Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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परिणति को धरि परिणति सो एक होइ परिणति द्रवे, तब देउ मिले परिणति द्रवे, तब गुण द्रव्य को वेदे', सरूप लाभ ले द्रव्य द्रवे, परिणाम प्रगटे । गुण द्रवे, तब एक-एक गुण सब गुण में व्यापि अनंत को आधार होय है। सब गुण अन्योन्य मिलि एक वस्तु होइ । ये सब द्रव्य, गुण, परजाय जु हैं सो द्रवत ते हैं | सामान्य रूप तो द्रवणे रूप परिणम्या विशेष द्रव्य द्रवणगुण, द्रवण परजाय द्रवणा सो सामान्य–विशेष द्रवणा मिलि द्रवत्व नाम भया । सो द्रवत्व अपने स्वरूप में रहे सो द्रवत्व वानप्रस्थ कहिए। ऐसे सब गुण का वानप्रस्थ-कोद जानिये।
आगे ऋषि, साधु, यति, मुनि, ये भिक्षुक के
भेद हैं सो कहिये हैंएक-एक गुण में च्यारि भेद लागे हैं। प्रथम सत्ता गुण में कहिये है-तातें सत्ता को रिषि संज्ञा होय, सत्ता सासती रिद्धि को लिये है। आप अविनासी है | सत्ता के आधार उत्पाद, व्यय. ध्रुव है। सत्ता अपनी सासत' रिद्धि द्रव्य को दई, तब द्रव्य सासता भया । गुण को दई, तब गुण सासते भये। ज्ञान का जानपणा गुण, ज्ञान द्रव्य, ज्ञान परिणति परजाय । ज्ञान स्वसंवेदी ज्ञान, ज्ञेय-ज्ञायक-ज्ञान, अपने आतमा के द्रव्य, गुण, परजाय का जाननहार, ऐसे ज्ञान को सासता सत्ता गुण ने किया सो ज्ञानसत्ता है। ज्ञान सत्ता तैं ज्ञानं सासता, यह सासती रिद्धि ज्ञान को सत्ता गुण ने दी है। दरसन का सत तें दरसन सासता है | दरसन सब परभाव स्वभावरूप सब ज्ञेय को देखे है, अपने आतमा के द्रव्य, गुण, पर्याय को देखे है । दरसन द्रव्य है, देखना
१ अनुभव करे. २ यता के कारण ३ दलने ४ ढलना ५ शाश्वत ६ दी गई, दी ५ शाश्वत, अविनाशी
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