Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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आगे दरसन साधु कहिये है
दरसन दरसन परणति करि आप को आप साधे है। और के देखने करि विन को प्रगट करणा साधे आप सब को देखे । दरशन कर आतम देखे, तातैं सर्वदर्शीपणा को आतम में साधे | अपने देखन भाव करि जानना ज्ञान का होई । काहेते ?? यह सामान्यविशेषरूप सब पदार्थ का निर्विकल्पसत्ता अवलोकन दरसन करे, सो ज्ञान में तो निर्विकल्प सत्ता अवलोकन नहीं, तातैं यह दरसन का भाव है। जो सामान्य न होय, तो विशेष ज्ञान न होय; सब अदृशि' भये ज्ञान किसका होय? तातैं दृशि (श्य) दरसन तैं भये अदृशिपणा मिट्या ज्ञान भी विशेष ज्ञाता भया । ज्ञान -दरसन का जुगपत भाव है । तातैं दरसन सारे गुण को प्रगट कर साधे, तातैं साधु है।
आगे दरसन को यति कहिए है
दरसन अदरसन विकार दूरि किया है। जो विकार रहता, तो सर्वशक्ति दरसन में न होती। विकार जीते यति भया । दरसन विकार को सुद्धता में न आवने दे। सकल सुद्धता दरसन की, जामें अतीचार भी न लागे, ऐसी निराकार शक्ति प्रगटी, तातैं
यति भया ।
आगे दरसन को मुनि कहिये है
दरसन में ज्ञान भी दरस्या' गया। तहां केवल दरसन में केवलज्ञान का अवलोकन भया, तब प्रतक्ष ज्ञानी को मुनिसंज्ञा है | दरसन अनंतगुण को प्रतक्ष देखे है। जो प्रतक्ष करे, ताको मुनि कहिये है, तातैं दरसन को मुनि संज्ञा कहिये । ऐसे सब गुण में च्यारि - च्यारि भेद जानने ।
१ क्योंकि २ अदृश्य, अगोचर, ३ दृश्य, गोचर, ४ देखा गया
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