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आचार्य श्री गुणचन्द्रकृत महावीरचरित
छट्टो प्रस्ताव
अनुवादक पण्डित बेचरदास जीवराज दोशी
प्राकृत विद्या मंडल
ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर अहमदाबाद Use only
)
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आचार्य श्री गुणचन्द्रकृत
महावीरचरित
छट्ठो प्रस्ताव
अनुवादक पण्डित बेचरदास जीवराज दोशी
प्राकृत विद्या मंडल
ला. द. भारतीय संस्कृति विद्यामन्दिर अहमदाबाद ९
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प्रकाशक दलसुख मालवणिया वी. एम. शाह
मन्त्रीः प्राकृत विद्या मण्डल, अहमदाबाद ९
ई. स. १९६६
प्रत ५००
मूल्य १००
मुद्रकः स्वामी श्रीत्रिभुवनदासजी शास्त्री श्री रामानन्द प्रिन्टिङ्ग प्रेस कांकरिया रोड
अहमदाबाद १७
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प्रास्ताविक आचार्य श्री गुणचन्द्र रचित 'महावीरचरित'ना छट्ठा प्रस्तावन गुजराती भाषान्तर प्राकृत विद्या मण्डल तरफथी प्रकाशित करवामां अमे आनन्दनो अनुभव करीए छीए. आ पहेलां आ ज प्रस्तावनुं प्राकृत मूळ षण अमे प्रकाशित कयु हतुं. आ बन्ने ग्रन्थना प्रकाशनमां श्री धारशीभाई जवेरचन्दभाईनी सहाय लेवामां आवी छे. ते बदल प्राकृत विद्या मण्डल तेमनुं आभारी छे.
प्रस्तुत ग्रन्थ पाट्य होई तेनुं मुद्रण करवामां आव्यु छे जेथी विद्यार्थीओने तेमना अभ्यासमां मददरूप ते थई पडशे एम अमारी आशा छे.
मूळ प्राकृत महावीरचरित संपूर्ण गुजराती अनुवाद आ पहेलां आ० सभा, भावनगर तरफथी छपाइ ज गयो हतो पण ते अत्यारे बजारमा मळतो नथी अने वळी तेनी भाषा पण अटपटी छे. आथी पूज्य पण्डित बेचरदासजी, जेओ आ मण्डळना प्रमुख छे तेमणे अमारी विनति ने मान आपी अतिशीघ्रताथी आ अनुवाद नवेसर करी आप्यो छे, ते बदल विद्यार्थी जगत अने मण्डल तेमनुं ऋणी रहेशे,
मन्त्रीओ प्राकृत विद्या मण्डल
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म हा वी र च रित
छट्टो प्रस्ताव
अईम् [पृ०१ ] एकला फरता फरता श्री वीर भगवाने पूर्व उपार्जेल पापोना विनाश माटे अत्यार सुधी जे जे अनेक उपसर्गो सहन कर्या ते बधा क्रमपूर्वक आगळना प्रस्तावमां बतावाई गया. १.
हवे गोशालक नामनो दुष्ट शिष्य ज्यारथी तेमनी साथे फरवा लाग्यो त्यारथी ते महाप्रभुने जे जे उपसर्गो थवाना छे ते बधाने आ छट्ठा प्रस्तावमां बताववाना छे. ते हकीकतने तमे बधा एकाग्रचित्ते सांभळो. २.
हवे आगळ जणावाई गयेल थूणाग नामना संनिवेशथी नीकळीने गामे गाम फरता अने स्थाने स्थाने देवो वडे पूजाता तथा बोल्या वगर पण पोताना माहात्म्यने लीधे प्राणीओने प्रतिबोध आपता एवा भगवान वन-उद्यान अने पाणोथी भरेली दीर्घिकाओने लीधे रमणीय देखाता एवा राजगृह नगरे पहोंच्या. त्यां राजगृह नगरनी पासे ज घणा ऊँचा ऊँचा एवा हजारो प्रासादो जेमां आवेला छे एषो. नालन्द नामनो एक संनिवेश आवेल छे. ते संनिवेशमा अर्जुन नामे एक मोटो वर्णकर रहे छे. ए वणकरनी पासे धन अने सोनानी
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घणी समृद्धि छे. त्यां वणवाना काम माटे खप लागे एवी ए वणकरनी घणी वणाटशाळाओ छे. ए शाळाओमां बेसीने ए वणकरना अनेक नोकरचाकरो ऊँची जातना पट्ट (पटु) तथा दूष्यो (दुशाला)ने वण्या करे छे. आ वणाटशाळाओमां रहीने भगवानने चोमासुं करवानी वृत्ति थई. ते माटे तेमणे ए शाळाओना मालिक अर्जुननी अनुमति मेळवी अने हालताचालता जीवजन्तु वगरनी, एकान्तमां आवेली तथा शून्य तद्दन खाली ऊजड एवी एक वणाटशाळाने जोई तेमां चोमासाना प्रथम मासना उपवास करवानुं व्रत स्वीकारी भगवाने चोमासुं रहेवानुं शरू कयु.
हवे आ तरफ चितरेल पाटियु हाथमा राखीने तेमांनां चित्रो लोकोने बतावीने पोतानी आजीविकाने मेळवतो एवो अने एकलो फरतो फरतो मंखलि मखनो गोशालो नामनो पुत्र ते वणाटशाळामां आवी चड्यो अने ज्यां भगवान पोताना बन्ने हाथने पग तरफ लम्बावीने ध्यानमा रहेला हता त्यां ज एटले ए ठेकाणे ज वणाटशाळामां आबीने ऊतो.
आ गोशालकनी उत्पत्तिनो वृत्तांत हवे पछी कहेवामां आवशे. पण ते पहेलां हमणां जणावेल मंखलि मखनी उत्पत्ति जे मनुष्यथी थयले छे तेनी वृत्तांतकथा कहेवामां आवे छे.
१ आजकाल पण केटलाक लोको आवा चित्रोना तख्तावाळी पेटी माथे राखीने घरे घरे फरता देखाय छे अने ए पेटीनी आगळ जडेला दुरबीन जेवा बे काचो वडे छोकरांओने चित्रो बतावी पोतानो निर्वाह करी रह्या छे.
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उत्तरापथ एटले उत्तरप्रदेशमा सिलिंध नामनो एक संनिवेश छे. त्यां केशव पृ० २] नामनो ग्रामरक्षक रहे छे. केशवनी स्त्रीनुं . नाम शिवा छे. ए शिवा विनयवाळी छे अने केशवने प्राणप्रिय छे. ते शिवानी कूखे मंख नामनो पुत्र अवतो. ते ज्यारे मोटो थयो अने जुवानीमां आव्यो त्यारे एक वार पोताना पितानी साथे नहावा माटे सरोवर उपर गयो. त्यां नाही करीने काठे बेठा बेठा तेणे आ दृश्य जोयुं____ए तळावमां परस्पर गाढ प्रेमवाळु, एक बीजामां अनुरागथी भरेला हृदयवाळु अने विविध क्रीडा करतुं एक चक्रवाकनुं जोड़ें फरतुं हतुं.
ए जोडानी क्रीडा आ प्रकारनी हतीताजी नलिनीना नाळने चांचना आगला भागे पकडीने तेना कटका करीने आपसआपसमां खावा माटे वहेंची पोताना स्नेहने प्रकट करतुं तथा सूर्य हमणां आथमी जशे अने आपणो वियोग थशे एवी बीकथी परस्पर एकबीजाने गाढ आलिंगन देतुं ए, ए जोडं हतुं. १.
वळी, सरोवरना पाणीमां पडेला पोताना पडछायाने जोईने एमना मनमां एवी शंका घर करी गई के हवे आपणे एकबीजाथी छूटा पडी जशुं के झुं ? तथा ते जोडु मनमां जरा पण कपटवाळु न हतुं-सरळ हतुं अने तेथी ज एक बीजाने खुश करवानी गम्मत करतां करता तेमनुं मन एकबीजामा ओतप्रोत हतुं. २.
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कांठे बेठेलो पेलो मंख ए चक्रवाकना जोडाने एकबीजामां लीन थतुं जोई रह्यो हतो. एवामां कोइने खबर न पडे ए रीते एक शिकारी-पारधी त्यां धीमे धीमे आवी पहोंच्यो, तेणे कान सुधी धनुष्यने खेंचीने ए बिचारा जोडा उपर बाण फेंक्यु.
हवे दैवयोगे ए बाण पेला एकला चक्रवाकने ज वाग्यु. मर्म स्थानमां बाण वागवाथी चक्रवाक घानी पीडाने लीधे मरणनी छेल्ली पळे आवी पहोंच्यो. एने एवो तरफडतो जोईने ए मरे ते पहेलां ज पोताना पतिना मरणना दुःखने जाहेर करवा ची ची एवो अवाज करती पेली चक्रवाकी पण करुणरीते तरफडीने मरी गई अने ते पछी थोडी ज वारमा पेलो चक्रवाक चक्रवाकीनी पाछळ मरी गयो.
सरोवरने काठे बेठेला पेला मंखे पोतानी नजरोनजर आ बनाव जोयो, जोतां ज तेने मूर्छा आवी गई, तेनी आंखो मींचाई गइ अने ते जमीन उपर ढळी पड्यो.
मंखना पिता केशवे पोताना पुत्रने आम मूर्छा पामतो जोतां तेना मनमां 'आ अचानक शुं थई गयु' एवो अचंबो थयो.
केशव पुत्रने ठंडा उपचारथी समाश्वासित को अने हळवेथी बेठो कर्यो. केशवे पोताना पुत्र मंखने बेठो श्रयेलो अने भानमां आवेलो जोईने पूछ्यु-हे पुत्र ! आ शुं थयुं ? तने शुं वायुनो क्षोभ थयो, प्रबळ पित्तनो विकार थयो, अचानक नबळाई आवी गई के आम थवानुं बीजं कोई कारण बन्युं जेने लीधे तुं जमीन ऊपर ढगलो थइने बहुवार सुधी पडी रह्यो अने बेभान रह्यो ? तुं मने आ बनावनी साची
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वात कहे. पछी मंखे पोताना पिताने तेनो प्रश्न सांभळीने लांबा नीसासा मूकतां का के, हे पिताजी, उपर वर्णवेल चक्रवाकना जोडाने जोईने मने मारो पूर्वभव पृ० ३] सांभळी आव्यो-मने जातिस्मरण ज्ञान थयु. ए ज्ञान वडे मारो आगलो भव मने एकदम प्रत्यक्ष थयो. में जाण्यु के हुँ आगला जनममां मानससरोवरमां खरेखर आवी ज रीते चक्रवाकना जोडाना रूपमा हतो. ते वखते त्यां एक भीले मारा उपर बाण छोड्यु, तेथी घायल थयो अने घानी पीडाने लीधे तरफडतो मने जोतां ज तत्क्षण विरह थवाथी हृदय तूटी जतां मारी चक्रवाकी मरी गई अने तेनी पाछळ हुँ पण मरी गयो. मर्या पछी तमारे घरे हुं पुत्र रूपे अवतों छं. आ बनाव जोइने मने मारी चिरसंगिनी अने दृढ प्रणयवाळी चक्रवाकी सांभळी आवी, तेथी हवे हुं तेनो विरह सही शकुं तेम नथी. एटले ए चक्रवाकी ज्यां होय त्यां पहोंच्या विना मने जरा पण चेन पडवानुं नथी. केशवे मंखने कयु के, हे पुत्र ! वीती गयेला जनमर्नु दुःख संभाळवाथी हवे कशुं ज वळवानुं नथी. ए मोबळेलो विधाता ज ऐवो ईर्ष्याळु छे के जो कोई मनुष्य प्रियनो संयोग पामीने लांबा काळ सुधी सुख भोगवतो तेना जोवामां आवे तो ते तेने सहन करी शकतो नथी, एवो तेनो स्वभाव छे.
वळी, पोतानी प्रिय प्रणयिनीनो विरह थतां दुःखनी आगथी संताप पामेला देवो पण गांडानी जेम अने मूर्छित थयेलानी जेम पोताना जीवनने गमे तेम करीने गुमावे छे. १.
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तो पछी हे पुत्र ! आपणुं माणसनुं शरीर तो चामडीथी मढेलु होई रूडु लागे छे पण शरीर तो तमाम आपदाओगें स्थान छे. तो ए देवोनी पासे आपणा जेवा-तमारा जेवाना दुःखनो वळी शो हिसाब होय ? २.
माटे हवे तुं पूर्वभवतुं स्मरण करवू मूकी दे अने वर्तमानकाळमां वर्तन कर. भूतकाळ अने भविष्यकाळनी चिंताओने लीधे शरीर पण सीदाय छे-क्षीण थाय छे. ३. ___ आवी परिस्थिति छे माटे ज आ संसार खरेखर असार छे. संसारमा जन्म, मरण, जरा, रोग अने शोक वगैरेनां दुःखो भरेलां छे. ४.
विरहनी महावेदनाने लीधे घायल थयेल पोताना पुत्र मंखने आ प्रमाणे जुदी जुदी युक्तिओ तथा हेतुओ द्वारा समजावी केशवे केमे करीने मांड मांड घरभेगो तो कर्यो. ५. ____ हवे मंख धरमां आव्यो पण खावा पीवानुं छोडी दीधुं, तेनुं मन शून्य थई गयुं, आंखो तो जमीन तरफ ज खोडाई गई, अने महायोगीनी जेम तेणे बीजी बीजी तमाम प्रवृत्तिओनु चिंतन छोडी दीg. पोताना जीवनने पण तणखलानी तोले समजवा लाग्यो. तेनी आवी दशा जोईने चित्तमां संताप पामेला तेना स्वजनोए 'आ क्यांय छळी जवाथी कदाच आवी हालतमां आवी पडयो होय' एवी शंकाने लीधे विशेष आदर साथे तेनो उपचार कराववा माटे [पृ० ४] मंत्रतंत्रवादीओने बोलाव्या. तेमने बताव्यो, तेओए उपचारो पण कर्या छतां मंखनी हालतमां थोडो पण फेर न पडयो.
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हवे कोई दिवसे देशांतरथी कोई अनुभवी वृद्धपुरुष आव्यो अने केशवने घरे ज ऊतो. ए वृद्धपुरुषे मंखने जोयो अने पासे बेठेला तेना पिता केशवने मंखनी आवी हालत विशे पूछयु-हे भद्र ! आ तारो पुत्र हजु तो जुवान छे अने रोग वगेरेना उपद्रवथी मुक्त छे छतांय जाणे ए सशल्य होय एवो केम देखाय छे ? केशवे पोताना पुत्रनी आवी हालत थवानुं कारण कही बताव्यु. वृद्धे कह्यु--तमे आना दोषना निवारण माटे कोई पण प्रतीकार कर्यो ? केशवे कह्य-सारामां सारा एवा मन्त्रतन्त्रवादीओने बोलावेला अने तेओए आने जोईने उपचार पण करेलो छतां कशो फेर पड्यो नथी. वृद्ध पुरुषे कह्यु-आ अंगे तमे करेलो आ बधो प्रयास निरर्थक छे. ते बिचारा मंत्रतन्त्रवादीओ प्रेमग्रहना वळगाडने केम करीने दूर करी शकवाना हता ?
साभळभयंकर झेरी नागना झेरथी पेदा थयेल वेदनाने पण शांत करवा जेओ समर्थ कुशळ छे, सिंह, गांडो हाथी अने राक्षसीने पण जेओ थंभावी शके छे. १. __भूतना वळगाडी पेदा थयेल उपद्रवने पण जेओ दूर करी शके छे ते पण ते बधा उत्तम वैद्यो होवा छतां प्रेमना वळगाडने लीधे परवश पडेला हृदयने साजु-निरोगी-करी शकता नथी. २.
केशवे का-त्यारे हवे तमे ज कहो के आनो शो उपाय करवो? वृद्ध-मने पूछतो हो तो तने खरेखरी वात कही दउर्छ के आ छोकरो ज्यां सुधी कामनी दशमी दशा सुधी पहाँच्यो नथी त्यां सुधी ज तेनो उपाय शक्य छे. तुं आने माटे एक चित्रफलक तैयार कराव अने
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तैमां तेना पूर्वभवना बनावनां चित्र कराव. एटले भीले जे रीते हंसने बाणवडे घायल कर्यो, हजी हंस जीवतो हतो छतां तेनी प्रणयिनी हंसी मरी गई वगेरे बनावोनुं चित्र कराव अने एम करावीने ए चित्रफलक आ मंखना हाथमां आप अने तेने कहे के तुं आ चित्रफलक लईने गाम, नगर वगेरे स्थानोमा भम्या कर. एम करवाथी संभव छे के भाग्ययोगे तेना पूर्वभवनी स्त्री जो मनुष्य अवतारधारी स्त्री थई हशे तो आ छोकराना हाथमा रहेलुं चित्रनुं पाटियुं जोई तेमां चितरेल भीलना बाणथी घायल थयेलो हंस, तेना जीवतां तेनी प्रिय हंसलीनुं मरण वगेरे भावोने जोवाथी तेने (स्त्रीने) जातिस्मरण ज्ञान थाय अने एम थवाथी ते स्त्रीनी साथे आ छोकरानो समागम थई जाय. आवा बनावो पूर्वे पण बनेला छे एवं पुराणोमां अने आगमोमां आवती कथाओ सांभळवा उपरथी जाणी शकाय छे.
आम करवाथी आ छोकरो पोताना ए पूर्वभवनी स्त्री मळी जवानी आशामां वळी केटलाक दिवस जीवी जाय.
केशवे ए वृद्धनी आ बात सांभळीने कह्यु के तमारी बुद्धिने धन्य छे, धन्य छे. [पृ० ५] अनुभवी पुरुष सिवाय बीजो कोण आवी वात कही शके अने आ प्रकारना विषम अर्थनो निर्णय पण करी शके ? ___केशवे ए वृद्धपुरुष, अभिनन्दन करीने एणे कहेली ए बधी बात पोताना पुत्र मखने फरी संभळावी.
वात सांभळीने मंखे पिताने कó- तात! एमां शुं अयुक्त छे ? चित्रनुं पाटियुं जलदी तैयार करावो. कुविकल्पना तरंगोने लीधे व्याकुल थयेला चित्तनी शांति माटे कदाच आ उपाय ज काम लागे. पछी ते
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मंखनो अभिप्राय जाणीने पूर्वे जोएल चक्रवाकना जोडा, जेमां चित्र छे एवं चित्रफलक तैयार करावीने मंखने आप्यु, साथे भातुं पण बंधाव्यु, पछी ते मंख ते चित्रफलकने हाथमा राखीने एक सहायक साथी साथे नगर, पुर, खेट, कर्बट, मडंब वगेरे संनिवेशोमां आशारूप पिशाचना वळगाडना नडतरने लीधे क्याय विसामो लीधा विना निरंतर भमवा लाग्यो.
चित्रफलकने ऊचुं करीने ते घरे घरे देखाडवा लाग्यो अने ज्यां त्रण रस्ता भेगा थाय छे तेवे स्थाने तथा चार रस्ताना भेटाने स्थाने, चतुर्मुख रस्ताओ उपर, तथा मोटा मार्गों उपर, लोको ज्यां.पाणी पीवा आवे छे तेवी परबोमां, चोराओमां अने देवळोमां एम सर्व स्थानोमां चित्रफलकने देखाडवा लाग्यो. १.
लोको ए चित्रफलकमां चितरेला चक्रवाकना जोडाना ते प्रकारना भाववाला चित्रने जोईने कुतूहळने लीधे मंखने ए बिशे यूछवा लाग्या अने ते जे बात बनेल छे तेने बराबर लोकोने समजाववा लाग्यो. २.
हवे ते आ जातनी एकनी एक पोतानी वातने सविस्तर निरंतर कहेवाथी थाकी जवाने लीधे पोतानी वातनो सार संक्षेपमां जेमां समायेल के एवी द्विपदी नामनी कविता द्वारा पोतानी वात लोकोने संभळाववा लाग्यो अर्थात् पोताना वातना दोहरा गावा लाग्यो. ३.
जेमके मानस सरोवरमा एक चक्रवाकनुं जोडुं छे, जे परस्पर प्रौढ प्रेमना रागथी रंगायेल छे, आंखना मटका जेटलो समय पण विरह पडे
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तो तेमनो देह दुणाय छे, एक शिकारीना तीक्ष्ण बाणना घाथी ते घायल थईने मरण पामेल छे; हवे ए चक्रवाकनुं जोडुं संप्रयोगने इच्छे छे. ४.
मंखनी आ कविताने सांभळीने केटलाक लोको हसे छे, केटलाक अवगणना करे छे, केटलाक तेनी दया खाय छे. ते मंख पण बिलकुल शरमाया विना-विलखो पड्या विना-पोताना कार्यसाधनमा तत्पर थईने फरतो फरतो चंपा नगरीए पहोंच्यो. पृ०६] अहीं तेनी साथे जे भातुं हतुं ते खूटी गयुं. साथे आणेल भातुं खूटी जवाथी हवे शुं खावू! केवी रीते निभाव_ ? ए अंगे तेने बीजो कोई उपाय हाथ न लागवाथी तेणे पाटियुं एटले चित्रफलक बताववानो एक प्रकारनो नवो पाखंड संप्रदाय-धर्मसंप्रदाय ज ऊभो कर्यो अने एवो नवो संप्रदाय ऊभो करीने गायनो गातो ते भिक्षा मेळववा सर्वत्र भमवा लाग्यो.
भंख भयंकर भूखना तीक्ष्ण दुःखी भारे हेरान थयो हतो, तेनुं मन पोतानी पूर्वभवनी प्रियाने मेळववा भारे उत्सुक थयु. हवे तेणे आ जे नवो संप्रदाय चलायो, तेनी प्रवृत्ति द्वारा तेनां बे काम सधावा लाग्यां-एक तो खावानुं दुःख टळी गयुं अने बीजं आम गातां गातां फरतां कदाच तेनी प्रियतमा मळी जाय ए रीते तेनी आ एक क्रिया पण बे काम साधनारी थई. १
हवे आ तरफ-ए ज नगरनो रहेवासी मंखली नामे एक गृहपति हतो, तेनी स्त्रीनाम सुभद्रा. आ मंखलि वेपारवणजमां अकुशळ हतो, राजानी नोकरी करवामां पण अकुशळ हतो, तेम ज खेतीवाडी पण करी शकतो न हतो, कोई पण जातनी देहने कष्ट आपनारी एटले
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महेनत मजूरी करवामां ते आळसु हतो, बीजी कोई प्रवृत्ति करवानी तेने आवडत न हती, मात्र ते भोजनमां प्रतिबद्ध हतो, पण ए भोजन वगर महेनते सुखे सुखे केम मळे अने पोतानो निभाव बराबर चालतो रहे एनो विचार ए निरन्तर कर्या करतो हतो. एवामां ते मंखलिए चित्रफलक बतावीने गायन गाइने सुखपूर्वक कण भिक्षा मेळवता आमंखने जोयो. एने जोईने मंखलिए विचार कर्यो के अहो ! आनी आवृत्ति विरोध वगरनी छे, आ भंडोळने चोर हरी शकता नथी, आवृत्ति तो कामधेनुनी जेम रोज दूध आपन री छे, पाणी पाया वगर अनाजनी उत्पत्ति समान छे. कोई जातना क्लेश वगरनो महानिधि मल्या जेवी आवृत्ति छे. हवे मने मारा निभावनो उपाय मळी गयो अने ए उत्तम उपाय द्वारा लांबा काळ सुधी जोवन निर्वाह चालतो रहेशे. एटले मारे माटे आ वृत्ति ज निभाव माटे रामबाण उपाय जेवी छे. आम विचारीने ते मंखलि पेलुं चित्रफलक बतावीने गाता फरता मंखनी पासे गयो, तेनी सेवा स्वीकारी, तेनी पासेथी गायनो शीखी लीधां. हवे पोतानी पूर्वभवनी स्त्रीना विरहरूपी वज्रना घाथी हृदय
जीर्ण-जर्जरित-थई जवाने लीधे मंत्र मरण पाम्यो. पछी तो पोताने तत्त्ववेत्ता जेवा मानता आ मंखलिए एक बीजुं मोटुं चित्रफलक तैयार कराव्यं अने तेमां मोटा विस्तार साथे चित्रो चितराव्यां. आम नवा चित्रफलकने सरस रीते तैयार करावीने ते पोताने घेर आव्यो. अने पोतानी स्त्रीने खुशखबर आप्या के हे प्रिये ! हवे तो भूखने माथे वज्रना घा पडो - एटले हवे भूख आपणने हेरान करी शके तेम नथी. विहार यात्रा माटे तुं तैयार थई जा. तेणीए कहां
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आ हुं तैयार ज छु, तमने ज्यां गमे त्यां चालो. पछी चित्रफलक लइने पोतानी स्त्री साथे ते नगरथी बहार नीकळ्यो. चित्रफलक बतावीने गावानी वृत्ति द्वारा भिक्षा मेळवतो ते देशांतरोमां भमवा लाग्यो. ज्यां ज्यां ते जतो त्यांना रहेवासी लोको पण पहेला जोयेला मंखनी पेठे आने आवेलो जोइने 'मंख आव्यो' 'मंख आव्यो' एम कहेवा लाग्या. आ रीते आ मंखली [पृ० ७ ] मंखे उपदेशेल पाखंडना संबन्धने लीधे 'मंख'ना नामथी प्रसिद्धि पाम्यो. हवे कोई बीजे वखते ते मंखलि मंख भमतो भमतो सरवण नामना संनिवेशमां पहोंच्यो. त्यां गोबहुल नामना ब्राह्मणनी गोशाळामां ऊतयों. त्यां रहेतां तेनी स्त्री सुभद्राने पुत्रप्रसव थयो; उचित समये तेनुं गुणनिष्पन्न एवं गोशाल नाम पाड्यु. ते क्रमे वधवा लाग्यो-मोटो थयो. तेनुं बाळपण वीती गयु. स्वभावे ते दुष्ट आचारनो हतो-आळवीतरो अने अटकचाळो तथा तोफानी हतो, एवा स्वभावने लीधे ते जातजातनां तोफानो करवा लाग्यो, कोइनी आज्ञामां के निर्देशमा रहेतो नथी. कोई तेने समजावे तो सामो द्वेष करे छे. वळी,
तेनुं सन्मान करवामां आवतां ते थोडी क्षणो माटे सरळ बनी जतो पण पाछो कूतरानी पूंछडीनी पेठे कुटिल-वांको ने वांकोथई जतो. १.
वैतालनी पेठे अनवसरे थाक्या विना बोल बोल करतो, मर्मवेधी वाणी काढतो, कूडकपटना भरेला एवा तेने जोईने तेना तरफ कोण कोण शंकानी नजरे नहीं जूए. २.
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तेनी माता तेने कहेती-हे पाप ! नव महिना सुधी तने पेटमां वेंढार्यो छतां, तने पाळीपोषी मोटो कयों छतां अने सो वार कहेवा छतां मारुं एक पण वेण मानतो नथी. ३.
