंत शक्ति परिणति-नारी ने खोली है। जैसे विशल्या ने लक्ष्मन की शक्ति खोली, तैसे ज्ञानपरिणति नारी ने ज्ञान की शक्ति खोली। ऐसे ज्ञान अपनी परिणतिनारी का विलास तैं अपने प्रभुत्व का स्वामी भया । परिणति ने जब ज्ञान वेद्या वेदता भोग अतेन्द्री भया. तब ज्ञानपरिणति का संभोग ज्ञानपुरुष किया, तब दोऊ के संभोग योग से आनंद नाम पुत्र भया, तब सब गुण–परिवार ज्ञान में
१ धनी, स्वामी. २ नाम. ३ प्राप्त करता है. ४ किन्तु, ५ जा तक
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