Book Title: Adhyatma Panch Sangrah
Author(s): Dipchand Shah Kasliwal, Devendramuni Shastri
Publisher: Antargat Shree Vitrag Vigyan Swadhyay Mandir Trust
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को धारे, तातैं रिषि कहिए। प्रत्यक्षज्ञान सब में आया, तातैं मुनि कहिए | परभाव को जीति लियो, तातैं यति कहिए। इन में जो विशेष है सो लिखिए है।
क्षत्रिय का वर्णन
सब गुण परस्पर सब गुण की रक्षा करे है सो कहिए है। प्रथम सत्ता गुण के आधारि सब गुण हैं, तातैं सत्ता सब की रक्षा करे है। सूक्ष्म गुण न होता, तो चेतन सत्ता इन्द्रियग्राह्य भये अतीन्द्रियत्व प्रभुत्व का अभाव होता, महिमा न रहती, तातैं सूक्ष्मत्व सब अतेन्द्री प्रभुत्व की रक्षा करे है । प्रमेयत्व गुण न होता, तो वीर्यादि सब गुण प्रमाण करवे जोग्य न होते, तातैं प्रमेयत्व सब का रक्षक है। अस्तित्व बिना सब का अभाव होता. तातैं सब की अस्तित्व रक्षा करे है। वस्तुत्व न होता, तो सामान्य विशेष भाव सब का न रहता, तातैं वस्तुत्व सब की रक्षा करे है । या प्रकार सब गुण में रक्षा करणे का भाव है, तातैं क्षत्रियपणा
आया ।
आगे वैश्यवर्णन करिये है
अपनी-अपनी रीति' वरतना व्यापार सब करे है। दरशन देखवे मात्र, मात्र निर्विकल्प रीति-वरतना-स्वपर देखने की रीति-वरतना व्यापार करे है । सत्ता है लक्षण निर्विकल्प रीति बरतना विशेष द्रव्य है। रीति गुण है, रीति वरतना पर्याय है, रीति वरतना व्यापार करे है। वस्तुत्व सामान्य- विशेष रूप वस्तुभाव निर्विकल्प रीति वरतना, ज्ञान में सामान्य विशेष रीति वरतना, सब गुण में सामान्य - विशेष रीति वरतना व्यापार कहिए । प्रत्येक १ प्रकार, तरह र परिणमन व्यापार