Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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पर्याय क्रिया करि क्रियावान है; परक्रिया न करे, तातै अक्रियावान है। वस्तुत्वकरि नित्य है, पर्याय करि अनित्य है। आप अनन्तगुण को कारण है। आप को आप कारण है; जड़ को अकारण है। आप परिणाम का आच कर्ता है; पर परिणाम का अकर्ता है । ज्ञान वस्तु की अपेक्षा सर्वगत है, पर की अपेक्षा निश्चयनय पर में न जाथ, तातै सर्वगत है। अपने प्रदेशलक्षण करि आप में प्रवेश आप करे है, निश्चय करि पर में प्रवेश नाहीं। वस्तुत्व करि वस्तुत्व नित्य है; पर्याय करि अनित्य है । वस्तुत्व करि अभेद है, पर्याय करि भेद है। वस्तुत्व करि अस्ति है, पर्याय करि नास्ति है। वस्तुत्व करि एक है, पर्याय करि अनेक है। वस्तुत्व करि अनादि अनन्त, पर्याय करि सादि सांत, इत्यादि अनन्त भेद वस्तुत्व के हैं। अनन्त गुण की महिमा वस्तुत्व ते है, ऐसी रिद्धि वस्तुत्व धारे है, तातै रिषि कहिए।
आगे वस्तुत्व को साधु' आदि कहिये हैवस्तुत्व सामान्य विशेषता दे करि सब द्रव्य-गुण-पर्याय को साधे है। आप परिणाम करि आप को साधे है, तातें साधु कहिए है । अपने भाव में अवस्तुविकार न आवने दे, तातै यति कहिए: विकार जीते तातै यति। ज्ञानवस्तु अज्ञानविकार न आवने दे, दरसन अदरसनविकार न आवने दे, वीर्य अवीर्यविकार न आवने दे, अतेंद्री', अनाकुल, अनुभव-रसास्वाद-उत्पन्नसुख दुखविकार न आवने दे। गुण, गुणका विकार अभाव भया; तातें सब गुणवस्तुत्व यति नाम पाया। ज्ञानवस्तुत्व सब को प्रतक्ष करे, तारौं वस्तुत्वको मुनि कहिये। आगे अगुरुलघु को च्यारि रिषि आदि भेद कहिए है
_अगुरुलघु गुण अनन्त रिद्धिधारी है। न गुरु कहिए भारी, १ साधने वाला. शुद्ध स्वभाव साधक. २ निर्विकार साधु, ३ अतीन्द्रिय, आत्मानुभवी
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