ज्यारे माता तेने आम कहेती त्यारे ते तेनो जवाब आपतो के, हे माता ! तुं मारा पेटमा पेसी जा, तने अढार मास सुधी धारण करुं एम छु. ४.
जे दिवसे ते गोशाळो पोताना पितानी साथे पण कजियो कंकास न करे ते दिवसे ते पापीने खरेखर खावानी रुचि पण थती नथी. ५.
विधाताए तेने तमाम दोषोने भेगा करीने बनावेलो होय एम खरेखर लागे छे केम के आखाय जगतमां तेना जेवो बीजो कोई देखातो नथी. ६.
तथा पोतानी दुष्टताने लीधे तेणे लोकोने एटला बधा पराङ्मुख करी नाख्या जेथी ते दुष्ट माणसोमां प्रथम उदाहरणरूप बनी गयो ७.
ए प्रमाणे ए गोशालो हजी तो ऊगीने ऊभो थाय छे त्यां जे कोई जूए तेने विषवृक्षनी पेठे, दृष्टिविष सर्पनी पेठे भयंकर लागे एवो थयो. ८.
पृ०८] एक वार ते पितानी साथे भारे कजियो करीने तेवू ज बीउँचित्रफलक चितरावीने एकलो भमतो भमतो तेज वणाटशाळामां आवी पहोंच्यो उयां भगवान चोमासु रह्या हता.
आ रीते गोशाळकनी उत्पत्तिनी कथा छे. हवे स्वामी एटले भगवान चोमासाना प्रथम मासखमणने पूरे करीने पारणाने दिवसे भिक्षा माटे गोचरीए नीकळ्या अने विजय नामना शेठने घरे आल्या.
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शेठे भगवानने आवता जोया, भगवानने जोतां ज घणो हर्ष थवाथी शेठने शरीरे रोमांच थई गयो अने विशेष भक्षणीय व्यंजनवाळी भोजनविधि द्वारा शेठे भगवानने पारणं कराव्यं. ज्यां भगवाने पारणं कर्यु त्यां पांच दिव्यो प्रगट थयां आकाशमां गम्भीर भेरीना घोषमिश्रित एवां चार प्रकारनां वाजां वाग्यां तथा सिंदूरना ढगला जेवी लाल सुवर्णनी धाराओनो वरसाद थयो. प्रथम दिव्यमां वाजा वाग्यां अने छेल्ला पांचमा दिव्यमां सुवर्णनो वरसाद थयो. तरभेटाओमां, चोकमां. चत्वरमां अने रस्ताओमां चारेकोर अनेक प्रकारे वाह वाह थई गई. आ हकीकत गोशाले सांभळी. तेथी तेणे विचार्य के आ देवार्य सामान्य माहात्म्यवाळा नथी माटे आ चित्रफलकना संप्रदायने तजी दई आ देवार्यं शिष्यपणुं स्वीकारूं. रत्नाकरनी सेवा निष्फळ जती नथी. ए रीते गोशालक विकल्प करतो हतो त्यां भगवान पारं करीने ते ज वणाटशाळमां आव्या अने कायोत्सर्ग ध्याने रह्या. गोशाळे पण स्वामीना चरणोमां साष्टांग प्रणाम करीने विनंति करी केहे देवार्य ! तमारुं आवुं माहात्म्य छे एम में पहेलां नहीं जाणेलुं अथवा मूकी राखेला रत्नोनुं मूल्य कुशळ माणस पण जाणता नथी. १. मारा बापनो में त्याग करी दीधेल छे ते स्वरेखर मारे माटे वांछित सुख मेळवी आपनार निवडयो. अथवा ज्यारे दैव अनुकूल होय छे त्यारे अनीति पण नीति बनी जाय छे. २.
तमने बहु कहेवानी जरूर नथी. तमारो शिष्य थाउं लुं. हे स्वामी ! शिष्य तरीके मारो स्वीकार करो. हवेथी मारे माटे तमे एक ज शरणरूप छो. ३.
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[पृ० ९] स्वामी पण आ विनंति सांभळीने पण हा के ना न कहेतां मौन रह्या. गोशाळक पण पोताना मनथी भगवाननो शिष्य बनीने भिक्षा द्वारा पोतानो निभाव करतो भगवान- सामीप्य छोडतो नथी. हवे बीजा मासखमणना पारणे भिक्षा माटे गोचरीए निकळेला भगवान आनंद नामना गृहपतिना घरमा प्रवेश्या. तेणे खाद्यविधि द्वारा भगवानने पारणुं कराव्यु. त्रीजा मासखमणना पारणे सुनंदना मंदिरे भगवाने सर्वकामगुणित आहारवडे पार' कयु. हवे चोथा मासखमणनो नियम स्वीकारीने भगवान रह्या छे. हवे चोमासुं पूरुं थवा आव्यु अने कार्तिक पूनमनो दिवस आवतां घणा दिवसनी सेवाने लीधे भगवाननो स्नेहभाव जाणीने गोशाले तेमने पूछथु के, हे भगवन् ! आवा वार्षिक महोत्सव वखते आजे हुं भोजनमां शुं मेळवीश ? आ वखते जिनवरना शरीरमां लीन थईने रहेलो सिद्धार्थ व्यंतर बोल्योहे भद्र ! आजे तने खटाशवाळो कोदरानो भात मळशे अने दक्षिणामां खोटो रूपियो मळशे. गोशालक आ वात सांभळीने सूरज ऊग्यो त्यारथी मांडीने तमाम आदर साथे ऊंचानीचा तमाम घरोमां भिक्षा माटे भमवा लाग्यो. ज्यां ज्यां जाय छे त्यां त्यां कांजीमां कालवेलो कोदरानो भात ज मळे छे. हवे रोंढो थवा आव्यो अने गोशालकने भूखतरस पण खूब लागी एथी ते हेरान थयेलो, ज्यारे बीजं कई खावानुं मळतुं नथी त्यारे एक लुहारे पोताने घरे लई जईने आंबलीना पाणीमां भींजवेलो कोदरानो भात तेने जमाड्यो अने जमी रह्या पछी छेल्ले तेने दक्षिणामां एक रूपियो पण आप्यो. ए दक्षिणा तेणे लीधी पण विशेषता ए हती के ए रूपियाने तेणे बजारमा बताव्यो
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अने रूपियो खोटो छे एम जणायुं. आ बनाव बन्या पछी गोशालके नक्की कर्यु के 'जे थवानुं होय छे ते थाय ज छे अन्यथा थतुं नथी' अने आम नक्की करीने तेणे नियतिवादने स्वीकार्यो. भगवान पण कार्तिकी पूनमने दिवसे ज नालंदा संनिवेशथी नीकळीने कोल्लाकसंनिवेशमां गया. त्यां ते वखते बहुल नामनो ब्राह्मण ते दिवसे पोताने घरे उत्तम ब्राह्मणोने दूधपाक जमाडे छे. चोथा मासखमणनुं पारणं करवानी वृत्तिवाळा भगवान भिक्षा माटे तेना घरमा प्रवेश्या. बहुले भगवानने जोया अने घृतमधुयुक्त एवं परमान्न- दूधपाक वहोराबीने भगवानने पारणं कराव्युं. त्यां पण पांच दिव्यो प्रगट थयां आ तरफ -
[पृ० १० ] हाथमा खोटो रूपियो लईने शरमने लीधे धीमे धीमे चालतो गोशाळा सांजनो वखत थतां वणाटशाळामां आवे छे. १.
वाटशाळामां जिननाथने नहीं जोतां संभ्रान्त बनेलो गोशालक वाटशाळानी पासे रहेनारा लोकोने तमाम प्रयास साथे वारंवार भगवानना समाचार पूछे छे. २
ज्यारे गोशालक ने कोईए जवाब न आप्यो व्यारे ते नालंदा संनिवेशन अंदर अने बहार चारे तरफ स्वामीनी तपास करतो करतो फरतो ज रह्यो. ३.
गोशालकने 'स्वामी क्यां गया छे ?' ए हकीकत क्यांयथी पण मळी नहीं. तथा ते विचारवा लाग्यो- मारो विधाता वांको छे. फरी वार पण तेणे मने एकलो रखडतो करी मेल्यो. ४.
एम लांबा समय सुधी जूरीने जूरीने चित्रफलक वगेरे उपकरणोने तेणे छोडी दीघां, कपडां काढी नाख्यां अने नीचेना होठ साथे माथा
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उपर हजामत करावीने ते (गोशालक) वणाटशळामांथी नीकल्यो अने जलदी जलदी चालतो ते कोल्लाक संनिवेशमां पहोंच्यो. त्यां पहोंचतां ज तेणे बहार लोकोने परस्पर आवी वात करता सांभल्या के बहुल ब्राह्मण धन्य छे, पुण्यवंत छे, जन्मनुं अने जीवननुं फल तेणे मेळवेल छे के जेने घरे तथाप्रकारना मुनिने दान देवाथी सोनानी वृष्टि थई अने देवोए 'अहो दानम् अहो दानम् एवी घोषणा करी तथा जगतमां तेनी निर्मळ कीर्ति थई, वाह वाह थई. गोशालक पण लोको पासेथी आ वात सांभळीने राजी थयो अने तुष्ट थयो. एम विचारवा लाग्यो के, आ लोको जे महामुनिनी वात करी रह्या छे तेवा प्रकारना तो ते ज मारा धर्माचार्य महावीर छे.
मारा धर्माचार्य सिवाय बीजा कोई श्रमण के ब्राह्मणनी, आ प्रकारनी प्रभावशालिता नथी, ऋद्धि सत्कार के पराक्रम पण नथी, एम निश्चय करीने ते कोल्लाक संनिवेशनी बहार अने अन्दर तमाम स्थानोने बराबर ध्यानपूर्वक जूए छे, त्यां तेणे कायोत्सर्ग करीने ध्यानमां ऊभेला भगवानने ज जोया. ते भगवानने जोईने खूब राजी थयो, राजी थवाथी ज तेने रोमांच थई गयो अने मुख प्रसन्न थई गयुं जाणे के पोते चिन्तामणिरत्नने मेळव्यु होय तेम मानतो भगवानने त्रण प्रदक्षिणा करीने [ पृ०११ ] भगवानना चरणोमां नमी पडयो, कपालमा बन्ने हाथ जोडीने भगवानने एम कहेवा लाग्यो
तुं असाधारण गुणनो समुद्र छो अने त्रण जगतनो पूज्य छो अने निष्फळ थयेला मनुष्यनो सहारो छो माटे ज तने आ विनंति करुं छु?
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- पहेलां हु वस्त्र वगेरेनो परिग्रह राखतो हतो तेथी दीक्षाने योग्य न हतो पण हवे में वस्त्र वगेरे परिग्रहनो त्याग करी दीधो छे तेथी दीक्षाने योग्य थयो छु. २.
तो हे त्रैलोक्यदिवाकर ! तुं मारो स्वीकार कर जेथी हुँ यावज्जीव तारो शिष्य थईने रहुं अने हवे तुंज मारो धर्मगुरु. ३
हे नाथ ! तारो मात्र थोडो पण विरह थतां तूटी जता हृदयने फरीवार तारा समागमनी इच्छाने लीधे में महाकष्टे धरी राखेल छे. ४.
जाणु छु के वीतराग पुरुषमां करवामां आवता स्नेहनो निर्वाह थई शकतो नथी तो पण प्रेमने लीधे घेला थयेला चित्तने केमे करीने अटकावी शकवानी मारी शक्ति नथी. ५. वळी बीजं--
बाकीचें तो भले दूर रह्यं पण ताजा कमळ जेवी विकसित मनोहर आंखे मारा तरफ नजर करे तोय घणुं छे. आटलाथी पण हुँ समजीश के तें मारो स्वीकार करले छे. ६.
___ ए प्रमाणे सविनय सस्नेह ते कहेतो रह्यो त्यारे प्रेमविकार विनाना पण त्रण जगतना प्रभुए तेना वचननो स्वीकार कों. ७ ____ भगवान तेनी दुष्टशीलता जाणता ज हता अने भविष्यमां तेना द्वारा जे अनर्थ थवानो छे तेने पण जाणता हता छतां मोटा लोको-महानुभावो नमी पडेला लोको तरफ कदी पराङ्मुखताने केमे करीने राखी शकता नथी. ८.
[पृ०११]एवी रीते शिष्य तरीके स्वीकारेल गोशालकनी साथे स्वामी सुवर्णखल नामना संनिवेश तरफ जता हता. वच्चे रस्तामा केटलाक गोवाळियाओ घणुं दूध लईने मोटी थाळीमां नवा अने आखा एटले
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कणकी वगरना आखा शालितंदुलनी खीर बनाववानी तैयारी करता हता. ए रीते पायस-खीर पकवनारा गोवाळियाने जोईने गोशालके भगवानने का हे भगवन् ! मने बहु ज भूख लागी छे. भूख्यो थयेलो हुं हेरान थई रह्यो छु, तो आप अहीं आ तरफ आवो अने तैयार थता पायसने आपणे जमीए. बोलवानी तक घणे वखते मळतां सिद्धार्थे कह्यु-हे भला माणस ! तुं दुःखी न था, खीर अडधी पाकतां ज आ थाळी फसकी पडशे. आ वात सांभळी सिद्धार्थनुं वचन खोटुं पाडवाना विचारथी पोताना दुष्टरीते बोलकणा स्वभावने लीधे गोवाळियाओ पासे जईने गोशाले का-अरे ! आ देवार्य भूत भविष्यनो जाणकार छे. ते एम कहे छे के, खीरनी आ थाळी अडधी खीर चडवा आवशे त्यां ज फसकी पडशे माटे तमे आ थाळी फसकी न पडे ए रीते तेने प्रयत्नपूर्वक स्थिर करो. आ आ सांभळीने ते गोवाळियाओ भयभीत थया अने वांसना पांदडांओ वडे मजबूत रीते थाळीने वींटीने रांधवा लाग्या. पण आ थाळीमां माय तेनां करतां वधारे चोखा भरेला होवाथी हसती एवी थाळी आंख उघाडीए एटली वारमा फूटी गई. पछी तो गोवाळिया थाळीनी खीरथी खरडायेल ठीब के कांठो जे हाथमां आव्यु तेने लईने चाटवा लाग्या. गोशालो पण कंदोईना बिलाडानी पेठे ए बधुं जोतो विलखो-भोठो पडयो अने आ बनाव बनवाथी तेणे हवे सारी रीते नियतिवादनो स्वीकार को. हवे स्वामी ब्राह्मणगाम गया. आ गाममां बे पाडा-महोल्ला हता. नंद अने उपनंद नामना बे भाईओ गामना स्वामी हता. भुवनगुरु पण छट्ठा तपना पारणा माटे नंदना वाडामां
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प्रवेश्या. तेमने नंदे जोया अने दहीं मिश्रित वासी चोखा वडे भगवानने प्रतिलाभ्या. गोशालो बीजा वाडामां गयो अने ऊँचो महेल जोईने उपनंदना ए महेलमां ते पेठो. गोशालाने भिक्षा माटे आवेलो जोई उपनंदे पोतानी दासीने कह्युं के आने भिक्षा आप अने दासीए गोशाळा माटे भिक्षामां आपवा वासी भात आण्यो. तेने नहीं लेवा इच्छतो गोशाळो उपनंदनो आ प्रमाणे फिटकार करवा लाग्यो
गाम पासेथी लांच ल्यो छो, राजाने कोई जातनो कर पण भरता नथी अने विविध विलासो करता रहने निरंतर पापने आचरता रहो छो. १.
[पृ०१३] तमारे आंगणे आवेला अमारी जेवा मुनिपुंगवोने भिक्षामां वासी भात देवरावता तमे केम शरमाता पण नथी ? २.
आ सांभळीने रोषे भरायेल उपनंदे दासीने कर्तुं के, हे भद्रे ! आ श्रमणना माथा उपर ज आ भातने फक अथवा वेरी दे.
दासीए खरेखर गोलशालकना माथा उपर भातने फेंक्या ज. आम थवाथी गोशालकनुं अभिमान झळकी ऊठ्युं, ते होठ करडवा लाग्यो भने एनां भवां ऊँचे चडी गयां, कपाळ लालचोळ थई गयं. बीजुं कांई पण नुकशान न करी शकतो होवाथी ते उपनंदना घरना बारणामां ऊभो रहीने कहेवा लाग्यो- मारा धर्माचार्यना तपनो प्रभाव होय वा तेना तेजनो प्रभाव होय तो आ अधम मनुष्यनुं भवन सळगी जाय हवे भगवान तरफ पक्षपात राखनारा अने
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आजुबाजु रहेनारा वाणत्यंतरोए अग्नि विकुर्यो एटले घरने आग लगाडी दीधी अने उपनंदनुं मंदिर बळीने राख थई गयु. ___आ पछी भगवान् चंपा नगरीमां गया अने तेओ त्यां त्रजु चोमासु रह्या. आ चोमासामां भगवाने एकसाथे बबे महिनाना उपवास करवानुं तपकर्म स्वीकार्यु तथा उत्कटुकआसन अने एवां बीजां अनेक आसनोमां रहीने ध्यान करवा लाग्या. बे मासना छेल्ला उपवास पूरा थतां अने तेनुं पारणुं बहार करीने भगवान गोशालनी साथे कालाय नामना संनिवेशमां गया । ए संनिवेशमां हालताचालता कीड़ीमकोड़ा वगेरे जीवात विनाना एकांतमां आवेला शून्य ऊजड घरमां भगवान रातने वखते प्रतिमाने स्वीकरीने ध्यान करे छे. गोशालो पण चपलताने लीधे शरीरना निरोधने सही नहीं शकतां त्यां ते घरना बारणानी पाछल छुपाईने बेसी रह्यो छे. एवामां सिंह नामनो गाममालिकनो पुत्र विद्युन्मती नामनी दासीनी साथे भोग भोगववाना विचारथी तेज ऊजड घरमा पेठो ज्यां भगवान ध्यानमां ऊभा हता. ए सिंहे मोटो घांटो काढीने पुज्यु के, अहो ! आ ऊजड घरमां कोई श्रमण, ब्राह्मण के कोई मुसाफर रह्यो होय तो झट कही दे जेथो अमे बीजे चाल्यां जइये । आ सांभळीने भगवान तो प्रतिमा स्वीकारीने ध्यानमा मौन हता तेथी न बोल्या पण पेला बीजा गोशालके पण लुच्चाईथी कशो जवाब न दौधो. कशो जवाब न मलवाथी ते बन्ने जणां ए शून्यधरमा पेठां अने निर्भयपणे सुरत बिनोदनी क्रीडा करी थोडी वारमा त्यांथी बहार नीकलवा लाग्यां.
१. गाय दोहनार गोवाळ जमीनने पोतानी पूंठ वडे दाब्या विना जेम ऊभडक बेसे छे तेम बेसवाने 'उत्कटुक' आसन कहेवाय छे.
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[पृ०१४ ] ए बखते बारणाना भागनी अंदर संताईने बेठेला गोशालके ए घरमाथी बहार नीकळती विद्युन्मतीनो चाळो करीने स्पर्श कर्यो. एथी विद्युन्मतीए सिंहने कह्यं के, आर्यपुत्र ! अहीं मने कोईए पण स्पर्श कर्यो. आ सांभळीने सिंह पाछो वळयो अने गोशालाने हाथथी पकडीने कां के, अरे, तुं लुच्चाईथी अमारां अनाचारोने जुए छे, में घांटो काढीने पूछयुं छतां 'अहीं हुं रहुंछु' एम जवाब देतो नथी. ए रीते तेने सारी रीते फटकार आपी लाकड़ीओ मारीने तेने सारी रीते पीट्यो अने पछी ते सिंह पोताने स्थाने गयो पछी
गोशाळक जिन भगवानने कहेवा लाग्यो के, तमारा देखतां कोई पण कारण विना मने एकलाने पीटवामां आव्यो अने निठुर रीते सारी रीते गूंदवामां आव्यो. १.
मने पीटनार पापीनुं तमे थोडुं पण निवारण करता नथी. मने मारवा माटे उद्युक्त थयेल मनुष्यनी तमे गुरुजनो थइने उपेक्षा करो ए शुं योग्य छे ? २.
हवे भगवानना शरीरमा रहेलो सिद्धार्थ गोशालक ने कहे छे के, रे दुष्टशील ! जो तने पीटवामां आग्यो होय ते बात साची ज होय तो ते शुभ समाचार गणाय अथवा सुखसमाचार गणाय. ३.
तुं ए बहार निकळती स्त्रीने कई पण निमित्त विना शा माटे अड्यो ? जेम अमे अहीं लीन थईने हल्याचल्या विना रहीए छीए तेम तुं पण घरनी बच्चे रहेलो चाळा कर्या वगर लीन थइने केम रहेतो नथी ? ४.
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अमे तारो पक्ष लइए तो अमने पण खरेखर मार ज पडे. जे लोको दुष्ट लोकोनो पक्ष करे छे तेओ निर्दोष होवा छतां सदोष थई जाय छे. ५
आ वखते स्वामी त्यांथी नोकलीने पत्रकाळ गाममां गया अने आगळ जणावेली विधिवडे ज त्यां ऊजड़ घरमा प्रतिमा स्वीकारीने ध्यानमा रह्या. ६.
हवे गामधणीनो- गामेतीनो खंद नामनो छोकरो घरे पोतानी स्त्रीनी शरम लागतां त्यां ऊजड घरमां राते पोतानी दासी साथै आव्यो. ७.
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[पृ० १५] ए दासीनुं नाम दंत लिया हतुं तेणे एटले गामेतीना पुत्रे पण पेला सिंहनी जेम घांटो काढीने ए घरमा कोइना होवा विषे पूछयुं. भगवान तो मौन हता अने गोशालक भयने लीधे घरना कोई भागमां संताईने बेठो हतो ते पण कई न बोल्यो. ८.
कोईनो जवाब न मलवाथी आ स्थळ विजन छे एम मानी ए बन्ने जणां ए घरमा पेठां अने गामेतीना पुत्रे ए दासीनी साथे यथेच्छ भोग भोगवी पछी ते गोमतीनो पुत्र त्यांथी बहार नीकळवा लाग्यो. ९.
हवे ज्यारे ए बन्ने जणां घरमां हतां त्यारे तेमनी बच्चे थयेल वातचीत सांभळीने वधारे खुश थयेलो गोशालो खीखी करतो पिशाचनी जेम हसवा लाग्यो. १०.
ते गोशालकनो हसवानो अवाज सांभळीने खंद रोषे भरायो अने लाकडियो तथा मृठीओ वडे गोशालकने बराबर मेथापाक
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जमाड्या पछी ज तेने जवा दीधो. ए रीते खूब मार खाइने ते श्रीजिन भगवाननी पासे आव्यो. ११.
आवीने उपालंभ आपवा साथे ते कहवा लाग्यो के नायकनो शुं आवो धर्म छे ? तमारा जोतां पण मने आ रीते कोई आवीने मारी जाय ? १२. ___ मारी रक्षा माटे तो खूब प्रयत्न करीने में सदाने माटे तमारो आशरो लीधेल छे. हवे तमे मारी रक्षा न करो तो खरेखर तमारी सेवा करवी निरर्थक ज छे. १३.
हजो सुधी तो एम बनतुं आवेल छे के, मालिको-प्रभुलोको दोषवाला पण पोताना सेवकोनो तमाम रीते बचाव ज करता आव्या छे. तो पछी जे सेवको नीतिपरायण होय तेमनो तो बचाव जरूर करवो जोइए ज.१४.
सिद्धार्थे तेने जवाब आप्यो के, हजु तो तें मार क्यां खाधो जछे ? अथवा तने मार क्या पडयो छे: हजी पण तारा मोंढाना दोषने लीधे एटले तारी बकबादीपणानी टेवने लीधे तने घणो घणो मार पडशे-एवं कोई दुःख नथी जे तने न मळे. १५.
आ पछी स्वामी कुमार संनिवेशे गया. अने त्यां चंपकरमणीय नामना उद्यानमा बन्ने हाथ पग तरफ नीचा लंबाबीने कायोत्सर्ग करीने ध्यानमा रह्या. ते संनिवेशमा कुवणय नामनो कुंभार रहे छे. ए कुंभारनी पासे अपरिमित धन अने धान्यनी समृद्धि छे, तेने मद्य पीयूँ घणुंज प्रिय छे. तेनी दुकानमां पार्श्वजिनना शिष्य मुनिचंद नामना आचार्य निवास करे छे. ए आचार्य स्वसमय अने परसमयना अर्थों
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जाणवामां कुशल पृ०१६], संसारसागरमां पडता प्राणीओनो उद्धार करवामां समर्थ, आचार्थना छत्रीशगुणरूप रत्नोना सागर छे तथा भगवाने उपदेशेली उत्तम यतिक्रियानुं प्ररूपण करवामां तत्पर एवा ए आचार्यनी पासेथी अनेक देशदेशान्तरथी आवेला विनयवाला शिष्यरूप भमरो शास्त्रज्ञानरूप मकरंदने पी रह्या छे. ते आचार्य घणा वृद्ध थवाथी आम विचार करे छे
सर्वज्ञ भगवाने बोधेला धर्मने बधे स्थाने फेलावो करवानुं काम करेल छे, मिथ्यात्वने लीधे अज्ञाननिद्रामां सूतेला घणा जीवोने जगाडवाने एटले तेमनुं अज्ञान दूर करवानुं य काम करले छे. १.
सूत्रोनुं अने अर्थनुं ज्ञान आपीने शिष्यो पण हवे यथाशक्ति तैयार करी दीधेल छे, जेमां नाना साधुओ छे अने वृद्ध' साधुओ पण छे-एवा गच्छर्नु संचालन रक्षण लांबा काळ सुधी करले छे. २.
आ बधुं काम करी लीधेल छे माटे हवे मारे विशेष साधना माटे शरीरने तैयार करवू ए विशेष युक्त छे. तेथी हवे ए तैयारीमा यथाशक्ति सर्वप्रकारे उद्यम करवो जोईये. ३. ___ आम विचारीने ते आचार्ये पोतानी तमाम जवाबदारीओने बराबर अदा करे एवो वर्धन नामनो योग्य गुणवाळो शिष्य पोतानी गादी उपर स्थपित कर्यो. ए शिष्यने आखा साधु समुदायने साचववानी आज्ञा आपी. ४. __आचार्ये शिष्यने गादीए बेसाडतां का के, हे पुत्र ! जेम में आ साधुना गच्छने प्रयत्नपूर्वक साचवेल छे तेम तारे पण हवे सदाकाळ आ गच्छने साचववानो छे. ५.
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परिश्रम के थाकनो विचार कर्या विना तारे तेमने सिद्धांत शास्त्रोनो उपदेश आप्या करवानो छे. जे शिष्यो आम करे छे तेओ गुरुनी देवादारीमाथी छूटी जाय छे अने तेनां कर्मों पण नाश पामे छे. ६.
