Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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नाहीं - सब का सिर अपलोक में निर्विकल्प है। दरसन दरसन को देखे, दरसन की शुद्धता निर्विकल्प है । अपना निज देखना तो अपने द्रष्टा लक्षण सों व्यापक तन्मय लक्षण अभेद है। दरसन दरवि; देखना गुण, देखवे रूप परिणमन पर्याय निश्चय अभेद, दरसन भेद, कथन मात्र में व्योहार है निजरूप को देखते सब गुण का देखना तो है । धरे, देखवे मात्र गुण को है, आन लक्षण न धरे । अपने स्वगुण के प्रकाश में आनगुण स्वजाति चेतना की अपेक्षा प्रकाशे । जिस सत में सो अपना गुण प्रकाश्या, तिस सत में सब गुण प्रकाशे, परि विनके लक्षण को धरता तो विकल्पी होता । अपना प्रकाश देखवे मात्र ज्यों का त्यों राखे है । आपनी दरसन रूप दरपन - भूमि में पर ज्ञेय विजाति होइ मासे है । निज जाति चेतना एक सत्ता ते प्रगटी सो सब गुण की दरसन प्रकाश के साथ जुगपत प्रगटी | अपना प्रकाश निर्विकल्प जैसा है, तैसा रहे है। विजाति पर ज्ञेय, स्वजाति पृथक् चेतना, ज्ञेय, अपृथक् चेतना, स्वजाति ज्ञानादि अनंत गुणादि ज्ञेय, सब लक्षण को न तजे काहू को उपचार करि देखना, काहू को स्वजाति उपचार देखना । पृथक् भेद ते, काहू को अपृथक्ता करि देखना, अभेद चेतना जाति, तातैं ऐसा देखना है। तोऊ अपने निर्विकल्प प्रकाश लक्षण लिये अखंडित दरसन निर्विकल्प रहे है । यह दरसन 'वान" कहिये रूप में रहे, तातैं दरसन वानप्रस्थ कहिये ।
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प्रमेय' सामान्य है; सब में व्यापक है। द्रव्य प्रमाण करवे जोग्य प्रमेय ते भया सब गुण प्रमाण करवे जोग्य प्रमेय की पर्याय ने किये; पर्याय प्रमेय ने प्रमाण करवे जोग्य किये। प्रमेय प्रमाण करवे जोग्य लक्षण को लिये है। जो प्रमेय न होता, तो सब
१ द्रव्य २ धारण करे ३ अन्य दूसरा, ४ स्वरूप ५ निर्णीत वस्तु