Book Title: Acharang Sutram Part 01
Author(s): Jayprabhvijay, Rameshchandra L Haria
Publisher: Rajendra Yatindra Jainagam Hindi Prakashan
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________________ 'आचारांग' विशे अभिनव प्रकाशन डा. रमणलाल ची. शाह परम पूज्य ज्योतिषाचार्य श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' महाराज साहेबे श्री आचारांग सूत्र उपर श्री शीलाकांचार्य संस्कृत भाषामां 12000 श्लोक प्रमाण रचेली वृत्तिनो हिन्दी भाषामां अनुवाद करीने प्रकाशित कर्या छे. तेने आवकारतां हुं अत्यंत आनंद अनुभवु छु. महाराजश्रीओ पोताना दादागुरु, अभिधान राजेन्द्र कोषना निर्माता, प्रकांड पंडित, समर्थ क्रियोद्धारक श्रीमद् विजय राजेन्द्र सूरीश्वरजीतुं नाम आ हिन्दी टीका साथे जोडीने अने 'राजेन्द्र सुबोधनी आहोरी हिन्दी टीका' अq नाम आप्युं छे ते पोताना दादागुरु प्रत्येना अमना भक्तिभाव द्योतक छे. आ रीते आपणने हिन्दी भाषामां 'आचारांग सूत्र' विशे ओक अभिनव प्रकाशन प्राप्त थाय छे. आचारांग सूत्र विशे हिन्दी भाषामा अनुवाद अने विवेचनरूपे केटलुक साहित्य थयेलुं छे. परंतु श्री शीलाकांचार्यनी टीकानो हिन्दीमा अनुवाद आ पहेली वार प्रकाशित थाय छे. मेथी आ विषयना रसिक जिज्ञासुओने, विद्वानोने तथा आत्मार्थी जीवोने सविशेष लाभ थशे. श्रुतसेवा, आ ओक अनोखं कार्य छे. 'आचारांग सूत्र' विशे संस्कृत, प्राकृत, गुजराती, हिन्दी, इंग्लिश, जर्मन वगेरे घणी भाषाओमां घणुं साहित्य प्रकाशित थयेलुं छे प्राचीन काळमां 'आचारांग सूत्र' विशे तथा अन्य आगमो विशे निर्यक्ति चर्णि. भाष्य. टीका-वृत्ति इत्यादि प्रकारनं घणं साहित्य रचायेलं छे अने ते प्रकाशित थयेनुं छे. अमां श्री भद्रबाहुस्वामीओ रचेली आचारांग नियुक्ति प्रथम स्थान पामे छे. प्राकृत भाषामां पद्यमां लखायेली आ सघन कृति उपरथी संस्कृत के प्राकृतमां सविस्तार कृतिओनी रचना अर्थप्रकाश माटे थयेली छे. आचारांग उपर नियुक्ति पछी समर्थ कृति ते श्री शीलाकांचार्यकृत टीका छे. श्री शीलाकांचार्य विक्रमना दसमा सैकामां थइ गयेला अक महान आचार्य छे. ओमना जीवन विशे बहु विगत नथी सांपडती, परंतु ओम मनाय छे के गुजरातमां थइ गयेला महान राजा वनराज चावडाना गुरु जे श्री शीलगुणसूरि हता ते ज आ श्री शीलाकांचार्य अथवा श्री शीलाचार्य. ओ. काळे श्री शीलांकाचार्य गुजरातमां विहरता हता अने पाटण पासे गांभू (गंभूता) नगरमां रहीने अमणे आचारांग सूत्रनी आ टीका लखी हती अवो निर्देश आ टीकानी अंक ताडपत्रीय प्रति खंभातना भंडारमा छे अमां थयेलो छे. 'शीलाचार्येन कृता गंभूतायां स्थितेन टीकषा।' श्री शीलांकाचार्यतुं बीजुं नाम 'तत्त्वादित्य' हतुं ओवो उल्लेख पण मळे छे. तेओ निवृत्ति गच्छना श्री मानदेवसूरिना शिष्य हता. श्री शीलांकाचार्ये प्राकृतमा लखेली ‘चउपण्ण