हे भद्र ! खरेखर त्रण जगतमां आ काम करतां बीजं कोई काम उत्तम नथी माटे आरामतलबी थईने तुं तारो जन्म नकामो न गुमावीश, ७. __पछी आचार्य मुनिओने पण का के, हे मुनिओ ! तमारे आ नवा आचार्यना वचन प्रमाणे वर्तवानुं छे. कदाच आ नवा आचार्य तमने वारंवार लढे के तमने उपालंभ आपे तो पण तमारे एनां चरण कमलो छोडवां ज नहीं. ८.
[पृ०१७]वळी आचार्ये शिष्योने कां के, पहेलां में तमने सारी रीते गुणोमां स्थापित न कर्या होय अने कदाच अयोग्य शिक्षा आपी होय तो ते बधा दोष माटे तमारे मने क्षमा आपवी जोईए. ९.
ए प्रमाणे भारे धीरजवाळा आचार्य मुनिचन्द्रे तत्कालोचित विधि करीने दुष्कर एवा जिनकल्पनो अभ्यास करवानी शरूआत करी दीधी. १०.
हवे ते आचार्य महानुभाव बार प्रकारनी भावनाओ भावता तप, सत्त्व, सूत्र, एकत्व अने बलरूप पांच प्रकारनी तुलनाओमांथी बीजी सत्त्वतुलना एटले आ साधना माटे पोतामां सत्त्व केटलुं छे तेनुं निरीक्षण करता आत्माने भावित करता रहे छे. आ तरफगोशालक बपोरना वखते भगवंतने कहेवा लाग्यो के, 'आप आवो.
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संग आवे छे एटले वखत थई गयो छे. माटे आपणे भिक्षा निमित्ते गाममां प्रवेश करीए. सिद्धार्थे कां- भिक्षा माटे अमारे फरवानी जरूर नथी. पछी गोशाळो एकलो ज भोजन माटे गाममां पेठो अने एवी भिक्षा माटे आमतेम फरतां फरतां पेला पार्श्वनाथना शिष्योने जोया. पार्श्वनाथना ए साधुओ पासे कपडां वगेरे विचित्र प्रावरणो हतां अने पात्र वगेरे बीजां उपकरणो हतां. तेमने जोईने गोशाले पूछयुं - तमे कोण छो ? तेओए जवाब आयो - अमे निग्रंथ श्रमणो छीए अने शठ एवा कमठे महामेघ वरसावीने मेघनी तीक्ष्ण धाराओ वडे जेमने त्रास आपेलो अने ए जोई व्याकुल थयेला नागराजे पोतानी फणाना फलक विस्तारी जेमने मोटुं छत्र धरेल हतुं अर्थात् कमठना त्रासमांथी जेमनी रक्षा करी हती एवा पार्श्वनाथ भगवंतना अमे शिष्यो हीए. आ वात सांभळी माथाने धुणावीने गोशाळो तेमनो परिहास करतो बोल्यो -अहो ! अहो ! तमे भारे मोटा निर्ग्रन्थो जोया, तमे बहु आकरुं तप करो हो ए जोयुं, तमे आटलो बधो ग्रंथ एटले परिग्रह धारण करो छो छतां य पोतानी जातने निर्बंथ कहो छो ए भारे आश्चर्य कहवाय, आ तो तमे प्रत्यक्ष जूटुं ज बोलो छो. तमारुं आ कारण विनानुं अभिमान छे, खरी रीते तो तमाम रीते जेओ निर्ग्रन्थ होय छे तेमां तमारो समावेश न थइ शके. मारा धर्माचार्ये ज नहीं त्याग करी शकाय एवां वस्त्र वगेरे परिग्रहनो त्याग करेल छे तथा कठोर तपना आचरणमां ते तल्लीन छे माटे एज महात्मा यथार्थ रीते निर्ग्रन्थ कही शकाय. आ वात सांभळी भगवानने नहीं जाणता एवा पार्श्वनाथना शिष्योए गोशालकने
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आ रीते उद्धताईथी बोलतो जाणीने का के, भला भाई जेवो तुं छे एवो ज तारो धर्माचार्थ हशे एम अमने लागे छे. [पृ०१८] पुत्रनां अनुचित आचरणो जोईने मातानां आचरणोनी कल्पना आवी जाय छे, कांतिनो गुण जोईने रतननी खाण सारी छे के नरसी तेनो ख्याल आवो जाय छे, ए ज रीते तने जोवाथी तारो गुरु केवो हशे तेनो भास आवी जाय छे. माटे हवे बधारे वर्णन करवानी जरूर नथी. पार्श्वनाथना शिष्योनी आ बात सांभळी गोशाळो रोषे भरायो अने बोल्यो के, मारा धर्मगु. रुना तपनो प्रभाव होय के तेजनो प्रभाव होय तो मारा धर्माचार्यने दूषित करनार एवा आपनो उपाश्रय बळी जाय. पछी पार्श्वनाथना शिष्योए कह्यु के,तारा वचनथी अमे बळी जवाना नथी. आ रीते भोंठो पडीने ते स्वामीनी पासे आव्यो अने बोल्यो के, हे भगवंत ! आजे में आरंभवाळा अने परिग्रहवाळा निग्रंथो जोया अने पछी (आगळ आवी गयेली वात बधी अहीं कहेवी) में आपर्नु नाम दईने तेमनो उपाश्रय बळवार्नु कां पण तेमनो उपाश्रय तो बळ्यो नहीं तो एनुं शुं कारण होई शके ? सिद्धार्थे का के, ए स्थविर साधुओ तो पार्श्वनाथना अपत्य शिष्यो छे, तारा वचनथी तेनो उपाश्रय बली शके नहीं. एवामां अहीं रात पड़ी गई. चारे दिशाओमां काजळ अने भमरा जेवां काळां अंधारां फेलाई गया. आ तरफ ते मुनिचंद्रसूरि ते दिवसे रात्रे चोकमा एकला ज कायोत्सर्गे ध्यान धरी रह्या हता. हवे पेलो कूषणय कुंभार पोतानी नातना भोजनमां खूब दारू पीने मस्त बन्यो हतो अने परवश पडेलो ते लयडियां खातो खातो
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पोताना घर तरफ आवतो हतो. तेणे बहार चोकमां कायोत्सर्ग ध्याने रहेला ते आचार्यने जोया अने तेना मनमां 'आ चोर छे, आ चोर छे' एवो विकल्प ऊठवाथी पोताना बन्ने हाथ मजबूत रीते भेगा करीने तेमनुं गळू दाबी दीधुं, एम करतां ए मुनिनो श्वास रंधायो, आम अचानक दुःख आवी पडवा छतां तेमनुं चित्त शुभ ध्यानथी चलित न थयु अने शुभध्यानमा निरन्तर वर्तता हलवा कर्मी एवा ते आचार्यने अवधिज्ञान थयुं अने पछी तत्क्षण काळधर्म पामीने देवलोके गया. आ वखते पासे--आजुबाजु-रहेनारा देवोए फूलोनो वरसाद वरसाव्यो अने तेमनो मृत्युमहोत्सव कॉ. गोशाळो आ बधुं जोतो हतो तेणे साधुना उपाश्रय पासे विजळीना पुंजनी पेठे चमकता देहवाळा देवोने आकाशमांथी ऊतरता अने उपर चडता जोया एटले तेने एम लाग्यु के एमनो उपाश्रय बळी रह्यो छे. आम जणायाथी ते भगवानने कहेवा लाग्यो के, हे भगवंत ! तमारा विरोधी एवा ते साधु . ओनो उपाश्रय बळी रह्यो छे. सिद्धार्थ कडं के, भद्र ! तुं एवी आशंका न कर, खरी वात एम छे के ते साधुओना आचार्य काळधर्मने पामीने देवलोकमां गया छे अने देवो तेमनो मृत्युमहोत्सव करे छे. आ वात सांभळी ते कुतूहलने लीधे ए स्थाने गयो, देवो पण पूजा करीने पोताने स्थाने पाछा फर्या. हवे ते जग्याए छांटेल सुगंधी पाणी अने फूलोनो पडेलो वरसाद जोइने गोशाळाने बमणो हर्ष थयो.
पृ०१९] पछी ते उपाश्रयमां जईने स्वाध्याय ध्यान तथा सेवा करवानी प्रवृत्तिथी थाकीने भर ऊंघमां सूतेला ते शिष्योने उठाडीने कहेवा लाग्यो के, अरे ! दुष्ट शिष्यो ! तमे माथु मुंडावीने ज हीडी
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नीकल्या छो पण बीजं काई जाणता लागता नथी अने धराई धराईने भरपेट मेळवेल भिक्षा खाईने रात आखी ऊंध्या ज करो छो. एटलं पण जाणता नथी के तमारा महानुभाव आचार्य काळधर्म पामी गया छे. अहो ! गुरु तरफ तमारो आ केवो स्नेह संबन्ध छे ? आम ते गोशालो जोर जोरथी कलबल करवा लाग्यो. एटले ते साधुओ जागी गया अने गोशालानां वचन सांभळीने शंकित थयेला ज्यां गुरु ध्यानमा रह्या हता ते जग्याए एकदम उतावळा उतावळा पहोंच्या अने जोयुं तो मालुम पड्यु के आचार्य काळ करी गया छे. आ वात जाणी पछी तो तेओ लांबा वखत सुधी ढीला पड़ी जई पोतानी धीरज खोई बेठा. केवी रीते ?
तमे सारी रीते अमने साचव्या हता, तेमज भणाव्या हता अने अमारामां गुणो आवे एम तमे प्रयत्न पण कर्यो हतो तथा तमे अमने शिखामण पण खूब आपी हती. हाय ! हाय ! अमे केवा अकृतज्ञ छीए के तमारा काळधर्म वखते तमारी सेवा न करी शक्या. १
छेवटे अमे तमारी सेवा न करी शक्या तेथी अमे करेलां कठोर तपथी शुं वळे ? अथवा अमने शास्त्रबोध सारो छे एथी पण शुं वळे ? अने लांबा काळ सुधी अमे गुरुकुलवासमां रहीने सेवा करी ते पण निष्फळ गई एटले एवी सेवाथी पण शुं वळे ? २.
असाधारण संयमरत्ननां रत्नरोहण समान एवा तथा प्रत्यक्ष धर्मना समूहरूप एवा पोतानाा काळधर्म पामेला गुरुने पण प्रमादने लीधे अमे न जाणी शक्या. ३.
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आ प्रमाणे पाताथी थयेली आ गफलतने वारंवार संभारता तथा बोलता एवा ते श्रमणोने गोशाळे बहु फिटकार आप्यो अने पछी ते स्वामी पासे आवतो रह्यो. ४.
पछी स्वामी चोराक संनिवेशमां गया. त्यां ते दिवसे परचक्रनो भय एटले शत्रुराजा तरफनो भय ऊभो थयो हतो. ए भयने लीधे तरभेटाओमां, चोकोमा शून्य-ऊजड-मठोमां, गामलोकोनी सभानास्थानोमां-चोराओमां, देवळोमां, वनमां अने उद्यानमां तथा तेवां बीजां बीजां स्थानोमां पण चारे तरफ चोकीदारो फरता हता अने त्यां जे कोई अपूर्व पुरुष एटले नवो पुरुष जोवामां आवतो तो 'आ कोई शत्रु तरफी गुप्तचर छे' एवो शंका लावीने तेनी हिलचाल जोया करता हता. हवे भगवानने निर्दोष अने ऊजड-विजन-एवा वन निकुंजमां जइने ध्यान धरता ते चोकीदारोए जोया अने साथे गोशाळाने पण जोयो. आ बन्नेने आम एकांतमा जोईने 'भय पामेलो भयोने जुए छे' एने न्यायने आधारे ते चोकीदारोना मनमां पण तेमने विशे शंका पडी अने ए चोकीदारो विचारवा लाग्या के, अहो ! आवा एकांत पृ०२० स्थानमा आमनुं रहेवू कुशळरूप नथी. तेओए विचार्युके जो आ लोको निर्दोष ज होय तो गामनी वच्चे जइने प्रगटपणे-खुल्ली रीते केम कहेता नथी ? माटे कोई आ बन्ने शंकास्पद छे अने नक्की कोई गुप्तचरनी शोध माटे आ लोको शत्रुराजा तरफथी अहीं आवेला लागे छे. आम निश्चय करीने ते चोकीदारोए स्वामीने अने गोशालकने पूछयु के, अहो ! तमे कोण छो ? वा शा माटे अहीं रह्या छो. आ सांभळी भगवान तो मौन रह्या अने गोशालक पण भग
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ननुं अनुसरण करीने कांई न बोल्यो. एथी ए चौकीदारो आमने वारंवार पूछवा लाग्या छतां य पण ज्यारे तेओ तरफथी कोई जवाब न मल्यो तो चोकीदारोने खात्री थई गई के जरूर आ बन्ने कोई चर पुरुषो छे. आम धारीने ते बन्नेने कूवाना कांठे लई जवामां आव्या अने वरतथी - दोरडाथी - बांधीने चोकीदारो ते बन्नेने कूवामां नांखवा लाग्या. प्रथम गोशालकने नाख्यो अने तेने गोशालकने - कुवामां उतारीने पछी भगवानने कूवामां बोळवा लाग्या. आ रीते ते चोकीदारो गोशालकने अने भगवानने कुवामां झबोलवा लाग्या एटले घडीकमां तेमने झबोळे अने घडीकमां उपर लावे आ रीते तेमने उन्मज्जन अने निमज्जन करावया लाग्या त्यारे बराबर ते वखते ज सोमा अने जयंती नामनी वे परिवाजिकाओ त्यां आवी पहोंची. ए. बन्ने पहेलां श्री पार्श्वनाथ जिन पासे दीक्षित थईने श्रमणी साध्वी थयेली पण पछी श्रमणीपशुं पाळी न शकवाने लीधे अने श्रमणीदशामां आवता परीषहोथी पराजित थइने एटले आवता परीषहोने सहन न करी शकवाने लीधे पोतानी आजीविका चाले ए माटे परिव्राजिकानो वेश राती हती अने ते बन्ने जेनुं नाम आगळ आवी गयुं छे एवा उत्पल नामना नैमित्तिक- ज्योतिषिकनी बहेनो हती. भगवानने पकड्या छे अने चोकीदारो तेमने बांधीने कूवामां झबोले छे ए वात सांभळीने एमने शंका थई के रखेने दीक्षा स्वीकारेल चरम तीर्थकर भगवान झबोळाता होय. आवी आशंकाने लीधे ए बन्ने कूवा पासे आवी पहोंची अने ते बन्ने परिवजिकओए जोयुं तो खरेखर भगवानने ज कुवामां डुबकी खवराववामां आवता हता. आ जोईने बन्ने बहेनोए पेला
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चोकीदाशेने कयु के, अरे रे दुराचारी ! सिद्धार्थ राजाना पुत्र, देवो जेमना चरण पूजे छे एवा आ भगवानने तमे आम कष्ट आपो छो एटले तमे जरूर मरी जवाना थया छो-नाश पामवाना छो. आ वात सांभळी चोकीदारो भयभीत थई गया अने जगगुरु भगवानने बहुमान करीने छोडी देवामां आत्र्या तथा भगवान पासे तेओए क्षमा मागी. पछी ते बन्ने बहेनो भगवानने भावपूर्वक वन्दन करीने पोताने स्थाने चाली गई. स्वामी पण त्यां ज केटलाक दिवस बीतावीने गोशाळकनी साथे तमाम नगरोमां शोभारूप एवी पृष्ठचंपा नगरीमा चोथु चोमासुं करवा आव्या अने त्यां वीरासन, लंगडासन वगेरे आसनो द्वारा काळने वीतावे छे अने चातुर्मासिक उपवासचारे महिनाना उपवास करीने रहे छे. ___ ज्यारे चातुर्मासिक उपवास पूरा थया त्यारे पारणाने दिवसे पार' करीने कयंगल नामना संनिवेश तरफ विहार करवा लाग्या. त्यां दरिद्रस्थविर' नामना संप्रदायमा रहेनारा लोको-साधुबाबा रहे छे. तेओ आरंभ-समारंभ करनारा छे, स्त्रीओ साथे रहेनारा छे, परिग्रहधारी छे, पुत्र दौहित्र वारे स्वजनोवाळा छे. तेमना घरमां, वाडामां, महोच्लामां तेमना संप्रदायर्नु एक देवल छे. ए देवलमा तेमनी कुळ एरंपरायी चाल्या आवता देवतानी मूर्ति छे, देवलनी पडशाळ-परसाळ घणी विशाळ छे अने तेने लीधे देवळ मनोहर लागे छे. तथा ए देवळ ऊपर ऊँचु शिखर होवार्थी ते वधारे शोभायमान लागे छे. ते देवळना एकांतना खूणामां आवाने स्वामी प्रातमा बडे-ध्याननी.
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मुद्रावडे त्यां रह्या. ते दिवसे अति ठंडो वायु चालतो हतो अने साथे झाकल पडतुं हतुं. साथे शिशिरना वायुने लीधे खूब वधारे शीत पडतुं हतुं एटले असह्य ठंडी हती. ते दिवसे ते दरिद्रस्थविर पाखंडीओनो-धर्मना अनुयायीओनो एक मोटो उत्सव हतो एटले ए लोको बाळको साथे अने स्त्रीओ साथे मलीने भक्तिथी ए देवळमां आवीने गाता हता अने नाचता हता. ते लोकोने आ रोते नाचता अने गाता जोइने भविष्यमा थनारा भयने नहीं गणकारीने गोशाळाए तेमनो उपहास करवा मांड्यो अने ते कहेवा लाग्यो के जे संप्रदायमां गृहिणीओ साथे प्रेमनो व्यवहार करवानी बात आवे छे तथा ध्यान अध्ययन साथे जेने महावैर छे, अने जेनां शास्त्रो सुरत - कामक्रीडा विधाननां प्ररूपणोमां तत्पर छे एटले कामक्रीडानां विधान करनारां छे. १.
खरेखर जे संप्रदायमां स्वप्ने पण जीवदयानुं नाम जणातुं नथी, तथा जे संप्रदायमा खूब खूब मद्य पीवा सारु नित्य उद्यम करवामां आवे छे. २
ज्यां भक्तिनुं नाम लईने पोताना कुटुम्बो साथे विलासपूर्वक खूब गानतान करवामां आवे छे तथा ए ज रीते नाच करवामां आवे छे. आवो पण आ कोइ पाखंड - संप्रदाय - धर्म परमार्थी होई शके खरो ? ३
आ रीते कठोर वाणी द्वारा पोताना संप्रदायनी गोशालकने निंदा करतो जोईने तेओ बघा दरिद्र स्थविरो रोषे भराया अने एकबीजा वात करवा लाग्या के, अरे ! आ काळमुखाने बहार फेंकी घो. तेने अहीं रहेवा दइने शुं काम छे ? एम कहीने तेमांना बीजा
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केटलाकोए तेने पकडीने देवळनी बहार काढी मूक्यो. देवळनी बहार आववाथी ते गोशाळो सखत टाढने लीधे अने कायाने वींधी नाखे तेवा सखत ठंडा पवनने लीधे भारे पीडा पाम्यो, तेणे टाढ न लागे माटे पोताना बन्ने हाथ खूब भीडीने छाती उपर ढांकी राखेले शरीरे थरथरवा लाग्यो, दांतनी वीणा वागवा लागी अने तेने आखे शरीरे सखत ठंडने लीधे रोमांच थई गयो अने ए रीते टाढथी पीडायेलो ते बहार धूजतो धूजतो पड्यो रह्यो. आम तेने-गोशालकने थरथरतो जोइने पेला दरिद्रस्थविरोने दया आवी अने तेने पाछो देवळमां आववा दीधो. देवळमां आवतां ज तेनी टाढ ओछी थई गई पण ते पोताना बोलकणा [ पृ० २२ ] खराब स्वभावने रोकी न शकवाथी फरी पाछो ए संप्रदायनी आगळ कह्या प्रमाणे कठोर भाषा द्वारा निंदा करवा लाग्यो. आम पोताना संप्रदायनी निंदा करतो तेने जोईने ते लोकोए एने फरी बहार काढयो अने फरी पाछो देवळमां आववा दीधो. आम त्रणवार कयु. हवे देवळमां प्रवेश पामेल गोशालो चोथीवार तो आम कहेवा लाग्यो
अहीं जेने विशे वात करी शकाय एम नथी एवा निज मतना विकल्पनी वात तो दूर रही पण अहीं साची वात पण बोली शकातो नथी. हुं शुं करूं ? १
पोताना दुश्चरित्र उपर ज्यां थोडो पण रोष करवामां आवतो नथी एवा आ स्थाने त्रिसंध्य एटले सवारे, बपोरे अने सांजे एम त्रणकाळ नमीए छीए. पण जो कोई स्फुटवादीओ एटले स्पष्टवक्ता-सत्यवक्ता होय तो जरूर रोष करे. अथवा पोताना दुश्चरित्र उपर तो
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रोष करवामां आवतो नथी पण जेओ स्फुटवक्ता छे तेमना उपर ज रोष. करवामां आवे छे. २
गोशाळानी आ वातो सांभळीने जेमनी बुद्धि परिपक्व छे एवा लोकोए कह्यं के, आ देवायनो आ कोई पीठवाहक हशे के छत्रधारक हशे के सेवक हशे. अरे ! एनाथी शुं थवानुं छे एटले एना बोलवाथी आपणने कांई हरकत थवानी नथी माटे भले ए बोलबोल करतो. तमे सो मूंगा रहो अने पोतपोतानां कार्य तरफ सावधान रहो. जो एनी वातने सांभळी न शकता हो तो एक साथे बधां वाजां वगाडवा लागो. एम करवाथी एनो अवाज संभळाशे नहीं. ए पछी ए लोको बधां ज वाजां वगाडवा लाग्या. हवे सवार थतां, सूर्य ऊगतां अने जीवजन्तुओ प्रत्यक्ष जोई शकाय एवो वखत थतां स्वामी-भगवान पोताना ध्याननी समाप्ति करीने ते स्थानेथी सावत्थी-श्रावस्ती नगरी भणी गया, भने त्यां बहारना भागमा प्रतिमा स्वीकारीने रह्या. आ तरफ जमवानो वखत थतां गोशाल पूच्यु के, हे भगवान् ! तमे भिक्षा माटे जवाना छो? सिद्धार्थ जवाब आप्यो के, आजे अमारे उपवास छे. पछी फरी मोशाले भगवानने पूछचु-आजे हुं केवु नोजन करीटा ? सिद्धार्थे जवाब दीधो के, आजे तने माणसनुं मास खावानुं मळशे. गोशालो बोल्यो के, जेमां बीजा पण कोई प्राणीओ मांस न होय एवं ज भोजन आजे मारे खावानुं छे तो पछी जेमां माणस मांस होय एवा भोजननी तो शी वात ? एटले माणसनां मां पवाळु भोजन तो हुँ खावानो ज नथी. आम निश्चय करीने ते भिक्षा माटे बधे हाडवा-फरवा लाग्यो.
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हवे आ तरफ - तेज नगरीमां- श्रावस्ती नगरीमां ज प्रियदत्त नामे एक गृहपति रहेतो हतो, तेनी स्त्रीनुं नाम श्रीभद्रा तेने मरेलां छोकरां जनमतां. पोताने छोकरुं जीवे ए माटे तेणी मंत्रवादीओनी सेवा करे छे, [ पृ० २३] जोशीओने पूछे छे, विशेष भक्ति साथे देवोनी पूजा करे छे, तो पण तेनी स्थितिमां कोई फेरफार नहीं थयो . हवे ए वखते तेणीना प्रसूति समये त्यां शिवदत्त नामनो कोई सुप्रसिद्ध जोशी आवी चड्यो ए शिवदत्तने पेली श्रीभद्राए पूछचं के, मारी प्रजा शी रीते जीवी शके ? ए जोशीए कह्यं के, ताजा तरतना जन्मेला मरेल बाळकने तेना लोही अने मांस साथ पीसीने - वाटीने तेमां दूध नाखी खीर रांधीने तेमां घी तथा मध मेळवी ते खीरने सुसंस्कृत एटले सरस रीते मसालेदार बनावीने जेना पग धूळथी खरडायेल छे एटले जे फरतो फरतो भिक्षा माटे आवतो होय तेवा सारा कोई तपस्वीने ए खीर बहुमानपूर्वक वहोराव एटले ए वीरवडे एवा उत्तम तपस्वीाने भोजन कराव तो तने स्थिर प्रजा जनमशे. पण ए ध्यान राखजे के ज्यारे ए तपस्वी भोजन करी चूके अने पोताने स्थाने जाय त्यारे तारा आ घरनुं बारणं फेरवी नाखजे. जो ए तपस्वी जाणशे के तें एने मनुष्य मांसवाळी खीर आपेल छे तो ते तारुं घर बळी जाय एवो शाप आपशे अने तारुं घर बळी जो श्रीभद्राए आ वात स्वीकारी अने जोशीए जेम कहेल हतुं ते बराबर कर्तुं अने भोजन करीने तपस्वी गया पछी घरनुं बारणं पण बदली नांखवानुं नक्की करें. हवे ते दिवसे न श्रीभद्राए मरेला बाळकने जनम आप्यो पण पछी ते पेला जोशीना कया प्रमाणे
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वीर तैयार करने वारणामां बेसी कोई अतिथिनी वाट जोई रही छे. त्यां एवखते फरतो फरतो वचमां आवतां अनेक घरोने वटावतो वटावतो श्रीभद्राना घर पासे गोशालक आवी पहोंच्यो श्रीभद्राए तेने जोई तेने आदरपूर्वक पोताने त्यां आवीने भिक्षा माटे निमंत्रण आप्युं. ते घरमा पेठो, श्रीभद्राए आसन आप्युं, तेना उपर ते बेठो, तेनी सामे भोजन मूक्युं अने तेमां घी अने मध साथे सारी रीते पकावेल खीर पीरसी. आमां मांसनो संभव केम होई शके ? एम पोतानी बुद्धिश्री निश्चय करीने गोशालाए ए खीरने संतोषपूर्वक खाधी. खाई कराने ए तो भगवाननी पासे गयो. पछी थोडं हसीने भगवानने कहेवा लाग्यो के, हे भगवान् ! तमे अव्यार लगी जे भविष्य कहेल अर्थात् तमे अत्यार लगी जे जोश जोया ते खरा पड्या पण आजे तो तमारा जोश खोटा पड्या छे. सिद्धार्थे कीं के, हे भलामाणस तुं आम उतावळो था मा. अमे तने जे कहेल छे ते तद्दन खरुं छे. जो तने विश्वास न आवतो होय तो तुं वमन कर एटले तने अमारी वात नजरोनजर देखाशे पछी गोशाळके गळामां आंगली नाखीने उलटी करी. वमेली खीरमां मांस जोवामां आव्युं तथा वाळ वगेरेना सूक्ष्मभागो जोवामां आया. आ जोईने गोशाळाने भारे रीस चडी अने पाछो ते शहेरमां जइने ते घरने शोधवा लाग्यो. पेली श्रीभद्राए तो गोशाळाना भयथी घरनुं बारणं ज फेरवी नाखेल तेथी ए महोल्लामां आववा छतां अने फरी फरीने शोधवा छतां गोशाळा पोताने मांसनी खीर आपनारनुं घर शोधी ज न शक्यो त्यारे ए बोल्यो के [०२४] जो मारा धर्म गुरुना
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तपना तेजनो प्रभाव होय तो आ आखोये प्रदेश-महोल्लो बळी जाय. जिननु माहात्म्य साचं ठरे ए बुद्धिथी त्यां आसपास रहेनारा वाणव्यंतर देवोए ए आखोए प्रदेश बाळी नाख्यो. हवे भगवान पण केटलाक दिवसो वीतावीने विहार करवा लाग्या अने हलदुयो नामना गामे गया. ___ए गामनी बहार हलिदग-'हरिद्रुक' नामर्नु एक मोटुं वृक्ष हतुं जे वृक्ष अनेक शाखा तथा प्रशाखाओना विस्तारने लीधे सुन्दर लागतुं हतुं अने एनां पांदडां एवां घट्ट हतां जे वडे सूर्यनो ताप रोकाइ जतो हतो एटले ए वृक्षनी नीचे जरा पण सूरजनो ताप आवतो न हतो. ते वृक्षनी नीचे भगवान कायोत्सर्ग ध्याने रह्या. आ तरफ एम बन्यु के अहींथी श्रावस्ती जनारो संघ रात्रे ए ज मोटा वृक्षनी नीचे रातवासो रहेलो. सखत टाढना दिवसो होवाथी टाढथी पीडायेला ते संघे आग सळगावीने ते वृक्षनी नीचे लांबा समय सुधी तापणां कर्या अने तापीने सवार थतां उठीने ए संघ चालतो थयो. जे तापणां सळगावेलां हतां, तेनी आग कोई माणसे बुझावेली नहीं. ए आग आसपासमां वृक्षो तथा घास फूसने बाळती बाळती क्रमे क्रमे वधतां वधतां ज्यां श्रीजिनभगवान महावीर ध्यानमां ऊभा हता त्यां आवी पहोंची. आ जोईने गोशाले का-हे भगवान् , भागो आ आग चाली आवे छे.
