Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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प्रमेय की अनंत सत्ता भई। एक गुण, एक लक्षण व्यापक न रह्यो । ताको समाधान
सत्ता तो एक है। एक ही सत्ता में अनंत गुण का प्रकाश है। एक-एक के प्रकाश गुण की विवक्षा करि गुण गुण का सत ऐसा नाम पाया । सत्ता भेद तो नांही लक्षण एक-एक गुण का जुदा है, लक्षण रूप गुण न मिले, तातैं सत्ता अनन्यत्व करि भेद नांव' भया, पृथक् भेद न भया; तातैं यह कथन सिद्ध भया । निश्चय सब का एक सत अनन्यभेद, लक्षण - गुण की अपेक्षा और नांव उपचार करि गुण गुण का कल्पा तो सत्ता भिन्न-भिन्न न भई तातैं नाना नय-प्रमाण है, विरुद्ध नांही । एक प्रमेय अनंत गुण में आया, सो सत्ता एक ही अनंत गुण का प्रकाश तिस में, एक-एक प्रमेय प्रकाश सो ही प्रकाश प्रमेय का सब गुण में आया । काहे तैं आया? सो कहिए हैं। गुण एक-एक के असंख्य प्रदेश वे ही है, विनही' में सब गुण व्यापक है। प्रमेय हू व्यापक है । तातैं प्रमेय सब प्रदेश व्यापक रूप विसतऱ्या, तब सब गुण के प्रदेश सत में विसके सत भया सो कहने में नांव भेद पाया । ये प्रमेय के, ज्ञानके, ये दरसन के परि वे जुदे-जुदे असंख्यात नाहीं, वे ही हैं। तातैं सब गुण का प्रदेश सत् एक भया, तातैं प्रमेय की अनंत सत्ता न भई । सत्ता तो कल्पी और कही, गुण के लक्षण जुदे के वास्ते मूल सत्ता भेद नाहीं । अनंत गुण लक्षण रूप एक द्रव्य का प्रकाश अनंत महिमा मंडित सो है । वस्तु जनावने निमित्त जुदे - जुदे दिखाये ! गुण गुण की अनंत शक्ति, अनंत पर्याय, अनंत महिमा, अनंत गुण का आधार भाव एक-एक गुण में पाइये। प्रमेय पर्याय करि अनंत गुण में व्यापक होई
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१ नाम, २ इसलिये, इस कारण ३ उन्हीं ४ उसके ५ परन्तु ६ सत्ता में भेद नहीं है. किन्तु समझाने के लिए कल्पना से सत्ता में भेद कर अलग-अलग गुणों के लक्षण समझाये हैं ।