Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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के अनंत अपार महिमा मंडित भेद ज्ञान प्रगट करे है । तातै ज्ञान में ऐसी ज्ञायकरिद्धि है, ताः ज्ञान रिषि कहिये ।
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आगे ज्ञान को साधु कहिये हैज्ञान अपनी ज्ञायकपरणति करि आपको आप साधे | अनन्त ज्ञान में सब व्यक्त भये, तातें सब प्रगट किये, ता” सब के प्रगट भाव करणे का साधक हैं, तास साधु। ज्ञान कार सरूप सर्वस्व सधे । आतम ज्ञान ही तैं सर्वज्ञ महिमा को पावे है। ज्ञान सकल चेतना में विशेष चेतना है, तासे सरूप साधन है। आतमा के परम प्रकाश ज्ञान ही का बड़ा है, प्रधान रूप है; तातैं सब प्रभुत्व साधक है। ज्ञान अनंत, अविनासी, आनंद का साधक है। सो ज्ञान की साधकता क्रमकरि न है, जुगपत साध्यसाधकभाव है। काहे तैं? एक बार सब का प्रकाशक है। याते जे ज्ञान भाव साधु भला समझेंगे, तो अविनासी नगरी का राजा होहिगे' । तातै ज्ञान को साधु जानि सब जीव सुख पादो।
आगे ज्ञान को यति कहियेज्ञान अज्ञानविकार के अभाव तैं सुद्ध है। इस संसार में सब जीव अनादि करमयोग तैं परको आप मानि मोहित होइ दुखी भये सो एक अज्ञान की महिमा, तातै जन्मादि दुख से व्याकुल हैं। ता अज्ञान विकार को मेट्या, तब पूर्व कथित ज्ञान प्रभाव प्रगट्या, तातैं अज्ञानविकार जीत्या, तातै ज्ञान यति भया। ऐसे ज्ञान यतिभाव को जाने, तो ऐसे ज्ञान यतिभाव को पावै, तातें ज्ञान यतिभाव जानना जोग्य है।
५ होंगे