१ केटलाक बंगाळीओ पोताने 'हालदार' कहे छे. तेओ आ हलदुआ नामना गामना वतनी होवा ओईए. 'हलददुआ'ने मळतुं संस्कृत नाम 'हरिद्रुक' होई शके.
"हरिद्रुक पाना वतनी दोन हालदार' ही
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गोशालकनी वात सांभल्या पछी पण चित्तने चंचळ कर्या विना भगवान पूर्व प्रमाणे ज ध्यानमां लीन छे. हवे फेलाती आवती आगे एकदम भगवानना चरणकमळ पासे पहोंची, पगने दझाड्या ? आगनो दाहक स्पर्श थतांजाणे गोशीर्ष चंदननो स्पर्श ना होय अथवा हिमना वरसादनो स्पर्श न होय अथवा ठंडे पाणी पडतुं न होय ए रीते विचारता भगवान ते स्पर्शने सहन करे छे. १ - गोशालक तो आ प्रकारचें असमंजस जोईने भयभीत थई गयो अने पोताना जीवननी रक्षा माटे घणे छेटे चाल्यो गयो. ३.
हवे अग्नि शांत थतां स्वामी मंगल नामना गाममां गया, त्यां वासुदेवना मंदिरमां ध्यानमुद्राए रह्या. गोशालो पण त्यां ज छुपाइने रह्यो. मात्र कोई प्रकारना अटकचाळा करवानो तथा कजियो करवानो विनोदरूप प्रसंग घणा समयथी नहीं मळवाथी जेम फाळ भरतो मांकडो फाळ चूकी जतां दुःखी थाय तेम दुःखी थवा लाग्यो अने अटकचाळा वगेरेनो प्रसंग शोधवा चारे दिशाओ तरफ जोवा लाग्यो. बराबर आ वखते त्यां मंदिरमां क्रीडा करवा माटे-रमतगमत करवा माटे गामनां छोकरांओ आवी पहोंच्यां. पृ०२५] छोकरांओने जोईने जाणे स्नोनुं निधान न मल्युं होय, जाणे पोताने नर्बु जीवन न मल्युं होय एम मानतो गोशालो पोतार्नु भयानक मोढुं फाडीने अने तेमाथी लांबी जीभने बहार लटकती बतावीने तथा जोनारने बीभत्स लागे ए रीते आंख फाडीने ते छोकरांओने सामे दोडी तेमने बीवराववा लाग्य
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हवे आर्बु भयानक रूप अचानक सामे आवतुं जोईने भय पामेलां ए बधां छोकरांओ झट झट पाछा गाम तरफ दोडवा लाग्या. १
दोडतां दोडतां तेमांना केटलाक बेबाकळा थवाने लीधे रस्तामां पडी गया, कोईना साथळनुं हाडकुं भागी गयु, कोईर्नु माथु फूट्युं अने कोईनो पग टळी गयो-मरडाई गयो अथवा भांगी गयो. २ ___ वळी, केटलांक छोकरांओनां हाथ पग तथा केड उपर पहेरेलां घरेणां नीकळी पड्यां अने बीकने लीधे केटलांकनां तो कपडां पण नीकळी पड्यां. ३
हवे छोकरांओना माबाप आवी बधी गरबड जोईने रोषे भराया अने गोशाळाने दोष, मूळ गणीने कहेवा लाग्या. ४. ____ अरे पापी, रे पिशाच जेवा ! तुं शा माटे अमारां छोकरांओने अहीं बीवरावे छे. एम गोशाळकने खूब ठपको आपीने विवश थयेला तेने सारी रीते तेओए त्यां कूटी नाख्यो. ५
ए रीते गोशाळाने मार खातो जोईने गामना वृद्ध पुरुषो ते मावापोने मारतां अटकावे छे अने कहे छे के, देवार्यनो आ खरेखर शिष्य छे माटे तमे तेने छोडी मूको. ६
कोई पण रं ते तेओए छोडी दीधो एटले गोशाळो भगवान पासे आवीने कहेवा लाग्यो के, ज्यारे हुं मार खातो हतो त्यारे तमे मात्र जोई रह्या ए शुं ठीक कहेवाय ? ७
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आटला दिवसो सुधी में तमारी साथै सुखदुःख समानभावे सहन कर्या कर्तुं तो पण तमने मारामां स्नेह केम न थयो ? अहो तमारुं हृदय पत्थर जेवुं निष्ठुर-नठोर छे. ८
[पृ० २६ ] सिद्धार्थे कहां के तुं अमारा उपर अमथो अमथो वगर कारणे शा माटे रोष करे छे ? जो तुं तारी जातने ज तारी पोतानी मेळे तोफानो के चाळा के आळवीतराई करती अटकावे तो बस छे. ९
हवे कायोत्सर्ग पारीने स्वामी त्यांथी पण नीकलीने आवत्तआवर्त नामना ग्राममां जई बलदेवना मंदिरमां कायोत्सर्ग करी ध्यानमा रह्या. १०
त्यां पण कलह करवामां ज मोज मानतो गोशालो पोतानुं मोढुं फाडीने अने छोकरांओने बीवरावतां हजु हमणां ज मार खाधो छे ते आगळना अनर्थने भूली जई ते मन्दिरमां रमवा आवेलां छोकओने बीवराववा लाग्यो, ११
बीने छोकराओ रोवा लाग्या अने पोताना माबाप पासे रोता रोता जइने गोशाळानी फरियाद करवा लाग्या. तेथी माबापोए बळी फरी तेने पूर्वनी पठे ज सारीरीते मार मार्यो. १२
गोशाळाने मार मारता लोकोने गामना मोटा लोकोए की के नकामो आ विचाराने शा माटे मारो छो ? तोफान के अटकचाळा करतां तेने नहीं रोकनार तेना गुरुनो ज खरी रीते आ वांक छे. १३
मोटा लोकोए आम कहां तेथी ए गोशाळाने पीटनारा लोको एकदम जगतनी असाधारण आँख समान एवा भगवान तरफ वल्या
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अने तेमने मारवा माटे मजबूत रीते लाकडीओ पकडीने ऊँची करवा लाग्या. १४
___ आ वखते ए देवळमां हाथमां हाथ राखीने बेठेली बळदेवनी प्रतिमाने भगवानना पक्षपाती कोई व्यंतरे भगवानने मारवा आवेला लोकोने बीबराववा माटे तेमनी सामे चलावीने खडी करी. १५
त्यारे आवो कोईवार नहीं जोएलो बनाव जोइने एटले बलदेवनी प्रतिमाने चालीने पोतानी सामे आवी ऊभी रहेली जोइने ए लोको एकदम भयभीत थई गया अने भगवानने विविध प्रकारे पोतानी भूलनी क्षमा आपवा विनंती करवा लाग्या. १६
ए लोकोए भगवानने खमावीने छोडी दीधा एटले जगगुरु भगवान चेराक संनिवेशमां गया, त्यां कोई आवजाव न करे एवा एकान्त प्रदेशमां जईने ए तो ध्यानमुद्रामा रह्या, हवे गोशालाने तो खूब भूख लागी अने तेथी हेरान थइने ते भगवानने पूछवा लाग्यो - हे भगवान ! आजे भिक्षा माटे चालवू छे के नहीं ? सिद्धार्थे जवाब आप्यो के हजु अमारे वार छे. पछी गोशाळो एकलो गाममां भिक्षा माटे पेठो. ते वखते गाममां गोठy-उजाणीनु भोजन तैयार थतुं हतुं अने ते अंगे घणी जातनी खावानी जुदी जुदी वानाओ [पृ० २७] बनती हती. आ जोइने भूख्यो थयेलो गोशालो अस्थिर थइ जवाथी 'हवे केटली वार छे ? क्यारे लोको खावा बेसशे ?' ए बात जाणवा माटे वारंवार छूपीरीते संताइने गोठना भोजननी तैयारी तरफ जोवा लाग्यो. ए वखते ए गाममां ते दिवसे
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ज चोरना मोटा भयनी आशंका हती, हवे गोशालाने आम संताइने जोतो जोइने त्यांना गामलोकोने वहेम . पड्यो के आवडो आ, आ तरफ वारंवार जोया करे छे माटे जरूर ए कोई गुप्तचर होवो जोइये अथवा चोर होवो जोइये. आ वहेमथी प्रेरायला लोकोने एम पण थयु के कदाच कोई पण रोते आनी पासेथी आगलो चोरीनो माल मली जाय, एम विकल्प करीने ए लोकोए एने पकड्यो अने खूब खूब मार्यो, तेने पूछवामां आवतां ते कई बोल्यो नहीं. तेथी तेने कुटीने-मारीने छोडी मेल्यो. आ पछी ते भोंठो पडेलो गोशालक विचारवा लाग्यो के, भोजननी प्राप्ति तो दूर रही, शरीर ज बची गयु ए मोटें आश्चर्य छे. अहो अकारण दुर्जनोनो मेलाप थई गयो अथवा एथी शुं ? पण मारा प्रभुनो प्रभाव होय तो आ पापी लोकोना मंडप-मांडवो बळीने खाख थइ जाय-एटलं ज ते बोल्यो एटलामां भगवानना भक्त कोई वाणव्यतर देवे एमना मांडवाने बाळी नाल्यो. हवे भगवान कलंबुय नामना संनिवेश तरफ़ उतावला उतावला गया. प्रत्यंतिक एटले देशनी सीमामांगल्य कग्नारा अथवा अनार्य देशना निवासी एवा मेह अने कालहत्थी नामना बे भाइओनुं ते संनिवेशमा राज्य हतुं. ज्यारे भगवान अने गोशालक जता हता, बराबर ते ज वखते कालहत्थी मोटा लाव लश्करसाथे हाथमा विविध अस्त्र-शस्त्रो अने प्रहरणोने राखी चोर जे मार्गे गयो ते मार्गे एटले चोरनी शोधमां चोरनी पाठल जतो हतो. केटलुक चाल्यो त्यां एणे सामे आवता भगवानने अने गोशालकने जोया. तेमने जोइने तेणे पूठ्यु-तमे कोण छो ? स्वामी तो मान ज रह्या अने गोशालक पण
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गम्मतप्रिय होवाली मौन रह्यो एटले कशु ज न बोल्यो. तेथी ते कालहत्यी रोपे भरायो अने भगवानने तथा गोशालाने खूब मार मारीने बांधीने पोताना मोटा भाई मेहनी पासे मोकली आप्या. मेह भावानने बांधेला जोइने ऊभो थयो. तेमनां बंधनो छोडी नाखी तेणे भगवाननी पूजा करीः अने क्षमा मागी. ज्यारे ते मेह कुंडग्राम नामना नगरमां सिद्धार्थ राजानी पासे गयो हतो त्यारे तेणे स्वामीने जोया हता. हवे बंधनमांथी छूटा थयेला भगवाने पोताना अवविज्ञान द्वाग जो तो मालूम पड्युं के हजी तो निर्जरा करवा जेवां घणां कर्मो बाकी छे. [४० २८ ] सहायक विना कर्मोनी निर्जरा थइ शकशे नहीं. आ स्थले ग्रंथकार कहे छे के, सहायकनुं उदाहरण कहेवू युक्त छे. ते उदाहरण आ प्रमाणे छे.
एक खेर छे. दाणा आवी गया छे अने पाकी पण गया छे एने लीधे अनाजना छोड़ एमां नमी पड्या छे - लची पड्या छे. ए जोइन ए खेतरनो मालिक हवे ए छोडोने जल्दी लगी लवानो विचार कावा लाग्यो. १
मालिक एकलो ए छोडोने लगी शके एम नथी तेथी तेणे उचित दाड़ा-माटुं देवानुं ठरावीने एणे बाजा घणां लोकोने पण लणणना काममा जोड्या. २
एज गते धणा लांबा कालथी भेगां थयेलां मारां पूर्वभवनां कर्मोनी निर्जरा करवा माटे मारे पण अनार्य देशमा विहार कम्बो जोइये अन् अना देशमा विहार करवाया अनार्य लोको मने कष्ट आगो, मारशे अने एयी मारां कर्मानी निर्जरा थशे एटले अनार्य
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देशना लोको ए रीते मारा कर्मनी निर्जरामां सहायक थशे माटे मारे अनार्य देशना विहारनी सहायता मेलववी जोईये. ३
अनार्य देशना रहेवासी लोको वगर करणे जखूब कोप करे छे अने एथी ए लोको मने उपसर्ग करशे अने ओम थवाथी एओ मारा कर्मोनी निर्जरामां सहायक थशे. ४
आम विचार करीने म्लेच्छ लोकोनी वस्ती ज्यां पुष्कळ छे एवा रढा नामना अनार्य देशमां गोशालकनी साथे मोहनो विजय करेला नाथ विहरवा लाग्या. ५
अनार्य देशमा विहार करता भगवानने जोईने केटलाक पापी अने निर्दय लोको आ कोइ जासूस गुप्तचर छे एम मानीने तेमने निष्ठुर रीते मुक्का मारीने पजववा लाग्या. ६ ___बीजा कळी एवा ज केटलाक असभ्य भाषाद्वारा एटले गाळो दईने भागवाननो तिरस्कार-अवहेलना करवा लाग्या. बीजा वळी केटलाक भयानक मुखवाला डाघीया कूतराओ तेमना पर छोडवा लाग्या एटले कूतरा करडाववा लाग्या. ७
व्यंतरदेवो, बीजा देवो, यक्षो तथा राक्षसो वगरे देवोनो समूह जेमना उपर बहुमान राखे छे छतां अत्यारे तो जिन एकला ज आवी पडेला उपसर्गोने सहन करी रह्या छे. ८
आ जोइने पाछळ रहेलो गोशाळक पण 'आ मारा धर्माचार्य छे' 'मारा मनमा एमना उपर स्नेह छे' एम समजी भगवाननु दुःस्व अनुभवी रह्यो छे. ९
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[पृ०२९] हवे त्यां अनार्य देशमां फरतां फरतां अने आवां घोर दुःखोने सहन करतां करतां भगवान पोताना घणां घणां कर्मोनी निर्जरा करी शक्या अने पछी तेओ जेनी वांछा पूर्ण थई छे एवा मनुष्यनी पेठे आर्य देशो तरफ विहार करवा सारु वळ्या. १०
हवे ज्यारे भगवान आर्य देश तरफ विहार करवाने वळता हता त्यारे रस्तामां आवता पूर्णकलश (के पुण्यकळश) ग्राम नामना संनिवेशनी पासे आवतां तेमने बे चोर सामा मळ्या. ए चोर लाढा देशने लूंटवा जता हता, ए माटे जेवा तेओ नीकल्या के तरत आमने एटले गोशाला साथेना भगवानने सामे मळेला जोईने 'आ अपशुकन थया' एम समजी जमनी जीभ जेवी भयंकर तरवार उगामीने ए चोरो भगवाननी सामे दोडया. बराबर आ वखते ज इन्द्रने एवं जाणवानो विचार थयो के हमणां भगवान कया प्रदेशमां विचरे छे ? आ जातना समाचार मेळववा इन्द्र पोताना अवधिज्ञाननो जेवो प्रयोग करवा गया तेवामां ज भगवानथी थोडा ज दूर रहेला अने खेंचेली तर बार हाथमा राखीने मारी नाखवा सारु भगवाननी पासे पहोंचेला बे चोरोने इन्द्रे जोया हवे एवं जोतां ज इन्द्र कोपी उठचो. तेने तीव्र कोपनो आवेग आवतां ज ज्यां ते बेठो हतो त्यांथी ज ऊँचामां ऊँचा गिरिशिखरने तोडी पाडे एवा समर्थ वज्रने ते चोरो उपर फेंकी ते बन्नेनो वध करी नाख्यो. हवे स्वामी पण गाम गाम अनुक्रमे फरता फरता भद्दिलनगरी पहोंच्या. त्यां तेमनुं पांचमुं चोमासुं थयुं. भगवान विचित्र आसनो वगेरे करीने कठोर तप करता हता. आ वस्वते भगवाने चारे महिनाना उपवास करेला एटले चातुर्मासिक मासस्वमण
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करेल. हवे क्रमवडे आ पांचमुं चोमा पुलं थतां बहार पारणा माटे विहार करता भगवान कयलिसमागम नामना गामे पहोंच्या. त्यां ते दिवस गरीबगुरबाने सहाय आपवा माटे तैयार थयेल भोजन मुसाफरोने तथा मागण वगेरने जेने जेटटुं जोईए तेटलं आपवामां आवे छे, ते जोइने गोशालक पण स्वामीने कहेवा लाग्यो के, आवोने अहीं जईए. सिद्धार्थे जवाब आप्यो के हजु अमारे वार छे. आ सांगलीने ए वहेंचवामां आवता भोजनवाळी जग्याए गोशालक गयो अने भोजन माटे त्यां बेठो, भोजन पीरसावा लाग्युं. गोशालक विशेष खाउधरो होवार्थी ते केमे करीने धरातो ज न हतो तेथी गामना लोकए दहीमां कालवेला चोखा एक मोटुं वासण भरीने तेने आप्यु. गोशालक पण ते आलुं य वासण ब जमीने खुटवाडी शके एम न हतो तेथी पीरसनारांने कहेबा लाग्यो के, आटलुं बधुं हुं खाई शीश नहीं अर्थात् आ धणुं वधारे तमे मने आप्यु. आ सांभाळीने पीरमनारे कयुं के, हे पापी ! दुकाळियो लागे छे-कोईवार अन्न जोपुं लागतुं नबी एटले तुं तारा भोजननुं माप पण जाणतो नथी, एम कहीने पीरसनार रोषे भराईने ए भरेलु वासण एना-गोशाळकना माथा उपर ज फेंकयु. पछी पेट उपर हाथ फेरवतो फेवतो गोशाळक जेम आव्यो हतो तेम पाछो चाल्यो गयो.
पृ०३०] हवे जगतना स्वामी जंबूड नामना गामे गया त्यारे त्यां पण गरीबगुरबा माटे भोजन बहेंचातुं हतुं ए जोईने फरीवार पण गोशालक ते गरीबगुरबा माटे वहेंवाना भोजनमां ळ्यो. दूध अने भात जम्यो अने त्यां पण लोकोए छेवटे पूर्वनी पेठे गोशालकनो फजेतो ज
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कर्यो. हवे स्वामी अनुक्रमे विहार करता तंबाय नामना संनिवेशे गया अने त्यां बहार ध्यान मुद्रावडे रह्या. ए गाममां पार्श्वनाथ भगवाननी परम्पराना नंदिषेण नामना साधु आगळ आवी गयेला श्रीमुनिचन्द्रसूरिनी पेठे जिनकल्पनु परिकर्म एटले जिनकल्पनो अभ्यास करता हता. ते नंदिषेण साधु बहुमत हता, बहु शिष्य परिवारवाळा हता अने गच्छनी चिंता छोडीने जिनकल्पनी साधना तरफ वल्या हता. हवे गोशाळक भिक्षा माटे गाममां पेठो. तेणे वस्त्र कम्बल वगैरे उपकरणोवाळा ए नंदिषेण मुनिने जोया अने आगळ वर्णवायेला पार्श्वनाथना साधुओनी पेठे ज गोशाळक आ साधुओनी पण निन्दा करीने स्वामीनी पासे आव्यो. ते नंदिषेण मुनि चोकमां ते रात्रीए ज कायोत्सर्ग करीने स्थिरपणे ध्यानमां लीन हता ते वखते चोकीदारना पुढे आमतेम फरता फरता पाछळथी तेमने जोया अने तेने 'आ चोर छे' एम समजीने मोटुं भालु मारीने घायल करी नाख्या. ते वखते ज ते मुनिने अवधिज्ञान उत्पन्न थतां तेमनो देह पण पडी गयो अने ते स्वर्गे गया, आजुबाजु वसनारा देवोए ते स्थाने आवीने ते मुनिनो निर्वाण उत्सव का. ते वखते त्यां खूब प्रकाश प्रकाश थई रह्यो. ए जोईने गोशालो ते जग्याए पहोंच्यो अने पेला स्थविर मुनिने काळधर्म पामेला जोया. पछी गोशाळो उपाश्रयमां गयो अने त्यां ते मुनिना सुखे सूतेला शिष्योने जगाड्या. तेमने स्थविरमुनिना मरणनी वात करी अने आ रीते ऊंघी रहेवा माटे तेमनो तिरस्कार करीने सारी रीते ठपको पण आप्यो, पछी गोशाळो पोताने स्थाने पहोंच्यो. जगद्गुरु पण कुविय नामना संनिवेशमा
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गया अने त्यां पण 'आ कोई जासूस छे' एम समजीने ते गामना फोजदारोए तेमने पकड़या-बांध्या तथा मार्या अने विविध रीते तेमनी कदर्थना करवा साथे खूब पीडा करो.
हवे जिननाथ ने ए फोजदारो मारता हता त्यारे लोकमां एवी बात फेलाई गई के देवार्य रूपलक्ष्मी वडे अनुपम छे अर्थात् देवानुं रूप असाधारण छे. १
एने जासूस समजीने केम पकड्या छे ? शुं आवो माणस पण आवुं जासूसनुं काम करे खरो अथवा कर्मनी गति विचित्र छे एटले शुं न संभवे : २
[पृ० ३१] तो पण लोकोमां एवी प्रसिद्ध कथनी संभळाय छे के ज्यां आकृति छे त्यां गुणो पण होय छे. माटे खरेखर एम लागे छे के आ लोको मूढताने लीघे आमने पीडा आपी रह्या छे. ३
साधु पण पोताना भोग-उपभोग माटे वर - नठारुं कामआचरण कर छे पण जे वस्त्रने पण इच्छतो नथी ते जासूसनुं काम केम करीने करशे ? ४
आवो लोकमां फेलायलो प्रवाद सांभळीने जेमणे तत्काळ दीक्षा छोडी दीधी छे अने पोताना निर्वाह माटे प्ररिवाजिकानो वेश धारण करनारी एवी विजया अने प्रगल्भा नामनी पार्श्वनाथनी शिष्याओ कदाच ए वीरजिन न होय ? एवी शंकाने लीधे व्याकुळ थयेली ते, ५-६
ज्यां भगवानने दुःख देवामां आवे छे ते जग्याए जाय छे अने जिनवर ने जोइने आदरपूर्वक वंदन करे छे अने पछी ए बे जणीओ
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चोकीदाराने निष्ठुर वचनो संभळावी तेमने सारी रीते तिरस्कार साथै टपको आपे छे. ७
अने कहे छे के, रे रे हताशो ! सिद्धार्थ राजाना पुत्र अने धर्म चक्रवर्ती एवा आ पुरुषने केम छोडी देता नथी ? अने तमे आ गुनो कर्यो छे ते माटे एमनी पासे क्षमा पण जल्दी मागी ल्यो. ८
वळी एओ कहे छे के, रे ! जो आ बात कोई पण रीते इन्द्रना कान उपर जशे तो खरेखर राज्य अने राष्ट्र सहित तमने बधाने यमना घरे मोकलशे -मारी नाखशे. ९
ए बे परिव्राजिकाओए आम कह्या पछी ते चोकीदारो भयभीत थई गया अने विनयथी नम्र बनीने भगवंतने नमवा लाग्या अने कपालमां पोताना बन्ने करकमळ लगाडीने पोतानी आ भूलनी माफी मागवा लाग्या. १०
हवे तेमनाथी छूटा थयेला भगवान वैशाली नगरीए जवा माटे चालवा लाग्या, त्यां जतां तेमने बच्चे फंटायेला बे रस्ता मल्या. १९१ हवे लाढा वगैरे अनार्य देशोमां जवाथी विविध प्रकारना कठोर उपसर्गोने लीधे भांगी गयेलो छे ऐवो गोशालक त्यां स्वामीने विनंसि करवा लाग्यो. १२
[पृ०३२] एक तो तमे हुं खरेखर मार खातो होउं ते जोता छतां मने बचावता नथी अने बीजुं तमने ज्यारे उपसर्गो थाय छे त्यारे मने पण उपसर्ग थाय छे. १३
बीजुं वळी, प्रथम तो लोको मने ज मारे छे अने पछी तमने तथा रोज रोज भोजन माटे पण महाक्लेश मारे भोगववो पडे छे.
