Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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ज्ञान यह ज्ञान का विशेष है। जानन मात्र में दूजा भाव न आवे, तारौं सामान्य है । स्वपर के जानने में सर्वज्ञ शक्ति प्रगटे है, तातें जानन मात्र में वस्तु का स्वभाव सधे है। स्वपर जानना कहे, ज्ञान की महिमा, अनन्त शक्ति परजाय रूप सब जानी परे' है। अनन्त गुण की अनन्तशक्ति परजाय जाने से अनन्त गुण की अनन्त महिमा जानी परी, तब ज्ञान करि सासता आतम पदार्थ की महिमा जानी परी, तब सब गुण, द्रव्य की महिमा ज्ञान ने प्रगट करी। जैसे कोई कठेरा' काठी बेचे है. वाने कबहू चिंतामणि रतन पाया, तब अपने घर में धर्या, तब वाकरि" प्रकाश भया । तब अपनी नारी को कह्या-याके उजियारे में रसोई करि, तेल तेल की गरज सरी । बिना गुण जाने बहुत काल लगिर काठी ढोई । कबहू कोई पारखी पुरुष आया, ताने टया करि" चिंतामणि की महिमा बताई. तब वाका सब्द (सुन) करि दारिद्र गया। जो पारखी पुरुष चिंतामणि की महिमा न जनावता, तो छती महिमा अछती होती; तैसे अनंत संसार के जीव अनंत महिमा अनंत गुण की न जाने हैं, तारौं दुखी भये डोले हैं। जब श्रीगुरु पारखी मिले, तब अनंतगुण की अनंत महिमा बताई, तब जिसने भेद पाया सो संसार दारिद्र मेटि सुखी भया । ज्ञान करि जानी परी, वाकी महिमा श्री गुरु ज्ञान ते जानि कही, ज्ञान वाके भये वाहूने जानी; ता ज्ञान सब गुण की महिमा प्रगट करे है। ज्ञान प्रधान है। अनन्त गुण सिद्धन विर्षे हैं, ते हू ज्ञान करि जाने हैं। ज्ञान सब गुण को प्रगट करे है, तब विनके गुण की महिमा प्रगटे है; तारौं ज्ञान की विशेषता कार्यकारी है। ऐसे ज्ञान सामान्यविशेष करि ज्ञान वस्तु नाम १ जान पड़ती है २ जानने से ३ शाश्वत ४ लकड़हारा ५ लकड़ी ६ कभी ७ उसके द्वास न हुआ इ पत्नी १० उजाले, प्रकाश में ११ पूरी हुई. पूर्ण हुई १२ तक. १३ उसने. १४ करके १५ व्यक्त प्रकट १६ अप्रकट १७ उसकी १८ उसी ने
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