Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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गुण वाण कर जोमा निर्विकल्प रीति परसना, गुण नै प्रमाण करवे जोग्य विशेष वरतना. व्यापार प्रमाण गुण करे है । या प्रकार सब गुण में निर्विकल्प रीति अरु विशेष रीति वरतना व्यापार है. तासे सब वैश्य कहिये।
आगे ब्राह्मण का वर्णन कीजिये है
ज्ञान गुण निज स्वरूप है। ब्रह्म ज्ञान ते एक अंस हू अधिक ओछा नाहीं। ज्ञान प्रमाण है, ज्ञान स्वरूप है। ज्ञान बिना भये जड होय, तातें जानपणा बिना सरवज्ञ न होइ। तब ब्रह्म की अनंत ज्ञायक शक्ति गये ब्रह्मपणा न रहे, तातें ज्ञान ब्रह्मव्यापक ब्रह्म रूप है, तातें ज्ञान को ब्राह्मण संज्ञा भई। दरसन स्वरूपमय है, सर्वदर्शित्व शक्ति ब्रह्म में दरसन करि है, दरसन बिना देखने की शक्ति ब्रह्म में न होय. तारौं दरसन सब ब्रह्म में व्यापि ब्रह्म रूप होय रह्या है, तातें ब्रह्म सरूप भया दरसन ब्राह्मण कहिये। प्रमेय गुण तें सब द्रव्य, गुण, पर्याय प्रमाण करदे जोग्य हैं, सातै प्रमेय ब्रह्मसरूप, तातै प्रमेय ब्राह्मण भया। या प्रकार सब गुण ब्राह्मण भये।
आगे शूद्रसरूप गुण को बतावे हैं
अपनी पर्यायवृत्ति करि एक-एक गुण सब गुण की सेवा करे है, ताको वर्णन-सूक्ष्मगुण के अनंतपर्याय ज्ञानसूक्ष्म, दरसनसूक्ष्म, वीर्यसूक्ष्म, सत्तासूक्ष्म, सूक्ष्म गुण अपनी सूक्ष्मपर्याय न देता, तो वे सूक्ष्म न होते । तब स्थूल भये इन्द्रिय-ग्राह्य मजे जड़ता पावते, ताः सूक्ष्म गुण अपनी सूक्ष्मपर्याय दे सब गुण
१ नय. २ अपना रूप. अपना गुण (क्वालिटी). ३ आत्मज्ञान, ४ कम, न्यून. ५ उत्पाद (उत्पन्न )- व्यय (विनाश) रूप कार्य-व्यापार के द्वारा