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तमे ऊजड अने एकांत जग्यामां उतरवार्नु राखो छो अने मान तथा अपमानमां सम चित्तवृत्तिवाळा छो. तमारा मनमां नायक तरीके तमारे शुं कर जोईए एवो कोई तमारी पासे धर्म पण देखातो नथी. १५
खरी रीते तो सेवक सुखी होय त्यारे नायक-मालिक-सुखी न होय अने सेवक दुःखी होय त्यारे नायक दुःखी न होय एम न बने एटले सेवकना सुखे सुखी अने दुःखे दुःखी होय एवो नायक होवो जोईए अने तमारे पण एम ज राखq जोईए. कोई पण सेवक सुखनी अभिलाषाने लीधे ज स्वामीनी सेवा करे छे पण ज्यां आवो स्वामी न होय तो शुं ते पण स्वामी कहेवाय खरो ? १६
हु लांबु जीवन इच्छु छु अने सुखनी आकांक्षावाळु मारूं मन छे. एटले हे देवार्य ! आम छे माटे हवेथी मारे तमारी सेवा करीने शुं काम छे ? १७
गोशालो आम बोल्यो त्यारे सिद्धार्थे तेने कह्यं के, तने फावे तेम तुं करी ले. अमारो तो व्यवहार जेम छे तेम ज रहेवानो छे. अहीं अमे तने वधारे शुं कहीए ? १८
आवी रीते परस्पर वातचीत थई अने स्वामी वैशालीने मार्गे पड्या. बीजो एटले गोशालक पण स्वामी पासेथी पाछो वळीने राजगृहना मार्गे चाल्यो. राजगृहनी वचमां तेने-गोशालकने भयंकर मोटुं जंगल आव्यु. ए जंगलमां हाथी, सिंह अथवा वांदरां, हरण, वरु, वाघ वगेरे घणां भयंकर प्राणीओ रहेतां हतां, आकाशने अडे एवा घणां ऊंचां लांबां वृक्षने लीधे ए जंगल वधुं बीहामणुं लागतुं हतुं.
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एवा जंगलमां कोई मुसाफर आवे छे के केम ?' एनी तपास राखवा चोरोना स्वामीए पोताना एक माणसने कोई ऊंचा वृक्षनी टोचे चडा. वीने वेसार्यो हतो. ए माणसे स्वच्छंद लीलाथी चाल्या आवता गोशालाने जोई अने पोताना स्वामीने कां के, एक नग्न श्रमण चाल्यो आवे छे. [पृ०३३] तेणे कां के कोई बँटवा जेवी चीज तेनी पासे देखाती नथी एटले ज ते अहीं चालतां बीतो नथी. जो तेनी पासे कोई एवी चीज होत तो ते माणस वगरनी आ अटवीमां शा माटे पेसत ? अथवा आ कोई दुराचारी होवो जोईए अने आबु रूप लईने अमारो परिभव करवा आवतो होवो जोइए-एम मने लागे छे, तो एने अस्खलित गतिथी आववा द्यो. अहीं आवशे एटले एनो आ दुर्विनय दूर करीशं. ए. बन्ने एम बोलता हता त्यां गोशालो तेमनी पासे आवी पहोंच्यो. पछी तो तेमणे दूरथी ज अभिलाषा साथे कडं के, हे मामा ! आवो, तमने अहीं स्वागत छे. आम कहोने गोशाळाने हाथमां पकडयो, पीठभर ऊंधो कयों अथवा ऊंचो को एटले वांको वाळयो. मरणना भयनी बीकथी तेणे पीठ ऊंची करी एटले ते घोडानी जेम पीठभर ऊंचो थयो-वांको वळयो. पछी तो पांचसो चोरो साथे चोरनो स्वामी अनुक्रमे एटले. एक एक पछी एक जण तेना उपर सवार थईने तेने घोडानी पेठे लांबो वखत चलाव्यो, हवे तो ए (गोशाळो) भूख, तरश अने थाकनो मार्यो हेरान हेरान थई गयो, तेना प्राण कंठे आवी गया. एवो थई गयो त्यारे तेने छोडी दीधो. पछी ए चोरो पोताने अभिमत स्थाने गया. गोशाळो पण खूब ज थाकी गयेलो हतो अने जाणे मोगरीना घा पडवाथी जर्जर थई गयो
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होय अथवा जाणे कोईए वज्रथी तेने मार्यो होय एवो ते मूर्छित थईने तरुखंडनी छायामां थोडीवार पडयो रह्यो, पछी शीतवायुनी लहेरो आववाथी तेनी मूर्छा वळी, तेनामां भान-चैतन्य आव्युं अने शोक करवा लाग्यो. केवो रीते शोक करवा लाग्यो ?
हितना अर्थी एवा में बुद्धि नासी गयेली होवाथी हाय ! हाय ! आ खूब खराब कर्यु के, अचिंत्य माहात्म्यथी भरेला एवा ते स्वामीने ---महावीरस्वामीने छोडी दीधा. १ ।
ए मारो स्वामी तद्दन निर्दोष छे छतां हताश थयेला में कुविकल्पो करीने तेमनी जे अवज्ञा करा ते खरेखर आखरे आ रीते मारे माथे आवी पडी. २
तेमना ज प्रभावथी हुँ दुष्टशील होवा छतां पहेलो मारो नभाव अनेक स्थानोमां थतो आव्यो छे माटे हवे हमणां तो तेमना विना मारूं जीवन टकशे नहीं. ३. अथवा
सारी रीते विचार कर्या विना जे कार्यों सहसा करवामां आवे छे ते छेवटे अपथ्य भोजननी पेठे दुःखो ज आपे छे ४.
पृ०३४] मने लागे छे के आवा आवा बाना नीचे ज कृतांत मने छळवा इच्छे छे. एम न होय तो मने आवी कुमति सूझे ज केम ? ५
तो हवे शरणरूपे कोर्नु स्मरण करु ? अथवा कया उपायने स्वीकारूं अने कोनी आगळ मारा दुःखनी वात करी निश्चित थाउं. ६
___ अथवा हवे विकल्पो करीने शुं करूं ? आ त्रण लोकमां ए नाथने मूकीने-ए नाथ विना मने कोईनोय सहारो मलवानो नथी माटे
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हवे तेनी ज भाळ काढुं. ७ ____ आ प्रमाणे निश्चय करीने ए भयंकर जंगलने संसारनी पेठे वटावी गामो अने नगरोमां स्वामीनी तपास करतो करतो गोशालो हिंडवाफरवा लाग्यो. ८ ____आ तरफ महावीर भगवान क्रमे क्रमे पर्यटन करता विशाळ शालवलयथी वीटायेल मदनोन्मत्त रामा जेवी सुंदर एवी विशाळा नगरीमां पहोंच्या. त्यां पहोंचीने घणा लुहारो वापरे एवी लुहारनी सर्व साधारण शालामां-कोडमा ध्यान धरीने रहेवानुं तेमणे विचार्यु. पछी ते कोडनी आसपास रहेता माणसोनी अनुमति मेळवीने तेओ त्यां ध्यानमुद्राए रह्या. हवे अम बन्यु के अेक कोई लुहार मांदो पडी गयो हतो अने छ महिना मांदो रही पछी साजो सारो थई गयेलो, एटले तेओ सारी तिथि अने मुहूर्त जोइने मांगलिक रीते वाजते-गाजते पोतानी ए लुहारोनी कोडमां काम पर चडवा सारु जवानो विचार कर्यो. ते वखते ए लुहारना शरीर उपर चंदननो लेप करवामां आवेलो. महादेवर्नु हास्य अने काशना फूल जेवां धोळां वस्त्र तेणे पहेयां हता. तेना माथा उपर धरो, आखा चोखा अने सरसव मूकेला हता अने तेनी पाछळ स्वजनो चालता हता, ए रीते वरघोडो काढीने ते ज कोडमां (ज्यां भगवान् ध्यानमा रह्या हता त्यां) ते आवी पहोंच्यो. तेणे आवतां ज पोतानी सामे ऊभेला अने नवस्त्रा-वस्त्र वगरना १. विशालशालवलय एटले नगरीना पक्षे विशाला नगरी विशाल अने वलयगोळ किल्लाथी वाटायेल छे अने स्त्रीपक्षे स्त्री विशाल-पहोळी साल साडी-- अने वलय-बलोयां-कंकणोथी-वींटायेल छे.
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जिनवरने जोया. जोतां ज तेने एम थयु के “ आ तो अमंगल थयु" एटले अमंगल आ नागा ऊभेलाने ज करुं एम विचारी ते लोढानो मोटो भारे घण लइने स्वामीने मारवा दोड्यो. एवामां तेज वखते इन्द्रने विचार थयो के 'स्वामी अत्यारे क्यां विहार करे छे ?' ए जाणवा माटे अवधिज्ञाननो प्रयोग करूं. इन्द्रे अवधिज्ञाननो प्रयोग करतां ज 'पेलो सूथार घण लइने स्वामीने मारवा दोडे छे' ए दृश्य जोयुं अने ए जोतांज आंखमींचे एटली ज वारमा कानमां मणीनां कुंडल हली रह्या छे अवो ते इन्द्र पोते भगवाननी पासे तेज कोडमां आवी पहोंच्यो अने स्वामीने मारवा माटे घण लईने दोडनार ए लुहारना माथा उपर ज [पृ०३५] पोतानी शक्तिथी ते घणने पाड्यो. लुहारना माथामां घण पडतां ज ते मरण पाम्यो, पछी त्रण प्रदक्षिणा करतो इन्द्र नमन करीने जगना गुरु एवा भगवानने कहेवा लाग्यो के, हे स्वामी ! तमे अनुपम कल्याणोना कारणभूत छो, लोकोना लोचनने आनन्द आपनारा छो, छतां तमने जोइने आ पापीओ कई रीते तमारा उपर द्वेष करी रह्या छे ? १
मन वचन अने शरीर द्वारा एटले त्रिकरण द्वारा खरखर माणसोनी रक्षा करवा तमे इच्छो छो छतां तमाग उपर लोकोनी बुद्धि दुष्ट रीते केम चाले छे ? २ ___कोइ एवो होइ शके जे अमृतने विष रूपे समजे अर्थात् एवो कोई मूरख होय के जे अमृतने पण विष समान समजे ? अथवा जेओनां हृदय मूढताथी भरेलां छे एमनी ज आवी बुद्धि होई शके. ३
खरेखर, अमारूं देवपणुं अने तेना महिमानी संपदा विफल छे,
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केमके ए संपदा तमारी आपत्तिनुं निवारण करीने कृतार्थ थई शकती नथी. ४ __ज्यां सुधी तमारी पासे रहीने ज तमारी सेवा करवामां न आवे त्यां सुधी अमारामां खरेखर प्रभुभक्ति छे एम सकर्ण-डाह्या लोको शी रोते जाणी शके ? ५ ____ आ प्रमाणे इन्द्र भगवानने लांबा वखत सुधी उपसर्ग करनार मनुष्यने दोष दईने अने पोतानी भक्ति पण दोषवाळी छे एम जणावीने सारी रीते दुःखी थइने भगवानने नमी अदृश्य थई गयो. ६ ___पछी विहार करता स्वामी पण गामागर नामना संनिवेशमा पहोंच्या, त्यां बिभेलक नामनो यक्ष रहेतो हतो. तेने पूर्वभवमां सम्यक्त्व थयुं हतुं, प्रतिमा स्वीकारेला भगवानने जोइने तेना मनमां परम प्रमोद थयो अने पारिजातकनी ताजी मंजरीना परिमलथी जेना उपर भमराओ खंचाई आवेला छे एवी ए मंजरीओ वडे तथा उत्तमोत्तम चंदनथी मिश्रित केसर अने हिम-कपूरना विलेपन वडे खूब आदर साथे भगवाननी पूजा करवा लाग्यो.
हवे वळी ए बिभेलक यक्ष पूर्व भवमां कोण हतो? तेनी वात कहेवानी छे.
पृ०३६]मगध देशमा सिरिपुर नामना नगरमां महासेन नामे राजा हतो. तेनी स्त्रीनुं नाम सिरी-श्री. ते सिरोने तमाम ज्ञान विज्ञानमां अने कलाकलापमां कुशळ एवो सुरसेन नामे पुत्र हतो. आ सुरसेन युवान थवा छतां उत्तम रूप सौन्दर्यवाळी स्त्रीओ तरफ आंख मांडतो नथी. तेने परणवा विशे घj घj
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कहेवामां आव्युं छतां पाणिग्रहणनी वातने स्वीकारतो नथी पण ते त्यागी मुनिवरनी माफक विकारनो त्याग करीने अथवा परणवाना विचारतो त्याग करीने चित्रो चितरवामां अने पत्रच्छेद्य एटले जुदी जुदी रीते पांदडाओमां आकृतिओ काढवी ए जातनी कला अने एवी बीजी कळाओना विनोद द्वारा वखतने बीतावे छे.
सुरसेननो पिता राजा महासेन तेना पुत्रनी आवी रीति जोईने बहु व्याकुळ थाय छे अने अनेक मंत्रवादीओने तथा तंत्रवादीओने तथा एवा प्रकारना मानसिक रोगने जाणनाराओने पोताना पुत्रनी हकीकत कही संभळावे छे, ए मंत्रवादीओ वगेरे पण विविध उपायोने अजमावे छे पण कोई पण रीते सुरसेनकुमारनो विचार बदली शकात नथी.
हवे एकवार उत्तम हाथी उपर बेसीने पोताना परिवार साथे राजा नगरनी बहार राजेवाटिकाए नीकल्यो. १
विविध स्थानोमां थोडी थोडी वार फर्यो अने हाथी तथा घोडाओने दोडाववानी वा पलोटवानी प्रवृत्ति जोई पछी ते ज्यारे पाछो 'फर्यो त्यारे तेणे नगरीना तमाम लोकोने त्यां बगीचा तरफ आवता जोया. २
१. राजवाटिका एटले राजानी वाडी-बगीचो - एवो 'राजवाटिका' नो शब्दार्थ छे. केळवायेल सेना जे स्थळे पोतानी परेड करती होय तेनी सलामी लेवाने माटे जवानी प्रवृत्तिने पण राजवाटिका कहेवाय छे. अथवा राजा पोताना दल-बळ साथे जे खास सवारी काढे तेने पण . राजवाटिका कहेवामां आवे छे.
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ए लोको तो कोई रथ उपर बेसीने उतावळा उतावळा आवता हता, कोई घोडा उपर, कोई यान-गाडा उपर, कोई पालखीमां बेसीने आवता हता अने कोई पगे चालीने जलदी जलदी आवता हता. तेमणे पहेरेलो पोशाक घणो सुन्दर-देखावडो हतो. ३
ए लोकोने जोईने राजाए का के एटले पूछ्युं के, नगरना आ लोको पोतानां बीजां बीजां कार्यों छोडीने आ एक मार्गे केम जाय छे ? ४
आजे कोई अमुक नटनी रमत नथी तेमज कोई-खास-देवनो महोत्सव नथी तेम कोई नाटक जोवा वगेरेनुं कौतुक पण देखातुं नथी. ५
___ आ सांभळीने राजानी साथे रहेला लोकोए का के, हे देव ! शुं तमे आ वात जाणता नथी ? अहीं बहारना बगीचामां सूरप्रभ नामना आचार्य पधारेला छे. ६
पृ०३७]जे आचार्य अतीत अने अनागतना तमाम भावोने जाणे छे एटले अतीत अने अनागतनी वस्तुओना के बनावोना संदेह रूप अज्ञानना अन्धकारने दूर करीने तेमणे जगतमां कीर्ति प्राप्त करेल छे अने पोताना सूरप्रभ (एटले सूर्य जेवी प्रभावाळा ) नामने सार्थक करेल छे. ७
जे लोको अनेक जातना रोगोथी घेरायेला छे छतां तेमना चरणकमळनी धूळनो स्पर्श करतां ज तत्काळ कामदेव जेवा सुन्दर शरीरवाळा थई जाय छे. ८
तमाम तीर्थोनी पूजाना न्हवणना पाणीवडे जेम तमाम पाप
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रूप मेल नाश पामे छे तेम आचार्य- दर्शन पण ए पवित्र पाणी जेवू पोताना समस्त पापोनुं ध्वंसक छे एम आ लोको समजे छे एटले आचार्यना दर्शन वडे पोताना आत्माने पापरहित थयेलो गणे छे. ९.
जे लोको भारे अभिमानने लीधे पोताना माता-पिताने पण प्रणाम करता नथी तेमना पण माथा उपर आ आचार्यना चरणना नखना किरणो शिखरनी पेठे थयेला छे. १०
___ ते आचार्यने वंदन करवा एटले एमना पादोमां वंदन करवा नगरीना आ बधा लोकोजई रह्या छे. देव ! तमारे पण ए आचार्यना चरणकमळना दर्शन माटे जq जोईए ए युक्त छे. ११
आ सांभळीने मनमा विस्मय पामेलो अने कुतूहल पामेलो राजा ज्यां ए आचार्य छे ते वन तरफ तत्काळ जवा लाग्यो. १२
ते तरफ जतां दूरथी ज परमभक्तिने लीधे हाथी उपरथी राजा ऊतरी गयो अने मुनिनाथने वन्दन करीने जमीननी पीठ उपर ते बेठो. १३ __आचार्य पण पोताना दिव्यज्ञान रूप नेत्र वडे तेनी-राजानीयोग्यता जोईने गंभीर वाणी वडे आ प्रमाणे कहेवा लाग्या-उपदेश देवा लाग्या.-१४
हे उत्तमपुरुष ! संसारमा मनुष्यनो अवतार मळवो ए ज सौथी पहेलां कठण छे. तेमां पण कुल, रूप अने आरोग्यनी निरुपचरित-- खरेखर-सामग्री पामवी ए पण दुर्लभ छे. १५
तेमां पण उत्तम हाथी घोडा योद्धाओ अने रथोना समूहयुक्त तथा विपुल धनभंडारोवाळु अने बीकथी थरथरतो सामन्तोनो समूह
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जेने पगे पडे छे एवं नरपतिपणुं मळवू पण दुर्लभ छे. १६
पृ०३८] तेमां शास्त्रोना अर्थो समजवामां विचक्षण अने संसारथी अत्यंत विरक्त एवा कुशळ पुरुषो साथेनी थोडीवार माटेनी पण गोष्ठि एटले सोबत मळवी तो भारे दुर्लभ छे. १७
आ तमाम चीजो पुण्यना प्रकर्षने लीधे तने सांपडेल छे माटे हवे हिंसा, असत्य, चौर्य, परिग्रह अने अनाचारोथी विरमण करवा --अटकवा माटे एटले हिंसा वगैरेनो त्याग करवा माटे तारे सविशेष प्रयत्न करवो जोईए. १८
वळी, नीतिपरायण रहेवा माटे, उत्तम गुणो मेळववा माटे अने दुःखी जनोने जोईने तेमना तरफ करुणा राखवा माटे तथा धर्मथी जे कार्यो विरुद्ध छे तेमनो त्याग करवा सारु अने परलोकमां हित थाय एवो विचार करवा सारु तारे यत्न करवो जोईए. १९
वळी. क्षणभंगुर संसारना भावोनो विचार करवा माटे अने वैषयिक सुखो तरफ विराग करवा माटे तमारा जेवा पुरुषे पोताना मनने नित्य प्रवर्तावq जोईए. २०
___ आ प्रमाणे गुरुनो उपदेश सांभल्या पछी राजानुं अने नगरना लोकोनुं मन हर्षवाळु थयु अते तमे ‘जे उपदेश आपेल छे, ते बधो बराबर छे' एम स्वीकारीने ते बधा पोतपोताना घर तरफ वळ्या. २१
पण, जेनी हकीकत आगळ जणावेल छे एवा सूरसेन नामना पोताना पुत्रनी हकीकत विशे पूछवा माटे राजा थोडंक चाल्या पछी तरत ज पाछो वळ्यो. २२
पछी एकांतमां बेसी आचार्यने वंदन करीने राजा एम कहेवा
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लाग्यो के, हे भगवन्त ! तमारा ज्ञानना पसार सामे काई पण अजाण्यु नथी. २३
तो मारो पुत्र वारंवार कहेवा छतां अनेक युक्ति प्रयुक्तिओ द्वारा समजाव्या छतां परणवानुं नाम पण सांभळवा इच्छतो नथी, तेनुं शुं कारण छे ते तमे कही संभळावो. २४ ।
एने संसारनो भय छे ? अथवा कोई भूत, पिशाच वगेरेना वळगाडने लीधे ते छळी गयेल छे ? अथवा तेना शरीरमां धातुओनो विपर्यास छे ? अथवा तेने कोई क्रूरग्रहना नडतरनी पीडा छे ?. २५
राजाना आ प्रश्नोनो जवाब आपतां गुरु बोल्या-हे उत्तम पुरुष ! जे तमे कारणो कह्यां छे एनी कोई शंका करवानुं कारण नथी. मात्र पूर्व भवमा एणे जे कर्म बांधेल छे ए सिवाय बीजा कोई कारणनो विचार करवा नकामो छे. २६
[पृ०३९] संयोग, वियोग, उत्पत्ति, प्रलय, सुख, दुःख वगरे तमाम क्रियाओमां तमाम अवस्थाओमां पण माणस उपर कर्म ज सरसाई भोगवे छे. २७
आ सांभळीने राजा बोल्यो-हे भगवान् एणे पूरव जन्ममां शुं कर्म करेल छे ? ए विशे तमे कहो. ए अंगे मने एटले मारा मनमा मोटुं कौतुक छे. २८
हवे आचार्य बोल्या हे महाराज ! तारोआ पुत्र पूर्वभवमा शंम्वपुर नगरमां चारुदत्त नामनो वाणियानो पुत्र हतो. ए चारुदत्त रूप, लावण्य, सौभाग्य वगेरे गुणोथी युक्त हतो, तेणे एक वार अकारण कोपेली एवी पोतानी स्त्रीने कठोर कडवां वचनो वडे तिरस्कार करी
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रीसे भराईने एम का के-हे पापण ! हुं तेवी रीते करीश जेथी तुं दुःखी दुःखी थईने जीवीश. सामुं ते स्त्रीए चारुदत्तने कां के, तारा बापने गमे ते करी नाखजे. पछी ते चारुदत्त पोताना एक मश्करा साथी साथे बीजी कोई कन्या साथे परणवाना विचारथी दक्षिणदिशा तरफ जवा लाग्यो, जल्दी जल्दी प्रयाण करतो ते ज्यां उत्तमोत्तम स्त्रीरत्नो सांपडे छे एवी कांची नगरीमा पहोंच्यो. ते नगरीमा प्रवेश करतां तेणे बाळकोने परस्पर क्रीडा करतां-रमत रमतां जोयां अने ते बाळकोमांना एक बाळके पोताना हाथमां रहेली सुगन्धी मालतीनी माळा बीजा बाळकना कंठे पहेराववा मांडी पण ते जेने पहेराववा मांडी तेनाथी वळी बीजा ज बाळकना कंठमां जईने पडीए पण चारुदत्ते जोयु. ते जोईने चारुदत्ते विचार कर्यो-अहो आ केQ सारुं शुकन थयु. पण तेनो परमार्थ समजवो कठण छे. जेने आ माळा पहेराववानी हती तेना कंठमां न पडतां ए बीजाना ज कंठमां जईने पडी ए वातनो परमार्थ समजातो नथी अथवा आवो विचार करीने शुं फायदो ? मारुं धारेलं काम पार पडी जाय एटले एनी मेळे ज ए शुकननो अर्थ समजवामां आवी जशे-एम विचारीने ते पोताना स्वजन वर्गना घरे गयो. त्यां जतां स्वजनोए स्नान विले. पन भोजन वगरेथी तेनो आदर कर्यो, ते त्यां केटलाक दिवसो रह्यो. प्रसंग आवतां पोते शा माटे अहीं आवेल छे ते पोतानुं आगमन प्रयोजन स्वजनोने तो कही संभळाव्युं. स्वजनोए एने घणी रीते एटले घणी युक्ति-प्रयुक्तिओ द्वारा आ काम करवानो निषेध कर्यो.
हवे आ तरफ-ते ज नगरमां गंगदत्त शेठनी कनकवती
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नामनी कन्या [पृ०४०]अनुपम रूप, यौवन वगरे गुणोथी युक्त हती. ते पोतानी सखीओ साथे बगीचामां जई फूलोने वीणती हती त्यारे त्यां तेणी सिरिदत्त नामना एक जुवान वाणियाने जोईने तेना उपर मोही पडी अने ए ज वखते कनकवती उपर कामे हवे पोताना बाणोना प्रहार करी तेने घायल करी नाखी. पछी ते केमे करीने एटले महामुशीबते पाछी वळी पोताने घरे आवीने एकदम ढीली थईने सुखशय्यामां पडी. कनकवतीनी व्याकुळता जोइने तेना घरनां माणसो भेगां थई गयां, तेमणे तेणीना शरीरना समाचार पूछया पण कशो ज उत्तर न मळतां ते लोकोए तत्काळ पूरता उपचार कर्या. हवे ते युवान सिरिदत्त पण कनकवतीने जोवाथी पोतानुं हृदय खोई बेठो अने तेनुं शरीर पण तत्काळ कामदेवनी अग्निनी ज्वालाओथी खवाई गयुं, तेने क्यांय पण चेन नथी. अने कमळनी पांखडी जेवी आंखवाळी ते कनकवतीनोज सतत विचार करतो रहेवा लाग्यो. एवामां ए सिरिदत्तने एक परिवाजिका मळी अने तेणीए तेने पूछचं के, हे पुत्र ! आम केम तारी आंखो शून्य-ऊजड थई गई छे. तेणे परिवाजिकाने का-हे भगवती ! हुं हुं कहुं ?
खीलेला कमळ जेवी लांबी आंखवाळी एक अबळा होवा छतां तेणीए मारं हृदय हरी लीधेल छे. आ जोतां मने मारु पुरुषपणुं निष्फळ जणाय छे. १
वळी, ए पूनमना चन्द्रनी जेवा मुखवाळी मात्र आटलुं करीने ज अटकी नथी पण हवे तो ते खरेखर मारं जीवन पण हरवा तत्पर थई छे. २
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आवी परिस्थिति मारो छे तो हे भगवती ! तुं कांई आ बाबत विचार करीने उपाय बताव जेथी करीने आ माणस मननो परिताप शांत थतां सुखे रही शके. ३
परिव्राजिकाए कह्युं - पुत्र ! स्पष्ट शब्दमां तारी वात कहे, पछी ते सिरिदत्ते कनकावतीना दर्शननो वृत्तांत कही संभळाव्यो. सांभळीने परिव्राजिका बोली - हे पुत्र ! तुं विश्वास राख अने निश्चित था. हुं एवो प्रयत्न करीश जेथी तुं ते कनकावती साथे निरंतर संबंधनुं सुख अनुभवी शकीश. तेणे कह्युं जो तारी कृपा थाय तो बधुं ज थई जशे . आम कहेल वात सांभळीने पछी ते परिवाजिका गंगदत्तशेठने घरे पहोंची, त्यां तेणीए जोयुं के गंगदत्तशेठनो बधो परिवार दुःखी छे अने कनकावतीनुं शरीर पण कोइ पीडाथी दुःखी छे.
[पृ०४१]आ जोईने परिव्राजिकाए कह्यं आ कनकावतीना शरीरमां तकलीफ जणाय छे तेनुं शुं कारण छे ! परिवारना लोकोए कहांहे भगवती ! अमे जाणता नथी. पछी परिव्राजिका बोली- जो एम छे तो तमे बधा दूर खसी जाओ, थोडीवार अहीं एकांत करी द्यो एटले अहीं कोई माणस न होय एम करी द्यो. आ कांई सामान्य दोष- रोग नथी, जो आ रोग तरफ बेदरकार रहेवामां आवे तो जीवितने पण नाबूद करी दे. आ सांभळीने परिजने परिवाजिकाने बेसवा माटे आसन आप्युं अने त्यां कनकावतीनी आसपास एकांत करी आयु पछी परित्राजिकाए वधारे वखत सुधी कांई आडीअवळी आमतेम चेष्टा करीने मोटो देखाव करीने अमुक प्रकारनी मुद्रानो विन्यास कर्यो एटले अमुक जातना खास विशेष आकारमां ते बेठी अने मंत्रना
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स्मरणनो प्रारम्भ कर्यो, फूल तथा चोखा उछाळीने जोगणीओना मंडळं पूजन कर्यु, हुंकार करवा लागी अने कनकावतीनी खूब पासे जइने - तेना कान पासे जईने महामन्त्रनी पेठे पेला जुवान वाणियाना समाचार कही संभळाव्या. कनकावती पण ए समाचार सांभळी पाछी एकदम साजी थई गई होय तेम राजी थईने कहवा लागी - हे भगवती ! हवे तमे ज मारे सारु प्रमाणरूप छो एटले तमे कहो तेम करीश. हवे तमे गमे तेम करीने एवो प्रबन्ध करो जेथी तेनी साधे मारो संयोग निरंतर थाय परिव्राजिका बोली- एम करूं कुं. हवे तेने पान - नागरवेलनं पान - तांबूल आपवामां आव्युं अने ते ऊठी. पछी परिव्राजिकाए पेला जुवान वाणियानी पासे पहोंची आ बधी हकीकत कही. एं वाणियाए पण उत्तम वस्त्रो वगैरे आपीने तेनो सत्कार कर्यो . हवे बीजे कोई दिवसे परिवाजिकाओ ते बन्नेने आम कह्युं - आजे रात्रे बे पहोर वील्या पछी सारुं मुहूर्त छे माटे तमारे बन्नेए भगवान कुसुमायुधना मंदिरमां जवुं अने त्यां विवाह करी लेवो. ते बन्नेए परिव्राजिकानी आ बात स्वीकारी.
हवे आ तरफ पेलो चारुदत्त जे पोताना विवाह माटे कांची नगरीमां आग्यो हतो अने तेना स्वजनोए ए माटे ना पाडी हती तेनुं काम सिद्ध न थवाथी तेने शोक थयो एटले ते पोताना सहायक साथे त्यांथी स्वजनने घरेथी नोकळी कुसुमायुधना ते ज मंदिरमां आवी रात्रे सूइ रह्यो, त्यां क्षणवार ऊंघ आवी एटलामां ज ते जागी गयो अने ते 'एकने कंठे नाखवानी माळा बीजाना कंठमां पडी गई' ए पूर्वे जोयेला बनावनो विचार करतो पेला मंदिरमां बेठो छे तेवामां ज घरना लोको
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न जाणे एम कनकावती ए मंदिरमां धीमे धीमे पगलां मांडती आवी पहोंची, आवी तो पहोंची पण तेने समयनु भान न रघु एटले मध्यरात्री थया पहेलां ज ते मंदिरमां पहोंची, तेनी पाछळ ज परणवा माटे एटले विवाह माटे जे उचित उपकरणो जरूरी छे तेने हाथमां राखी परिव्राजिका पण आवी. कुसुमायुधनी पूजा करी अने परिवाजिका [पृ०४२ ] पण गाढ अन्धकारमा मंदिरनी अन्दर हाथ फेरवतां फेरवतां चारुदत्त मल्यो. चारुदत्तनो स्पर्श थतां तेने एम लाग्युं के पोते पेला वाणियाने मंदिरमा आववानुं कही आवी हती ते कदाच आ सूतेलो माणस होय एवी शंकाने लीधो सूतेला माणसना कान पासे जईने ते बोली-अहो ! आम केम मोडुं करे छे ? आ हाथमां आवेल लग्नर्नु प्रशस्त मुहूर्त तो जवा लाग्युं छे. आ सांभळीने चारुदत्ते विचार्यु के, मने एम मालूम पडे छे के बिचारी आ बोलनारीए पहेलां कोइ पुरुषने अहीं आववानो संकेत करेलो लागे छे अने तेथी मने ते आवेलो समजीने. बोलावे छे तो ज्यां सुधी पेलो संकेत आपेलो माणस न आवी पहोंचे त्यां सुधीमां हुं पेली फूलनी माळावाळा बनावने यथार्थ-खरा अर्थमां साचो करी दर्ड, एम विचारीने ते झट उठ्यो, तेने कुसुमायुधनी सामे लई जई तेना चरणोमां नमाव्यो अने कनकावतीनो सहज लाल हाथ तेना हाथमां रखाव्यो एम करीने संक्षेपमां बाकीनो ते समयने योग्य विवाहविधि करावी दीधो. आ रीते विवाहनो विधि पूरो थई गया पछी कनकावती ते परिवजिकाने पगे पडी अने तेने पोताने स्थाने जवा माटे विदाय आपी. पछी कनकावतीए पोते परणेला पुरुषने कह्यु-हे आर्यपुत्र ! आ जातनो
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व्यवहार करवामां उत्तम माणसोनी संमति नथी होती माटे केटलाक दिवस आपणे अहींथी बीजे ठेकाणे बहार जइने रहेवं जोईए. चारुदत्ते कनकावतीनी आ बात मानी. पछी ते बन्ने कुसुमायुधना मंदिरमांथी बहार नीकळ्यां. हवे चारुदत्तनो साथी ते मंदिरमां ज सूतो हतो तेने आ समाचार कहेवा चारुदत्ते विचार कर्यो अने पछी ते एकलो 'अरे ! कुसुमायुध भगवानने पगे पडवुं तो रही गयुं' एवं बानुं करीने ए मंदिरमां पाछो गयो अने तेणे भरऊंघमां पडेला पोताना मश्करा सहकारीने जगाडीने रात्रे थयेला पोताना विवाहना खबर आपी दीधा. ते साथीए चारुदत्तने कां - हे चारुदत्त ! जो एम बनाव बनेल छे तो तुं तने कोइ ओळखे-कळे नहीं ए रीते एकलो ज तेणीनी साथे जा, हुं वळी थोडीवार पछी तारी अहीं ज वाट जोइने आवीश अने तुं ज्यां होईश त्यां तने मळी शकीश. मित्रे आम कह्या पछी चारुदत्ते तेना वचनने मानीने कनकावती साथे बीतां बीतां नगर तरफ प्रयाण कर्यु. हवे आ तरफ पेलो जुवान वाणियो पेली परिव्राजिकार आपेल संकेत प्रमाणे बे पहोर रात बीती गया पछी पोताने कुसुमायुधना मंदिरमां पहोंचवुं जोईए एम जाणी कुसुमायुधना मंदिरमां ते पहोंच्यो अने चारुदत्तना त्यां सुतेला मस्करा मित्रने कनकावती समजी धीमी वाणीवडे कहेवा लाग्यो केहे कनकावती ! हवे तुं जलदी आवी जा, हुं आवी गयो लुं. आ वात सांभळी पेलो मश्करो मित्र समजी गयो के कंईक गोटाळो थई गयो छे, छतां ते मश्करो होई केलिप्रिय हतो तेथी तेणे स्त्री बोले ए जातनी भाषा द्वारा धीरेथी जवाब आपी तेनी सामे जइने उभो रह्यो .
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पेला युवान वाणियाए पण उतावळने लीधे चित्त स्थिर न होवाथी कोई जातनी तपास कर्या बिना अने खरी वातनो विचार कर्या विना ज तेना गळामां फूलनी माळा पहेरावी दीधी अने हाथमां कंकणो बांधीने-पहेरावीने विवाह करी लीधो.
पृ०४३] आ वखते चारुदत्तनो पेलो मश्करो साथी खी खी करतो हसतो हसतो बोल्यो-भो ! भो ! महानुभाव ! पुरुष पुरुषने परणे एवो व्यवहार शुं तमारा नगरमां प्रचलित छे ? में ते आq क्यांय कोई पण रीते सांभल्युं नथी, जोयुं नथी अने मने तो आ एक आश्चर्य जेवू लागे छे. एम कहेतो ते मश्करो चारुदत्तनो साथी त्यांथी झपाटाबन्ध पलायन करी गयो. पेलो जुवान वाणियो तो आ सांभळीने भोंठो ज पडी गयो अने आ प्रमाणे विचारवा लाग्यो
रे ! हताश हृदय ! तुं आ ज लागर्नु छे एटले आ जातनी तारी वंचना थाय तेने ज तुं योग्य छे. हे पापी मन ! कूडकपटनी भरेली एवी स्त्रीओमां तुं विश्वास राखे छे माटे तारी आवी ज वले थवी जोईए. १
तुं एटलं पण समजतुं नथी के आ स्त्रीओ विविध स्त्रीचरित्रो करनारी छे अने पोतानी चतुराइने लीधे सुरगुरु- बृहस्पतिने पण एकदम ठगी ले छे. २ तथा,
ए स्त्रीओ कोई एकनी साथे स्नेहवाळां वचनो बोली बहु बोल बोल करे छे, बीजाने आनन्दपूर्वक आंखना मात्र चेनचाळा करी पोता तरफ खेचवो भूलती नथी. ३
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वळी बीजानी साथे तेनुं हृदय हरी लई अटक्या वगर खूब क्रीडा करे छे अने बीजाने बळी लटका करीने ज मळवानो संकेत आपे छे. ४.
हे मूढ हृदय ! स्त्रीओनी आ प्रमाणेनी परिस्थिति छे. ए जोई जाणीने एटले खरी वस्तुस्थिति जाणीने तुं नकामो नकामो खेद न कर अने वर्तमानमां तारे माथे जे नियत अथवा पोतानां कार्य आवी पडेलां छे तेमां तुं आदेश प्रमाणे लागी जा, ने एटले तुं एमांज सुख मानीने कार्य कर. ५.
ए प्रमाणे पोताना हृदयने समजावीने-स्थिर करीने ए युवान वणिक जेवो गयो हतो तेवो ज त्यांथी पाछो फर्यो. हवे सूर्यमंडल ऊग्या पछी पेलो चारुदत्तनो मश्करो साथी चारुदत्तने आवी मल्यो. चारुदत्त पण तेना हाथमां कंकण बांधेलुं जोईने बोली उठ्यो-अरे ! तुं ताजो ज परणेलो होय एवो देखाय छे तो तारी स्त्रीने तो बताव. ए मश्करा साथीओए खूब मोटेथी हसीने का हे प्रियमित्र ! तारी कृपाथी हुँ पोते ज मारी भार्या-स्त्री छं. चारुदत्त बोल्यो-ए केवी रीते ? पछी ते मश्करा साथीए आगळनो एटले रात्रे बनेलो बधो ज बनाव यथास्थित वर्णवी बताव्यो. आ सांभळीने कनकावती खरी वात पामी गई अने लाज शरम छोडीने हसवा लागी. कनकावतीने खबर पडी गई के जे युवानने ते परणवा इच्छती हती तेने बदले बीजा युवानने ते परणी छे. पण पोते परणेला आ चारुदत्त नामना बीजा युवानमा रूपनो अतिशय जोईने पछी ते तेमां ज एटले पृ०४४] चारुदत्तमां ज अनुराग राखवा लागी गई.
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हवे ते बन्ने वच्चे परस्पर गाढ प्रेम थई गयो अने एवां प्रेमी बनेलां ते शंखपुर पहोंच्यां. पोताना घरमां तेमणे प्रवेश को अने सुखना समुद्रमां आनन्दपूर्वक हिलोळा लेतां होय-सारी रीते तरतां होय ए रीते तेमनो समय वीते छे. चारुदत्तनी जेम तेम बकती आगली स्त्रीने कनकावतीए भगाडी मेली-नसाडी मूकी. आ रीते ए कनकावतीए तेने नसाडी मेली तेथी भोगांतराय कर्म बांध्यु. पछी कालक्रमे मरण पामी कनकावती तिर्यक्रगतिमां-पशुयोनिमां जन्मी. चारुदत्ते पण कनकावती जेने परणवानी हती ते वाणियाना मनमां विसंवादनो परिणाम पेदा करवाथी एटले ते वाणियामां निराशा पेदा करवाथी जलदी क्षय न पामे एवं निबिड भोगांतराय कर्मनु भातुं भेगु कर्यु अने एथी ज ते पण मरण पामी तिर्यंचयोनिमां जन्म्यो. आ रीते कनकावतीथी लांबां काळ सुधी वियोगी बनीने, संसारमा लांबा वखत सुधी भमीने तेणे कोई आचरेला सदाचाररूप शुभ कर्मने लीधे, हे महाराज ! ते चारुदत्त तारे घरे पुत्रपणे जन्मेल छे. अने तेणे आगळ कह्या प्रमाणे जे भोगांतराय कर्म बांधेल ते हजी पूरुं भोगवाई रघु नथी एटले बाकी रहेला ए भोगांतराय कर्मने लीधे ते तारो पुत्र सुरसेन पोतानी पूर्व भवनी स्त्रीने नहीं जोतो एटले ज्यां सुधी एने पोताना पूर्व भवनी स्त्री न मळे त्यां सुधी ते बीजी कोई स्त्रीने परणवाने ईच्छतो नथी-ईच्छवानो नथी. आ रीते सूरप्रभ आचार्ये राजा महासेनने तेणे पूछेला पोताना पुत्र सूरसेनना नहीं परणवाना प्रश्ननो जवाब आपतां तेना पूर्वभवनी हकीकत कही सं मळावी. आ सांभळीने राजाना मनने भारे विस्मय थयो
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अने आ हकीकत सांभळी ते पोताना नगरमां गयो अने सूर्यप्रभ आचार्य पण बीजे स्थाने विहार करी गया.
हवे पेली कनकावतो लांबा काळ सुधी संसारमां आथडवाथी तेनुं भोगांतराय कर्म मोटे भागे भोगवाई गयुं तेथी घणुं ओकुं थई गयुं, एने लीधे ते कुसुमत्थल नामना नगरमा राजा जितशत्रुने त्यां एनी पुत्रीपणे जन्मी, योग्य वखत थतां ते पुत्रीनुं नाम रयणावली - रत्नावली पाड्युं. हवे ज्यारे ते भरजोबनमां आवी तो पण तेणीने पोताना पूर्वभवना प्रिय पतिमां गाढ स्नेह हतो तेथी ते एना सिवाय कोई पण सुंदर राजकुमारोनो पण अभिलाष नहीं करतां एम ने एम बखत वीतावे छे. हवे एकबार रत्नावलीना पिता राजा जितशत्रुए सांभल्युं के सुरसेन कुमार पण कोई पण स्त्रीने परणवा ईच्छतो नथी अने तमाम स्त्रीओथी पराङ्मुख रहे छे. ए रीते ए कुमार तमाम स्त्रीनो द्वेषी छे. आ तरफ पोतानी पुत्री पण रत्नावली तमाम पुरुषोनो द्वेष करनारी छे, एम समजी राजा जितशत्रुने एम लाग्युं के जो कदाच आ बे जणनो एटले पोतानी पुत्री अने पेला सुरसेन कुमार ए बेनो संयोग कराववानी विधिनी मरजी होय, एम विचारीने अने एम थयुं के आ बन्नेनां प्रतिरूपो चितरावीने ए प्रतिरूपोने एक बीजाने देखाऊं तो तेमना बन्नेना मननी खबर पडी जाय आम विचारीने राजा पोतान पुत्री रत्नावलीना रूप प्रमाणे तेनी एक चित्रपट्टिका तैयार करावी. ए चित्रपट्टिका दूतने सोंपी अने तेने राजाए कहाँ के - अरे ! तुं [पृ०४५] आ चित्रपट्टिका लईने महासेन राजा पासे जा अने कहे के राजा जितशत्रुए तमारा पुत्र सुरसेन
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कुमारने पोतानी पुत्रीने वराववानी वात कहेवा माटे मने मोकल्यो छे अने प्रसंगे आ चित्रपट्टिका तेने बतावजे अने कुमारना रूपनी पण आवी ज चित्रपट्टिका लइने तुं पाछो जलदी आवी जजे. ए दूत गयो, जइने राजाने मळ्यो अने उचित प्रसंगे पोताना आववानुं प्रयोजन पण कही संभळाव्यु. दूतनी वात सांभळीने राजाए पण कह्यं के–भो ! आ तारी वात हुं समज्यो पण केवळ दूर रहेली राजकुमारीना रूपने जोया विना ज अहीं रहेलो मारो कुमार तेना तरफ स्नेहने शी रीते धारण करे ? अथवा जे कुमारना स्वरूपथी अजाणी छे छतां पण तेने कुमार साथे एकदम साहस करीने परणावी दईए तो पछी मारी कुमारी शुं दुःखी न थाय ! संताप न पामे ? माटे युक्त तो ए छे के तेओ बीजो एक बीजानां रूप जोई ले जेथी
जे जे कार्यों निपुण बुद्धि वडे सारी रीते जोई समजी विचारीने करीए पछी भले दैव एने बगाडी नाखे पण ते कार्योंने जोइने लोको तो हसे नहीं १. राजाए आम कह्या पछी कनकावतीनी चित्रपट्टिका दूते राजाने आपी अने राजाए पण ए चित्रपट्टिकाने कुमार पासे पहोंचाडी दीधी. ज्यारे रत्नावलीना रूपनी चित्रपट्टिका कुमारे जोई त्यारे ते पूर्वभवना प्रेमने लीधे ते कुमारने ए चित्रपट्टिका जोतां हर्ष थयो, कामदेवने घणे लांबे समये तक मळी तेथी तेणे रोषपूर्वक पोतानुं अकुंठ अने असह्य-दुःसह्य बाण कुमारने मायु. बाण वागवाथी कुमार जाणे त्यां जडाइ गयो होय ए रीते निश्चल शरीर थई गयो पछी तो तेणे बीजी बधी प्रवृत्तिओने तजी ज़ दीधी अने
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मोटा मोटां बोर जेवां मोतीनो भ्रम करावे एवा परसेवानां बिंदु
ओना समूहने लीधे तेनुं कपाळ चमकवा लाग्यु. एवो ते पेली चित्रपट्टिकाने जोवाथी परसेवे रेबझेब थई गयो. कुमारनी आ परिस्थिति जोइने तेना मननो भाव जेने समजाइ गयेल छे तेवा पासे बेठेला माणसे चित्रपट्टिका जोया पछी कुमारनी आवी दशा थयानी वात राजाने कही संभळावी. वात सांभळीने राजाने खूब संतोष थयो अने राजाए पेला चित्रपट्टिका लावनार दूतने समाचार आप्या के अरे! मारा कुमारनो तारा राजानी पुत्री उपर स्नेहभाव थयो छे एम जणाय छे पण ए रत्नावली राजकुमारीनो मारा कुमार सूरसेन तरफ केवोक स्नेहभाव थाय छे ए हवे जाणी लेवू जोईए. कारण के - ___ परणनार बे जणमां एक स्नेहथी भरपूर होय अने बीजुं स्नेह वगरनु होय त्यारे एवा स्त्रीपुरुषोना भोगो मात्र विडम्बना रूप ज निवडे छे. १
परणनार बन्ने जण वच्चे बनावट वगरनो, वांको नहीं पण सरळ सीधो अने परस्परनां छिद्र जोवानी वृत्ति वगरनो एवो प्रेम अने एवो प्रेम बन्ने वच्चे एकसरखो होय तो ज जगतमां एवो प्रेम वखणाय छे. २ .. [पृ० ४६] आ सांभळीने दूत बोल्यो-हे देव तमारी वात तदन खरी छे. माटे अमारी राजकुमारी रत्नावलीने बताववा माटे तमारा राजकुमारचं रूप जेमा आलेखेल होय तेवी तेनी चित्रपट्टिका आपो. राजा बोल्यो, तारी आ वात युक्त छे. पछी राजाए राजकुमारचं रूप फलक उपर आलेखीने रोते ते चित्रपट्टिका दूतने आपी. कालक्रमे ए दूत
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जितशत्रु राजा पासे पहोंच्यो. तेना पादपीठने प्रणाम करीने पासेनी जग्या उपर ते नीचे बेठो. महासेन राजाए तेने पूछ्यु. दूते बनेली बधी वात बराबर कही संभळावी. ते पछी दूते चित्रपट्टिका काढीने राजाने बतावी, राजा महासेने आदर साथे ए चित्रपट्टिकाने जोई. बराबर सारी रीते जोईने राजाए ते चित्रपट्टिकाने पोतानी पुत्री रत्नावली पासे मोकली आपी. रत्नावलीए चित्रपट्टिकाने जोइ, जोइने तेना हृदयमां पूर्वभवना प्रेमनो आवेग चडी आव्यो, एने लीधे तेना हृदयमां कामदेव- भालु वाग्यु अने तेना मनमा मदननो विकार आवेल छे ते वात तेना शरीरमां खूब वळी गयेला परसेवानां बिंदुओए ज जणावी दीधो. हवे तेने जेम कुमारीओने शरम आवे छे तेम शरम आवी गई पण ते शरमने ते छुपावी शकती नथी तेथी पोताना मनना विकारने छुपावी राखवा सारु तेणे बनावटी क्रोध को अर्थात् भवांओने कपाळ उपर चडावी दई बीहामणुं मों करवानो ढोंग करती होय तेम रीसना जोरथी बोलवा लागी, के अहो ! आ चित्रपट्टिका मारी पासे कोण लाव्युं छे ? तेनी दासीओए को-हे स्वामिनी ! तमारा पिताजीए मोकलेल छे. रत्नावली बोली-शा माटे मोकली छे ? दासीए कह्यु-तमने जोवा माटे, देखाडवा माटे, तेणी बोली-मने देखाडीने शुं काम छे ? आ बावत हुं कोण र्छ ? एटले आ अंगे अभिप्राय आपनारी हुं कोण ? कन्याओ मोटुं तो गुरु वडील जनोने आधीन छे. स्वच्छंद चरित्र तो कुलनु दूषण छे. तो मारे आ चित्रपट्टिका जोवाथी सयुं अर्थात मारे एने जोवानी जरूर नथी एम कहीने ते पोताना ओरडामां पेत्री
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सुखासन उपर अथवा सुखशय्या उपर बेठी.
पोताना प्रियनु चित्र जोयु. घणा लांबा काले तक मळतां ज तेना सर्व अंगमां जागेला कामदेवना रणरणका वडे-रणझणाट वडे ते घेराई गई. उत्कंठा धात्रीनी पेठे तेनी साथे रहेवा लागी एटले तेना चित्तमां विशेष उत्कंठा थवा लागी. चित्रमा आलेखेल कुमारनु रूप जोर्बु केम पडतुं मेल्युं ? तेम करीने कुपित थयेलो परिताप तेना देहमां अणुए अणुमां चोंटी गयो-फरी वळ्यो. तेने खूब ताव आव्यो. आ स्थितिमां तेने चेन न पडवाथी ते त्यां घरमां न रही शकी एटले घरमां रहतुं न गम्युं तेथी केटलीक मुख्य दासीओने साथे लई ते प्रमदवनमां पहोंची, त्यां जई तेणे कदली युक्त लताना एटले फूल साथेना लतामंडपोमां समय वीताववानुं धायु, निरंतर वहेता जलयंत्र-फुवारामांथी नीकलता गंभीर अवाजने मेघनो अवाज समजी खुश थयेला मयूरोना मनहर केकारवोने लीधे ए मंडपो मुखर थई गया हता तथा मंडपोमां उगेली सुगन्धी माळतीनो अने कमळनो सुन्दर परिमळ त्यां चारे दिशाओए फेलाई गयो हतो. एवा ए मंडपो सुन्दर छतांय त्यां तेने बहु चेन न पडद्यं तेथी त्यां ते थोडी ज वार रही पछी तेणीए दासीओने कह्य-एली ओ ! सखीओ ! सरस कमळनां नाळ लावो, तेनी शय्या बनावो. आजे मध्याह्नना सूर्यनी तेजलक्ष्मी भारे प्रचंड छे. एटले आजे घणो ज सखत ताप छे अने ते मारे माटे भारे असह्य छे.
[पृ० ४७] ए सांभळी दासीओए कह्यु--मालिकनी दीकरीनी जेवो आज्ञा एम कहीने पासेनी तळावडीमांथी कमळनां नाळ तेणीओए
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आण्यां. तेनी पथारी पाथरी दीधी, ते उपर रत्नावली आडी पडी, अने पछी बीजी शीत वस्तुओ एटले निर्मळ चन्दननो रस तथा कपूर वगैरे तेणीने शरीरे चोपड्या छतांय तेणीनो थोडो पण संताप ओछो न थयो. वळी--
तेणीना शरीर उपर जेम जेम ठंडा पदार्थो वडे शीत उपचार करवामां आवे छे तेम तेम तेणीना मनमा रहेलो कामरूपी अग्नि हजार गणो भभके छे. १
वळी चालवा लागे छे, के उभी थाय छे, पडखां फेरवे छे, नीसासा मूके छे अने घड़ीक कशुं ज बोलती नथी. थोड़ा पाणीमां रहेली माछली जेम तरफडे तेम राजानी पुत्री रत्नावली पण तरफडे छे. २
___ आ जातनो तेणीना देहमा उठेलो दाह जोईने दासीओए तेणीने पूछचु-हे स्वामिनी ! आ रीते आजे तारुं शरीर खूब आकुलव्याकुल देखाय छे तेनुं शुं कारण छे ? शुं आ अपथ्य भोजननो विकार छे के कुपित पित्तनो दोष छे के बीजु कई कारण छे ? आप आ अंगे बराबर चोक्खी वात कहो जेथी वैद्यने आ विशे कही शकाय, उचित औषध वगेरनी सामग्री तैयार करी शकाय. देहमां थता रोगोनी शत्रुओनी जेम उपेक्षा न करवी जोईए. आ सांभळी रत्नावली बोली-मने तो आ अंगे कोई पण विशेष कारण हालमां ध्यानमा आवतुं नथी. दासीओ बोली-हे स्वामिनी ! ज्यारथी तमे पेली चित्रपट्टिका जोई छे त्यारथी ज तमारा शरीरनो अन्यथाभाव विपरीतता एटले शरीरना-केटलाक आवा हाल थया होय एम अमने तर्क थाय छे. बाकी खरेखरी बात तो तमे ज जाणी शको.
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आ सांभळीने रत्नावलीने खबर पडी गई के आ दासीओ ' मने आम केम थाय छे' एर्नु रहस्य समझी गई जणाय छे. आवो विकल्प करीने रत्नावलीए का-हे सखीओ ! तमे जाणो छो. पछी दासीओए विचार कर्यों के हजु ज्यां सुधी आने विरहनी भारे व्यथा नथी त्यां सुधीमां आनी आ परिस्थिति राजाने जणावी देवी जोईए, केमके विरहनी पीडा भारे विषम थवा मांडे त्यारे तो भारे विषम स्थिति पेदा थई जाय छे. एटले एवी वखते जीववानुं ज शंकामां आवी पडे छे. कामदेवना बाणोना घा भारे निष्ठुर होय छे त्यारे आ रत्नावलीनी शरीरश्री तो शिरीषना फूल जेवी कोमळ छे अर्थात् आनुं शरीर कामदेवना बाणनो घा सही शके एम नथी. खबर नथी छेवटे काई पण अजुगतुं पण थई जाय ? आम निश्चय करीने ए रत्नावलीने आ बधा समाचार राजा पासे पहोंचाड्या. [पृ०४८] तेणे पण रत्नावलीने पोतानी पासे बोलावी अने स्नेहथी कयु-हे पुत्री ! शूरसेन अथवा सुरसेन कुमार साथे तने परणाववा अमे ईच्छीए छीए. अमारो आ विचार शुं बराबर छ ? रत्नावली बोली-पिताश्री जाणे. आम वात थया पछी रत्नावलीनो अभिप्राय अनुकूळ जाणीने राजाए पोताना प्रधान पुरुषोने बोलावीने का-अरे तमे महासेन राजा पासे जाओ अने त्यांथी सुरसेन कुमारने अहीं तेडी लावो जेथी आपणी राजकुंवरीनो जल्दी विवाह करी शकाय. पछी ते प्रधान पुरुषो 'जेवी आपनी एटले देवनी आज्ञा' एम करीने त्यांथी नीकल्या अने महासेन राजाना
१ पहेलां (मूळ पार्नुः ३६)सुरसेण शब्द आवेल छे. अहीं सूरसेन पाठ छे. एटले सुरसेन अथवा शूरसेन एम बन्ने शब्दो समजवाना छे.
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प्रदेशमां जवा उपड्या, क्रमे करीने चालता चालता एटले एक पछी एक गाम वटावता सिरिपुर पहोंच्या, राजाने मळ्या, पोताना आववानुं प्रयोजन प्रधान पुरुषोए कही बताव्यु. आ सांभळी महासेन राजाए पोताना उत्तम मंत्रीओ सामंतो चतुरंगी सेना साथे शूरसेन कुमारने रत्नावलीनी साथे विवाह माटे रवाना कर्यो. जल्दी जल्दी प्रयाणो करता शूरसेन कुमार सिरिथल-श्रीस्थल-नामना नगरनी पासे पहोंच्या.
राजा जितशत्रुने कुमारना आववाना समाचार जणाव्या, राजा जितशत्रु राजी थयो, जे लोको कुमारना आववाना समाचार जणाववा आव्या हता तेओने पारितोषिक देवामां आव्युं. पछी राजा जितशत्रुए पोताना पुरुषोने कां-जेलमां बंधाएला माणसोने छुटा करो, कोई जातनो भेदभाव राख्या विना मोटा मोटां दान देवा मांडो, राजमार्गोने सुशोभित करो, हाटनी शोभाओ करावो एटले बजारने शणगारावी, महोत्सवो चलावो, मंगळवाजां तैयार करो-वगडावो, विशेष हर्षसूचक एवी शंखनी जोडी वगडावो अने हाथणीने सजावीने अहीं लावो जेथी कुमारनुं सामैयुं करवा जईए. राजाए आ बधा जे हुकमो कर्या ते प्रमाणे राजाना पुरुषोए बधु ज करी दीधुं. पछी राजा कुमारनी सामे जवा नीकळ्यो. मधुमथन-कृष्ण जेम लक्ष्मीना समा१. हयदळ, गजदळ, रथदळ अने पायदळ, ए चार सेनानां अंगो छे. २ मूल पार्नु:३६ मां सिरिपुर नगर कह्यु छे अने अहीं सिरिथल-श्रीस्थल नगर कयुं छे. एटले आ बन्ने एक ज अर्थनां नाम समजवां.
आत्मानंद सभा, भावनगर-आ ग्रंथना भाषांतरकारे आ स्थळे 'कुसुमस्थल' नाम (भाषांतर पार्नु ३००) लखेल छे अने ए ज भाषांतरकारे आगळ (भाषांतर पार्नु २९९) श्रीपुर नाम लखेल छे. आमां तेमनी समजफेर जणाय छे.
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गम माटे उस्सुक होय छे तेम कुमार सूरसेन रत्नावलीना समागम माटे उत्सुक छे. ए रीते तेणे कुमारने जोई दूरथी ज कुमारे राजाने प्रणाम कर्या, कुमारने खूब भेटीने दृढ आलिंगन करी राजाए तेनुं अभिनंदन कर्यु. मोटी धामधूम साथे तेनो नगरमा प्रवेश कराव्यो अने उचित स्थाने जानीवासो आप्यो आने बीजुं पण जे कांई तत्काळ करवा जेवुं हतुं ते बधुं करवामां आव्युं क्रमे करीने विवाहनो दिवस आवी पहोंच्यो, कुमार सूरसेनने नवराववामां आव्यो, सुंदर आभरण पहेराववामां आव्यां, उत्तम सुंदर हाथी उपर ते कुमार बेठो. पछी शंख तथा कांसाजोडमांथी नीकळता गंभीर तथा वाजाओमांथी नीकळता अवाजथी दिशाओनुं मंडळ भराई गयुं, कुमारनी पाछल हाथमां सोनाना दांडावाळा ध्वजो लइने अनेक माणसो चालवा लाग्या, वरघोडामां धवळ मंगळो ने उत्तम नारा साथे नाटको करनाराओथी रस्तो सांकडो थई गयो, विस्तारवाळां-लटकतां उत्तम कपडां परेली अने नाचवाथी धूळ उडवाने लीधी मेली थयेली एवी वेश्याओनो समूह मनोहर ताल साथे ए वरघोडामां नाचतो हतो. आ रीते मोटी धामधूम साथे शूरसेनकुमार विवाहना माडवामां आवी पहोंच्यो. [पृ०४९] पछी त्यां तेनी सासुए जे करवानुं उचित हतुं ते कर्तुं एटले तेने पोख्यो अने पछी तेने कौतुक घरमा एटले ज्यां कन्या बैठी हती त्यां एटले मायरामां कुमारने मोकलवामां आव्यो. त्यां तेणे अंगे लगाडवाना विविध वर्णकोथी लेपायेली, अंगेअंगमां उत्तम रत्नोनां घरेणाओथी सुशोभित थयेली, निर्मळ रेशमी बे वस्त्रो पहेरेली, उत्तम चंदनथी लेपायेली तथा सुगन्धी घोळां फूलोनी माळाओथी लदायेली
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रत्नावलीने जोइने पूर्वभवना दृढ़ प्रेमरूप दोषने लीधे सुरसेन कुमारना चित्तमा अपरम्पार प्रेम उभराई गयो. कुमारे विचार्यु -अहो ! अनुपम रूपसंपत्ति, अहो ! शरीरनुं लावण्य शरीरना कोई पण भागमां खंडित थयेल नथी. 'आ संसार असार छे तो पण एमां आवां कन्यारत्नो देखाय छे' एम विचारी प्रमोद पामेला कुमारनुं पोंखवगेरे विवाहकृत्य करवामां आव्यु, देव अने गुरुओनी विशेषरीते पूजा करवामां आवी, मोटी धूमधाम साथे पाणिग्रहणनो प्रारंभ थयो, राजानेकुवरीना पिताने-संतोष थयो, सामंतोनुं संमान करवामां आव्युं, पोताना स्वजन संबन्धीओने खुशी करवामां आव्या, नगरना लोकोनुं अभिनन्दन करवामां आव्यु, चारे फेरा फरवामां आव्या, आ रीते विवाहनो उत्सव उजवाई गयो अने रत्नावलीनी साथे कोई बीजानी तोले न आवे एवं विषयसुख अनुभवतां केटलाक दिवसो वीती गया. हवे बोजे कोई दिवसे राजाने पूछोने रत्नावलो सहित कुमार पोताना नगर तरफ जवा प्रयाण करवा लाग्यो. रस्तामा प्रवास करतां वच्चे वसंत ऋतु आवी. ए वसंत ऋतु केवी हती ? ए ऋतु आवतां युवान स्त्रीओना मनमां कामदेवनी विशेष असर वधवा लागी. प्रवासी लोकोना हृदयमां कोयलना मधुर कलरवो सांभळतां विशेष त्रास थवा लाग्यो, फूलोमां रहेला मकरन्दनां बिंदुओने पीवा माटे परवश थइने लीन थयेला भमराओ खूब खूब गुंजवा लाग्या, खोलेला सुगन्धी आंबानी उडेली रजरूप धूळने लीधे बधी दिशाओ झांखी देखावा लागी, कुरबकना फूलोना सुगन्धने लीधे चारे कोरथी भमरीओ खेंचाई आववा लागी, आराम सेवननुं सुख. मेळववा-आराम मेळववा
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–माटे बेठेला पशुओने खेडुतो मार मारीने बेठा करवा लाग्या, रास लेती चर्चरीओना-मंडळीओना वाजांनो मधुर घोष संभळावा. लाग्यो, तरुखंडना मांडवाओमां चारे कोर हिंडोळा बंधावा लाग्या.
जेम वीतराग पुरुषनी पाछळ 'अतिमुक्तक गयेल छे तेम आ वसंत ऋतु आवतां ज तेनी पाछळ चारे कोर अतिमुक्तकनी वेलो खीली उठी छे, जेम लक्ष्मीनाथ-श्रीकृष्ण भमराओना टोळा जेवी श्याम कांतिवाळा छे तेम वसंत ऋतु भमराओ चारे बाजु वनमां उडता होवाने लीधे श्याम कान्तिवाळी छे, जेम मानससरोवर पाटलाना हसणीनां बच्चाओने लीधे सुन्दर लागे छे तेम वसंतऋतु पाटलवृ. क्षोनां खीलेला फूलोने लीधे सुन्दर लागे छे, जेम तरुणीस्त्रीओ स्निग्ध तिलकोथी सुशोभित छे, तेम वसन्तऋतु चीकाशदार लोध्र अने तिलक ना वृक्षोथी सुशोभित छे. जेम मुनि अशोकयुक्त होय छे अर्थात मुनि शोकरहित होय छे तेम वसन्तऋतु अशोक नामना वृक्षोथी व्याप्त छे. वळी
पृ०५०] जे वसन्तमां उनाळाना तापने सीधे संताप पामेला जंगली पाडानां टोळां खाबोचियाना गारावाळां पाणीमां पोतानां अंगे अंगने तरबोळ करता जाणे कोई पर्वतना शिखरो होय एवा ऊँचा देखाय छे. १
जे वसन्तमा उत्तमवननो विस्तार कुटज सिलिघ्र 'शिरीष वगैरे
१ अतिमुक्तक नामनो कुमार भगवान महावीर ज्यारे तेने घरे भिक्षा माटे पधार्या त्यारे तेमनी पाछळ पाछळ गयो हतो.
२ कुटज-इन्द्रजव. भाषामां अंदरजव । ३ छत्रक नामर्नु वृक्ष. ४ शिरोष-सरसडी. जेनां फूल घणां कोमल तथा सुगन्धित होय छे.
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वृक्षोना फूलोमांथी पसरता सुगन्धने लोधे एवो रमणीय लागे छे जाणे के सुगंधी वस्तु वेचनार गाँधी- हाट ज न होय. २
जे वसन्तमां केसुडांना वृक्षो पोतानां खोलेला फूलना समूहथी ढंकायेला होवाथी लाल-चोळ, केम जाणे पथिक-प्रवासी जनोना फुटी गयेला हृदयमांथी तत्काल नीकलेळा ताजा लोहीथी लेपायेला तरबोळ थया न होय एवा शोभे छे. ३ ___ जे वसन्तऋतुमां आखं वन केम जाणे नाचतुं होय एम आनन्दित जणाय छे. ए वनमां कोकिलाओनो कलरव ए गीत छे, भमराओनो गुंजारव ए वाजां छे अने पवनथी हलता वृक्षोना पल्लवो ए रासलेवानी बाहुलताओ छे. ४ ।
जे वसन्तमा जुवान लोको मकरध्वजने जीवाडवा माटे मदिरा, उत्तम औषधिओनो रस न . होय एम मानीने स्त्रीना मुखकमलनी वास जेमां भळेल होवाथी सारी सुगन्धित बनेली एवी मदिराने पीए छे. ५
ए वसंत ऋतुनी लक्ष्मी केम जाणे कमळरूप मुखवडे गायन करती होय एवी शोभे छे, ए लक्ष्मीना दाँत विचकिलनी-बेलानी कळीओ छे, कुवलय आंखो छे, हंसोना कलरव ते शब्दो छे अने कमळ मुख छ.६
विषपुष्पोमांथी फेलातो गंध जेम लोकोने बेभान करी नाखे छे तेमज प्रवासी लोकोने पोतानी प्रणयिनीओनुं स्मरण थतां बकुलनां फूलोमांथी तेमना ऊपर पसरतो-आवतो गंध तेमने विलुप्तचैतन्यबेभान-मूर्छित करी मूके छे. ७ ____ ज्यारे आकाशमां ताराओ उग्या होय, अने आकाशनी जे शोभा देखाय छे ते शोभाने जे वसंतऋतुमां विकसेल धोळां पुष्पोना
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गुच्छाओथी ढंकायेला ऊँचा ऊँचा वृक्षा विडम्बना आपे छे अर्थात् एवा आकाशनी शोभा आ वृक्षोनी शोभा पासे फीकी लागे छे.
__ आ रीते गुणोने लीधे सुन्दर एवी वसंत ऋतु आवतां सूरसेन कुमार, ते ज वखते देशांतरमाथी आवेला वाणिआ लोकोए आणेला उत्तण घोडा उपर चढेलो, उजला कापडनो पोशाक पहेरीने माणसोने साथे लइने बननी शोभा जोवा नीकळ्यो. चालता चालता घोड़ो कुमारना ताबामां नहीं रह्यो, घोड़ाने विपरीत शिक्षा मळेली होवाथी जेम जेम कुमार तेने ऊभो राखवा चोकड़ानी राश खेंचे छे तेम तेम ते वधारे ने वधारे दोड़वा लागे छे अर्थात् थयेलो रोग जेम अपथ्यने लीधे वेगथी वधी जाय तेम आ घोड़ाने ऊंधी शिक्षा मळेली होवाथी तेने अटकाववानो उपाय करता ते वधारे दोड़वा लाग्यो, आम थवाथी सुरसेन कुमारना [पृ०५१]माणसो तेनी पाछल घणे दूर रही गया. जेम दुष्कृत कर्मोने लीधे प्राणी संसारनी महा अटवीमां पड़ी जाय तेम, आ घोड़ाए ते कुमारने एकलाने दूर मोटी अटवीमां आणीने नाख्यो अने घोड़ो खूब दोड़वाना थाकने लीधी थाकी गयो होवाथी मरी गयो. कुमारने पण खूब तरश लागवाथी तकलीफ थवाने लीधे त्यां अटवीमां आमतेम फरतो ते पाणी शोधवा लाग्यो. ए अटवी अतिगहन होवाथी क्यांय पण पाणी न मलवाने लीधे कुमार कोई वृक्षनी शीत छायामां बेठो अने विचार करवा लाग्यो-अहो ! कार्यनी परिणति-कर्मनो परिणति वांकी छे, अहो दुर्ललित दैव पोताने स्वच्छंदे ज चालनारुं छे, जेथी करीने दैव कोई रीते पण, नहीं चिंतवेल एवा कार्यने आ रीते बतावी रहेल छे. अथवा आq विचारोने शुं ? सत्पुरुषो तो पोताना सत्त्वना धन उपर
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मुस्ताक छे एटले आवी कायरताना विचारनी अहों जरूर नथी. आ रीते विकल्पो करतो ते थोडी वार ऊभो छे तेटलामां त्यां एक भिल्ल आवी पहोंच्यो. ओ भिल्लना हाथमां बाण छे अने खभे धनुष छे. भिल्लने आवतो जोड़ने कुमारे सस्नेह पूछयुं के हे भला माणस आ क्यो प्रदेश छे ! अथवा अहीं क्यां य पाणी मळी शके एम छे ? पेला भीले कहाँ - कादम्बरी नामनी महाअटवीनो आ मध्य भागछे, आ वनखंडी बळी केटीक दूरनी जग्यामां पाणी मळी शके ओम छे. पण त्यां जंगली दुष्ट जनावरो रहेता होवाथी ते पाणी मेळवतुं सहेलं नथी. हे महानुभाव ! तने खूब प्यास-तरश लागी होय तो मारी साथे आव. हुं पोते जतने पाणी बतावुं. आम सांभळाने कुमारे भीलनी बात स्वीकारी अने कुमार भीलनी तरफ चाल्यो. धनुषनी दोरी उपर बाण चढावीने भील कुमारने मार्ग बताववा लाग्यो अने अ रोते ते बन्ने सरोवर पासे पहोंच्या, कुमार तलावमां सारी रीते नहायो, तरश दूर करी. पछी विचारखा लाग्यो के आ भील कोईपण स्वार्थना कारण विना मारो उपकारी थयेल छे. ओम विचारीने कुमारे भीलने पोताना नामना निशानवाली रत्ननी उत्तम मुद्रिका - वींटी आपी, भीले तेने पोतानी आंगळीमां पहेरी पछी तो भील तेने पोतानी गुफामां लई गयो, केळां वगेर फलो आपीने तेने भोजन करावी तेनी प्राणवृत्ति टकावी राखो हवे दिवस पूरो थवा आग्यो एटले कुमारे भीलने कर्छु - अहो मने आ अटवी जोवानुं भारे कुतूहल छे. मनें लागे छे के आ अटवीमां घणी घणी चीजो भारे आश्चर्य उपजाबनारी होवा जोईए. माटे ज्यां विशेष जोवा जेवुं आश्चर्यकारक वाता
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वरण होय त्या अर्थात् आ अटवीना एवा कोई बोजा प्रदेशने मने तुं बताव. भील बोल्यो-तारी आवी इच्छा छे तो मारी साथे आव, तने बतावू. पछी ए बन्ने बीजा कोई गहन वनमां गया. ते गहन वन केQ छे ? त्यां एक ठेकाणे राता चंदन [पृ०५२] वडे आलेखेल मंडल छे अने ए, तेमां मूकेल राता कणेरनां फूलोनी माळाने लीधे चमकी रा छे, बीजे ठेकाणे मन्त्रवादी लोको गूगळनी गोळीओनो होम करता होवाथी त्यां ते गन्ध फेलाई जवाथी ते (स्थान) सुन्दर लाग छे, वळी, एक ठेकाणे भेगा थयेला धातुवादी -किमियागर-लोको धातुपाषाणने तपावी रह्या छे, एक ठेकाणे जुदा जुदा प्रकारनी औषधिओना रसने नाखी लक्ष्मी-सुवर्ण वगेरे मेळववा सारु भस्म बनाववानी साधना चाली रही छे, एक ठेकाणे पद्मासन लगावीने बेठेला योगी लोको मननी शुद्धि करी रह्या छे. हवे कुमार आवी जातना ते प्रदेशने जोईने खुब विस्मय पाम्यो अने पेला भीलने पूछवा लाग्यो-हे भला भाई आ प्रदेशनुं शुं नाम छे ? भोल बोल्यो ---सिद्धक्षेत्र. आ सांभळी कुमारे विचायु, अहो ! आनुं नाम जोतां पण आनो उतम महिमा समजी शकाय एम छे. मने नक्की लागे छे के एवी कोई आश्चर्यकारक वस्तु नथी जे अहीं न होय. माटे मारे आ प्रदेशने सारी रीते. स्थिर दृष्टि वडे जोवो जोईए. एटले आ भीलने तेने स्थाने पाछो मोकलीने आ प्रदेशने हुँ निरांते जोडं. आम विचारीने कुमारे भीलने का-हे भला माणस तुं तारी गुफामां जा अने हुं पण थोडी वार अहीं फरोने मारा कुतूहळने शांत करीने पाछो फरी जईश. भील बोल्यो-आर्य ! आ स्था
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नमां रात्रे तो एक पळ पण रहेवा जेवू नथी अहीं तो पिशाचो प्रगट थाय छे, वैताळनां जुथो टोळे मळे छे, भयंकर फुफाडाना अवाजो उछळवा लागे छे, केटलाक तो अहीं छिद्र-श्वभ्र-कोतरमा एटले पोली जग्यामां पेसी जाय छे-ऊंडा उतरी जाय छे माटे तमे अहीं रहेवानो विचार मांडी वाळो. भीलनी आ वात सांभळी कुमार बोल्यो -जो एम छे तो तुं अहीं ज छूपो बेसी रहेजे अने मारी वाट जोतो रहेजे, हुं क्षणांतरमा ज आ प्रदेशने संक्षेपथी-उपर उपरथीजोईने आवी जाउं छु. भील बोल्यो-जेम तमने गमे ते करो पण जलदी ज पाछा आवी जq जोईए केमके एक पहोर रात चाली गई छे. भीलनी वात स्वीकारीने अर्थात 'एम' एम कहीने कुमार ए गहन वननी भीतरतां पेठो. त्यां वनमां बळी रहेली दिव्य औषधिनो प्रकाशं फेलायेलो होवाथी आम तेम जोतो ते क्याय दूरना भाग तरफ नीकळी गयो. हवे त्यां द्राक्षाना एक लतागृहमां-मंडपमांज्वाळाओथी सळगतो एक ज्वलन-अग्नि- कुंड तेणे जोयो. जोईने तेने विचार थयो के आ कुंडने कोईए कोई पण कारणने लीधे सळगाव्यो होवो जोईए. ए विचारतो ते ए कुंड तरफ जलदी दोडयो, ए कुमार केटलेक दूर गयो त्या बोलता अने रोषे भरायेला एक चेटकसुरनो अवाज एना सांभळवामां आव्यो, ए चेटकसुर त्या विद्या साधवा आवेला पण विद्यासाधकना विधिनियमोनो भंग करनार एवा कोइ साधकने ठपको देतो हतो. ए साधकने चेटकसुर ठपको केम-केवी रीते-देतो हतो ?
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[पृ० ५३] रे मूढ ! तारे मरवू छे के शुं पहेला तारी पोतानी बुद्धि वैभवना माहात्म्यनो विचार को बिना ज तुं खरेखर मन्त्रनी साधना करवा नीकळ्यो जणाय छे. १
मारी साधना करनारो एवो कोई साधक तें आ भूतळ उपर जोयेल छे अथवा सांभळेल छे के जे साधनमां चूकी गयो होय अने में तेने जीवतो मूक्यो होय-जीवतो राख्यो होय अर्थात् यमनी पेठे में मारी न नाख्यो होय. २ . भले बीजा देवोना मन्त्रनी साधना एटले मन्त्रोनुं स्मरण तुं तने कावे तेम करी शके छे पण मारा मन्त्रनी पण साधना जो तुं तने फावे तेम करीश तो नहीं ज चाले अने एम करीश तो तुं हवे पछी आ भूतळमां नक्की नहीं हो ए याद राख. ३ ___मननी शुद्धि करनारा एवा मोटा मोटा मुनिनाथो माटे पण हुं दुस्साध्य छं. मारी पासे बधांनां कूटकपट खुल्लां थई जाय छे एवो हुं चेटक देव छं. शुं तें मने एवो सांभळ्यो नथी ? ४
आ वात कहेता ए चेटक देवने सांभळीने कुमारे विचार कर्यो-खरेखर कोई महानुभावे साधनविधिमां चूक करेल जणाय छे तेथी चेटकदेव एने खुब ठपको दई तिरस्कार करी तेनो घात करवा तैयार थयो लागे छे. तो ए घात कराता महानुभावनुं मारे रक्षण कर जोईए एम विचार करीने ते जमणा हाथमां नीलमणि जेवी कांतिवाळी छरीने पकडतोक ते मार्गे-ज्यांथी अवाज आवतो हतो ते तरफ-दोड्यो. अने बराबर ते ज वखते जेनुं हनन-मृत्यु-थवानी अणी उपर छे ते पेलो महानुभाव चेटकदेवना चरणमां पडीने प्रार्थना
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करतो अने 'हे देवो ! हे दानवो ! मने बचाओ बचाओ' ए रीते करगरतो -बोलतो-कुमारे सांभळ्यो अने तेने-विद्याना साधक महानुभावने-ऊंचो करीने एक पत्थर उपर पछाडीने मारी नाख.. वानी तैयारी करतो चेटकदेव कुमारना जोवामां आव्यो. पछी तो कुमारने एम खबर पडी के 'शस्त्रो देवो उपर चाली शकत नथी' एटले ए शस्त्रने छोडी दईने चेटक देवने पगमां पडीने विनंति करवा लाग्यो-हे देव ! प्रसन्न थाओ प्रसन्न थाओ, कोपनो त्याग करो अने मारो जीव लईने पण आ साधकने बचावो, शुं विचारा आनो साथे तमारे कोप करवानो होय, भारे क्रोधे भरायेलो सिंह पण शियाळने मारतो नथी. तो तमे पण शुं आवं अधम माणस करे एवं काम करवाने लायक छो ? कुमारनी आ विनंति सांभळीने थोडो शांत थयेलो ए चेटकदेव बोलवा लाग्यो-हे कुमार ! तारी वातने टाळी शकतो नथी तो पण आ साधकना अपराधनी वात सांभळ. खरेखर आ माणस मारा मन्त्रनी आराधना करतां करतां पण सारी रीते वर्ततो न हतो. कुमार [पृ०५४] बोल्यो-एणे तमारो मोटो अपराध को छे तो पण ए माटे एटले एने बचाववा माटे मारा जीवननी किंमत चूकववा तैयार छु तो ए किंमत लईने तमे एने छुटो करी द्यो अने 'देवनुं दर्शन निष्फळ नथी थतुं' ए कहेवतने खोटी न पाडो. आ सांभळीने चेटक बोल्यो -हे सुतनु ! तुं निरपराध छे माटे तारो नाश करवानी शी जरूर छे ? खरी रीते तो आनो ज नाश करवो जोईए पण तारी महानुभावताने लीधे मारु हृदय पीगळी गयुं छे अने तेथी हुँ प्रसन्न थयो छु अने
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'ले आने छोडी दउं छु' एम बोलतो चेटक ते मन्त्रसाधकने जीवतो मूकीने अदृश्य थई गयो. हवे ए मन्त्रसाधक पण मरणना भयने लीघे बेभान थई गयो हतो, तेनी उपर मन्त्रसाधन सारु आणेला अने पासे पडेला उत्तम चन्दनना रसने छांटीने कुमार तेने भानमां आणवा प्रयास करवा लाग्यो, पछी बे घडी पछी मांड ते भानमां आव्यो अने 'पोते जीवतो छे' एम कल्पना करी - विचारी- धीरे धीरे आजु बाजु जोवा लाग्यो. एवामां क्षणांतर पछी कुमारे तेने क - हे भद्र ! हवे तुं निर्भय छे, तारे ऊचाट करवानी जरूर नथी, निश्चित था, जे तारो काळ हतो ते दूर चाल्यो गयो छे, हवे 'तुं कोण छे ?' ए अंगेनी खरी बात कहे, तारुं नाम शुं छे ! अने अहीं तुं क्यांथी आवेल छे ? अने सुखे सूतेला सिंहने खजवाळीने उकेरवा - जगाडवा जेवुं तथा: छेवटे मोत आपनारुं निवेडल आवुं मन्त्रसाधन तें शा माटे आरंभेल छे ? तथा ए मन्त्र साधनमां तारी भूल केमं थई ? ए पण कहे. 'तुं मने नवो अवतार--नयुं जीवन - आपनार छो' ए हरीते प्रेम: धारण करता ते साधके कुमारने कहां - हे सुंदर ! हुं कनकचूड नामनो विद्याधर लुं, गगनवल्लभ नामना नगरथी आ चेटकदेवनी साधना करवा अहीं आवेल छु, मन्त्र वारंवार गणतां गणतां हुँ. बराबर सावधान हतो छतां दैवयोगे केम करीने ए मन्त्रनो एक अक्षर भूली जवायो एनी मने खबर न रही. बस मात्र आटलो. ज मारो अपराध थतां आ देव गुस्से थई गयो अने मने पत्थर उपर पछाडवा सारु उपाडवामां आव्यो बराबर ए जं वखते भयभीताने लीधे बेबाकळो थयेलो हुं शरीरनी रक्षाना मन्त्राक्षरोने .
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याद करवा लाग्यो, पछी शुं थयुंए हुजाणतो नथी, मात्र 'मारा जीव ननी किंमत लईने पण तमे आने छूटो करो-बचावो' ए तमे जे कहेलु एर्नु कांई थोडं थोडु मने स्मरण छे-भान छे. कुमार बोल्योहे भद्र ! तने बचावनार अमे कोण ? ए तो जीवोनां पोतपोतानां सुकृत अने दुष्कृत ज बधे स्थाने सुखदुःखमां कारणरूप बने छे. कनकचूड बोल्यो-[पृ०५५] खरी रीते तो तें तारो पोतानो जीव जोखममां नाखीने मारा जीवने बचावेल छे ए वात मने प्रत्यक्ष छे एटले अदृश्य एवां सुकृत अने दुष्कृत उपर कोण श्रद्धा राखे ? १
हजु ज्यां सुधी तारा जेवा परोपकारपरायण सत्पुरुषो नररत्नो छे-देखाय छे-त्यां सुधी 'आ पृथ्वी वसुंधरा-रत्नगर्भा छे' एम केम न कहेवाय ? अर्थात एवी कहेवत केम खोटी पड़ी शके ? २
खरेखर तो माझं वांछेल बर्बु ज सिद्ध थई गयुं के तारी जेवा दुर्लभ पुरुषनां मने दर्शन थयां. ३
जो के तारा सुन्दर चरित्र कडे ज तारं नाम अने गोत्र जगतमां प्रसिद्ध थई गयेल ज छे छतां पण विशेष जाणवा माटे मारं हृदय तरफडे छे. ४
पछी तेनो अभिप्राय जाणीने कुमार बोल्यो----मारा मोटा साथनांची एक लो ज हुं वसंतनी शोभा जोवा सारु आ तरफ घोडे चडीने आववा नीकल्यो हतो, पण घोडो विपरीत रीते शिक्षा पामेल होवाथी जेम जेम तेने ऊभो राखवा चोकडानी राश खेंचुं तेम तेम ते बधारे दोडे ए रीते आ अटवीमां आवी पडयो अने घोडो तो मरी गयो, आ बधी पोतानी वात कुमारे तेने कही संभळावी. विद्याधर
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बोच्या-कुमार ! शुं मने जीवन देवा माटेज तुं अहीं आवेल छे ? अथवा बीजुं कई अहीं आवबाचं कारण छे ? कुमार बोल्यो-मात्र कुतू. हळने लोधे ज हुं तो नीफळी पडयो, बीजें कई कारण नथी. विद्याधर बोल्यो-जो एम छे तो मारा उपर कृपा करो अने मारी साथे वैताढय पर्वत ऊपर चालो, त्यांना अनेक आश्चर्यकारक बनावो जुओ अने तमारा दर्शन आपोने मारा आखा कुटुम्ब उपर उपकार करो. कुतूहळोने जोवानी तीव्र इच्छा होवाथी कुमारे तेनु- विद्याधरर्नु वचन मान्यु. पछी ते विद्याधर कुमारने साथे लईने अन्धाराना समूह जेवा श्याम आकाशमा उड्यो, आंखनुं मटकुं मारतां ज एटले एटला वखतमां ते वैताढ्य पर्वत ऊपर पहोंची गयो. पोताना घरमा प्रवेश कर्यो अने भोजन वगेर वडे कुमारनो सारो सत्कार कर्यो. हवे आ तरफ पेलो भील ज्यां हतो त्यां कुमारनी एक पहोर सुधी राह जोई छतां कुमार पाछो न फर्यो त्यारे आसपासनी वनकुंजोमां लांबो वखत तपास करीने दुःखी थईने पोतानी गुफामां गयो. कुमार पण कनकचूड विद्याधर साये सुगंधी पारिजात वृक्षनी मंजरीओनी गंधथी महेक महेक थता, पर्वतना वांकाचूंका ढोळाव अमें अने चडाववाळा प्रदेशमाथी पडता झरणाना अवाजोने लीधे मनोहर देखाता, हावभाव साथे किन्नर किन्नरीना जोडाना संयोगना शब्दोने लीधे सुन्दर लागता, पोतानी कुंजोने लीधे सुशोभित बनेला एवा वताढ्य पर्वतना आसपासना प्रदेशोमां फरवा लाग्यो. हवे भमतांभमतां [पृ०५६] कुतूहळोने जोवा फाटी आंखवाळा कुमारेत्यां एक ठेकाणे
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शिला उपर एक चारणश्रमणने जोयो, ए चारणश्रमणे पोताना आखा शरीरनो भार एक पग उपर थंभाग्यो हतो - एटले ते एक पगे ज ऊभो हतो, पोताना बन्ने हाथ ऊंचा राखेला हता, ध्यान करतां तेणे पोतानी खुल्ली आंखो तीक्ष्ण सूर्यमंडळ सामे निश्चळ रीते ऊंची करी खोडी राखेल हती, ते एवो निश्चळ - अकंप्र हतो के तेनी सरखामणी कोई पर्वत साथे करी शकाय एवो ते चारणश्रमण प्रेतिमामां स्थित हतो. तेने जेतां ज खूब आनन्द थतां कुमारनां वाडां ऊभां थई गयां. कुमारे कनकचूडने कह्यं हे भद्र ! आ तरफ आव, आ महामुनिने वंदन करीने आत्मानां पापमळोने धोई नाखीए. विद्याधर बोल्यो - - बहु मारुं भले, आवुं छु, पछी ते बन्ने सुनिनी पासे गया, विनय साथै प्रणाम कर्या, मुनिए पण तेमनी योग्यता जाणी ध्यान पूरुं करी दीर्घं एटले कायोत्सर्ग पारी लीधो. पछी बधा उचित स्थाने बेठा. 'हजी सुधी पण आ लोको मूळगुणस्थानमा छे' एम धारीने साधु कहेवा लाग्या - हे महानुभावो ! आ संसार निस्सार छे छतां तेनो एक मात्र सार आ छे के, करुणायुक्त अन्तःकरणवाळा वीतराग पुरुषोए जे धर्मनो उपदेश कर्यो छे तेने आचरणमां मूकवा प्रयत्न करवो. ए धर्मनुं
१ आ चारणश्रमण आकाशमां उडी शके एवी शक्तिवाळा होय छे. २ अमुक प्रकारना तपनुं नाम प्रतिमा छे, तेमां ध्यान करवा सारू बन्ने हाथ ऊचा करी सूर्य सामे जोईने निश्चळ उभा रहेवानुं होय छे. ३ अमुक समय सुधी शरीरनी कोई प्रकारनी ममता राख्या बिना ध्यानमा रहेबानी क्रिया कायोत्सर्ग ( काय-- शरीर-नो उत्सर्ग - त्याग ) कहेाय छे.
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मूळ अहिंसा छे, मद्य अने मांसनो तथा रात्रि भोजननो त्याग करवामां आवे तो अहिंसानुं पालन संभवी शके छे. तेमां मद्यने तो उत्तम माणसोए पीवानी चीजोमांथी बहार गण्युं छे माटे अपवित्र रसनी पेठे तेनो त्याग ज करवो जोईए माटे मनथो पण मद्यने पीवानी इच्छा छोडी देवी जोईए. मद्य पीवामां आवे तो धननो नाश ज थाय छे.
आपणी विशिष्टता - उत्तमता दूर निष्फळता सांपडे छे, कार्यनी हानि
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थाय छे, दरेक कार्यमां देखाय छे-थवा लागे छे पोतानां छिद्रो खुल्लां पडे छे, मित्रो पण आपण - जोईने लाजे छे, बुद्धि बगडी जाय छे, निर्मल शीळ तूटी जाय छे, वेरनी परंपरा पेदा थाय छे. धर्मकर्मथी चूंकी जवाय छे-भ्रष्ट थवाय छे, अयोग्य माणसो साधे पण मित्रभावे जोडावुं पडे छे, जे जे ठेकाणां जवां जेवां नथी त्यांय जवुं पडे छे, अभक्ष्यो सुद्धां खावां पडे छे, मोटा माणसो हांसी करे छे, स्वजनोनी मलिनता थाय छे अने नहीं बालवा जेवां वचनों बोलवां पडे छे, माटे आ मद्यपान अपवित्रतानुं खरेखर मूळ छे, वेरीओने पेसवानो मार्ग छे, क्रोध लोभ वगरे दोषोने मद्यपान जगाडे छे, पराभवाने आववा माटे ए संकेत समान छे अने अनथनी परंपरानो सभामंडप छे. वळी-
[१८५७]आ जगतमां मद्यपान प्राणीओ वच्चे प्रत्यक्षमां ज कलुष भाव देखाडे छे अर्थात् मद्य पीनारा परस्पर बाखडे छे ए प्रत्यक्ष छे, तेथी पापना मूळरूप एवं मद्यपान शी रीते चंगु उत्तम होई शके ? १
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खातां ज ताळवं फाटी जाय एवं तालपुट विष खाईने पोतानो नाश करवो उत्तम छे पण मद्यपाननी अवस्थामां थोडीवार पंण पोतानी जातने स्थापित नहीं करवी जोईए. २
ए कारणथी सारा सारा लोको पण ए जातना खराब मद्यपानने दूर ज मूकी राखे छे तथा वेद अने पुराणोमां मद्यनो निषेध ज करवामां आवेल छे. एमां कहेल छे के- ३ ___ गौडी, पैष्टी अने माधवी एम त्रण जातनी मदिरा समजवी घटे. जेम एक मदिरा खराब छे तेम बधी ज मदिरा खराब छे माटे उत्तम ब्राह्मणो तो एवी कनिष्ठ मदिराने पीता ज नथी. ४ तथा--
आ लोकोने पातकी गणवामां आव्या छे-स्त्री अने पुरुषनो घात करनार, कन्याने दूषित करनार अने मद्यप-दारुडियो-आ चार उपरांत पाँचमो जे तेमने साथ आपे छे तेने समजवो ५ तथा---
जे मनुष्य मोह-मूढताने लीधे दारु-सुरा पीने अग्निथी तपावेल लालचोळ सुरा पीए अर्थात् पछी प्रायश्चित माटे अग्निना वर्ण जेवी लालचोळ तपावेल सुरा पीए, तेम करतां तेनुं शरीर बळी गया पछी ते पापथी मुकाय खरो ? ६
जेना शरीरमा रहेल ब्रह्म-ब्राह्मणपणुं मद्यने लोधे एकवार प्लावित थाय छे–पलळी जाय छे तेनी ब्राह्मणता नाश पामे छे अंने ते शूद्र बनी जाय छे. ७
माटे हे देवानुप्रियो ! कदाचित् पण मद्य पीq योग्य नथी. तेमां य जे लोको स्वर्गना अने अपवर्ग-मोक्षना• सुखना इच्छुक छे तेमणे
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a. बधो य वखत मद्यने अडवुं ज न जोईए अर्थात् तेवा लोकोए कदी पण मद्यनो स्पर्श सरखो पण न करवो जोईए. ८
जेम उत्तम लोको मद्यने खरेखर अपेय गणे छे तेम मांस पण अभक्ष्य ज छे. ए मांसभक्षण उत्तम ध्याननो नाश करे छे, आर्त, रौद्र ध्यान तेनाथी बधे छे, संपातिम-उड़कणा जीवोनो संहार - विनाश थई जाय छे, मांसमां कृमियो, बीना जीवो पेदा थाय छे अने तमाम परिस्थितिमां मांसमां जीवो आव्या ज करे छे, [ ४०५८] मांसभक्षणथी रसो तरफ विशेष लालच पेदा थवा लागे छे, ए पारधी शिकारीना कामनुं कारण छे, मोटा मोटा रोगो अने असाध्य व्याधियोनुं निमित्त छे.
जोनाराओनी आँखने बीभत्स लागे छे, दुर्गतिनो मोटो मार्ग छे शुभानुबंधी शुभानुभावने तो जलांजलि ज देवी पडे छे - एवं ए मांसभक्षण छे. आवुं तमाम दोषोना भंडाररूप ए मांसभक्षण छे एम समजी कयो डाह्यो माणस एना माटे मनथी पण अभिलाषा राखे ? वळी,
काळजीपूर्वक वर्ती बीजाने पीडा न करवी ए वात धर्ममां प्रशंसनीय छे. जे लोको मांसभक्षी छे, तेमने माटे आकाशकमल - कुसुमनी पेठे ए प्रशंसनीय वात असंभवित छे. १
जे मनुष्यो आ असार शरीरना पोषण माटे मांसभक्षण करे छे, से लोको परभवोमां आवनारा तीक्ष्ण दुःखोने लक्ष्यमां राखता नथीगणता नथी. २
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. मोहने लीधे अभा थयेला--ऊभा करवामां आवेला तुच्छ सुख माटे कोण खरेखर डाह्यो माणस असंख्य भवोनी परम्परा सुधी भोगववी पडे एवी दुःखनी हारमाळा तरफ प्रवृत्त थाय ? ३
लोकशास्त्रोमां पण बहु प्रकारे वारंवार कहीने मांसभक्षणनो स्पष्ट निषेध करेल छे. तेमां ए अंगे जो अहीं अविरुद्ध वात कहेल छे ते आ छ-----४ ___मांस हिंसाने वधारनारुं छे, अधर्मने पण वधारनारुं छे तथा दुःखने पेदा करनारुं छे माटे कोईए पण मांसने न खावू जोईए. ५
पोताना मांसने जे मनुष्य बीजाना मांस द्वारा वधारवा इच्छे छे ते गमे त्यां जन्मे पण तेने हमेशां रहेठाण-जनमवानुं स्थान उद्वेगवाळु ज मळे छे. ६
जे दीक्षित होय, वा ब्रह्मचारी होय अने एवी दशामां मांस खाय ते अधर्मी अने पापी पुरुषार्थवालो स्पष्टरीते नरके ज जाय छे. ७
जे विनो-ब्राह्मणो-आकाशगामी हता ते मांसभक्षणने लीधे नीचे पड़ी गया छे तेथी-आ रीते ब्राह्मणोनुं अधःपतन जोईने मांस खावू न जोईए. ८
पृ०५९] वीर्य अने लोहीमांथी पेदा थयेला मांसने जे मनुष्य खाय छे अने खाधा पछी पाणीथी नहाईने पवित्र थवानो दावो करे छे, ते जोईने देवो तेनी हांसी करे छे. ९
हे भारत ! त्रण लोकमां जेटलां तीर्थो छे ते बधामां नहायार्नु पुण्य जे मनुष्य मांस नथी खातो तेने मळे छे अथवा जे
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मनुष्य नथी खातो ते त्रण लोकमां जे जे तीर्थों छे तेमां नहाया बरोबर छे. १०
हे मानव ! जे माणस मांस खाय छे तेनी शुद्धि अग्निथी थती नथी, सूर्यथी थती नथी अने पाणीथी पण थती नथी, हे युधिष्ठिर ! एम धर्म कहे छे. ११
जे मनुष्य साधु संन्यासीनो वेष पहेरे छे, तेमनां निशानो राखे छे, माथुं मुंडावे छे, मोढुं मुंडावे छे ते बधुं ज तेनुं नकामुं छे ज्यां सुधी ते, मांस खाय छे अथवा साधु-संन्यासीनां निशानो राखवां, तेमनो वेष पहेरवो, माधुं मुंडाववुं के मोढुं मुंडाववुं - जे माणस मांस खाय छे तेने माटे - ए बधुं ज नकामुं छे. १२
जेम वननो हाथी निर्मळ पाणीना दरियामां न्हायो तो खरो पछी पाछो शरीर उपर धूळ नाखीने मेलुं करे छे तेथी तेनुं न्हावुं नकामुँ छे तेमज मांस खानारनुं तीर्थस्नान वगेरे बधुं ज नकामुं छे. १३
हे युधिष्ठिर ! प्रभास, पुष्कर, गंगा, कुरुक्षेत्र, सरस्वती, देविका, चन्द्रभागा, सिंधु मोटी नदी, १४
मलया नदी, यमुना - जमना नैमिषतीर्थ कौशिक तीर्थ अने लौहित्य महानद - १५
ए बधां मोटां प्रभाववाळां तीर्थोमां स्नान करो एनुं जे पुण्य थाय, अने जे माणस मांसभक्षण न करे एनुं जे पुण्य थाय तो, हे युधिष्ठिर ! ए बे सरखां नथी पण मांस न खावानुं पुण्य चडी जाय छे. १६
तथा गया, सरयू,
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जे माणस दानमां सोनानो मेरु आपी ये अने आखी पृथ्वीनुं दान करी घे तेनुं जे पुण्य थाय अने जे माणस मांस भक्षण न करे तेनुं जे पुण्य थाय तो हे युधिष्ठिर ! ए बे सरखां नथी पण मांस न खवानुं पुण्य चडी जाय. १७
सोनानुं दान, गामनुं दान अने भूमिर्नु दान ए बधां दानजे पुण्य थाय अने मांस न खावानुं जे पुण्य थाय ते हे युधिष्ठिर ! ए बे सरखां नथी पण मांस न खावानुं पुण्य चडी जाय. १८
[पृ०६०] एक एक महिने हजार हजार कपिला गायो, दान देवाथी जे पुण्य थाय अने मांस नहीं खानारने जे पुण्य थाय ते ए बे सरखां नथी पण हे युधिष्ठिर ! मांस न खावानुं पुण्य चडी जाय. १९ - आं प्रमाणे लौकिक शास्त्रोमां पण महाविषनी पेठे मांसभक्षणने तजी देवानुं ज जणावेल छे तो पछी आ हकीकत लोकोत्तर शास्त्रमा तो होय ज ने ? २०
. मद्यनुं पान अने मांस, भक्षण बहुदोषवाळु छे माटे ते बन्नेनो त्याग करवो जरूरी छे तेमज रात्रीभोजन पण बहुदोषवाळु होवाने लीधे ज डाह्या माणसोओ तजी देवा जेवू छे. २१
जो कदाच अन्न प्रासुक-जीवजंतुरहित होय, फासु-निर्दोष होय तो पण तेमां रहेला कंथवा अने फूगनां जंतुओ जोई शकातां नथीजोवा कठण छे माटे जेओ प्रत्यक्षज्ञानी-अवधिज्ञानी, मनःपर्यायज्ञानी अने केवलज्ञानी छे तेओ रात्रीभोजननो त्याग ज करे छे. २२
जो के रात्रीए कीडी वगेरे जंतुओ दीवाना प्रकाशथी जोई शकाय एवा छे तो पण रात्रीभोजन अनाचरणीय छे कारण के एने करवाथी
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मूल: अहिंसावतनी ज विराधना थाय छे. २३
एम छे माटे हे देवानुप्रियो मद्य, मांस अने रात्रीभोजन ए. जाणे. संसाररूप वृक्षना गंभीर मूल जेवां छे एम समजीने तमे ते त्रणेनो त्याग करो. २४
अथवा मूढोनी पेठे बेठा छो : काणावाला हाथमा रहेलं पाणी जेम सतत पडतुं रहे छे, नाश पामतुं रहे छे तेमज प्रतिक्षण
م
पोतानुं जीवन पण नाश पामतुं रहे छे ए शुं तमे जोता नथी ? अथवा तमे ए जोतां छतां केम बेसी रह्या छो अथवा एने केम जोई रह्या छो ? २४
आ तो शुं छे ? पण संसारथी - संसाररूप जेलखानाथी विरक्त थयेला एवा लोको आजे पण विद्यमान छे जेओ राज्यने पण छोडी दईने प्रवज्यानो स्वीकार करे छे. २६
मुनिए आम कह्या पछी - उपदेश आप्या पछी संसारथी परम वैराग्यने धारण करतो एवो कनकचूड उभो थईने मुनिना चरणोमां पड्यो अने कहेवा लाग्यो - हे भगवान ! हुं मारा कुमारने मारी गादी उपर बेसाडीने आवुं पछी आपनी पासे प्रव्रज्या स्वीकारीने मारा पोताना जीवितने सफल करूं.
मुनि बोल्या-भवना फंदा तोडवानो अथवा तेनो अंत करवानो आज मार्ग छे. [पृ० ६१] एश्री तमारी जेवा महानुभावोए आम ज कर जोईए. आ वखते ए मुनिनो उपदेश सांभळीने कुमारने पण संवेग-धर्म प्रत्येनो उत्साह थयो तेथी मुनिने प्रणाम करीने ते कहेवा लाग्योहे भगवान ! मने पण जीवुं त्यां सुधीनो मद्य न पीवानो, मांस न
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स्वावानो अने रात्रे भोजन पण नहीं करवानो नियम आपो. साधुएं पण योग्यता जाणीने तेणे जे नियम माग्यो ते आप्यो, पछी गुरुने वंदन करीने पोताने घेर गया. कनकचूडे उत्तम घरेणां आभूषण वगेरे चीजो आपीने कुमारतुं सन्मान कर्यु अने ते कुमारने कहेवा लाग्योहे कुमार ! मने हवे आ संसारथी वैराग्य थयो छे, हवे दीक्षा लईने आत्माने निष्पाप करीश माटे हवे मारे जे कांई करवानुं योग्य जणाय ते मने कहा. कुमार बोल्यो, हुं शुं कहुँ ? तमारो समागम छोडो भारे कठण छे, पण मारे एने छोडवो ज पडशे. मारो स्वजनपरिवार तथा मारा वडलो घणा काळथी माराथी छूटा पडचा ले हवे तो तेओ मने जोवा सारु उत्कंठित पण थया हशे अने एथी तेओ गमे तेम काल वीतावता हशे एटले एमनी चिंताने लोधे माझं मन खूब संताप पामे छे. आ सांभळी कनकचूड बोल्यो-जो एम होय तो आपणे हवे त्यां जईए. आवात कुमारे स्वीकारी लाघो अने पछी विमान उपर चढीने ते बन्ने चालवा मांड्या.
Tea आ तरफ कुमारना परिवारना केवा हाल थया छे ते जोईएए विपरीत तालीम पामेलो अवळचंडो घोड़ो कुमारने क्यांनो क्यां खेची गयो, पछी तेनी - कुमारनी साथेनो जे सैन्यपरिवार हतो ते कुमारनी घणी वाट जोया पछी कुमारने शोधवा आखुं जंगल खुन्दी वळ्यो पण क्यांय कुमारनो पत्तो न लाग्यो. कुमारना समाचार न मलवाथी आनन्द वगरनो थयेलो ते परिवार निरुत्साही बनीने सिरिपुर नगर तरफ गयो. राजाने कुमार न मलवानी हकीकत जगावी. पछी तो राजानुं जाणे तन, मन
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अने धन बधु ज खोवाई गयुं होय एवो थई गयो भने तेने भारे संताप थवा लाग्यो, राजाए चिंताने लीधे खावू पीयूँ छोडी दीधुं, राजा पोतानी चार अंगवाळी सेना साथे, पोताना अंतःपुर साथे अने दुस्सह दुखथी घेरायेला हृदयवाली रत्नावलीनी साथे कुमारने शोधवा जे मार्गे कुमार गयो हतो ते मार्गे तेने पगले-पगले चालवा मांड्यो. एम चालतां चालतां ते कादम्बरी अटवीनी बराबर वच्चे आवी पहोंच्यो. अहीं कादम्बरीनी अटवीना मध्यभागमां पहोंची राजाए कुमारने शोधी काढवा माटे चारे बाजुए अनेक पुरुषोने मोकल्या. तेओ बधा कुमारनी शोध करवा लाग्या. हवे अम शोधता शोधतां आम तेम भमतां ते पुरुषोए पेला भीलने दीठो, भीलनी आंगळी उपर कुमारना नामना निशानवाळी रतननी उत्तम वींटी जोई. कुमारनी आ वींटी जोईने तेओने एम लाग्युं के जरूर आ भीले कुमारने मारी नाख्यो होवो जोईए. आम कुविकल्पोथी डोळायेला चित्तवाळा ते पुरुषोए ए भीलने लावीने राजा पासे खडो कर्यो. राजाए स्वस्थ चिते भीलने पूछ्युं-हे मूढ-मुग्ध ! तने आ उत्तम वींटी क्यांथी मळी ? ए बाबत साचेसाचुं कहे अथवा कुमार क्यां छे ? राजाए आम कह्या-पूठ्या पछी पृ०६२]ए भील तो पहेलां कोई दिवस नहीं जोएली-घोडा, हाथी रथ अने सुभटोना समुदायवाळी आवी -राजलक्ष्मी जोईने ज गभराई गयो अने आडुअवछं तुटक तुटक अक्षरवाळु कुमारनुं वृत्तांत कहेवा लाग्यो. भीलनी परस्पर मेळ विनानी वात सांभळीने राजानो मत एवो थयो के कदाच आ भीले ज कुमारने मारी नाख्यो होय, नहीं तो भीलनी पासे आ उत्तम बोटी
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केवी रीते आवी ? जीवता सर्पराजना माथा उपरथी कोई पण मनुष्य मणिने मेळवी शके नहीं. माटे आ भीलने आ परिस्थितिमा गंच रात सुधी सारी रीते साचवी राखो अर्थात् एने क्यांय जवा देशो नहीं. कोई पण खरी हकीकत जाणी शकाती नथी, दैवनी घटना भारे गंभीर-न कळी शकाय एवी-होय छे. राजानो आवो विचार जाणी ते पुरुषोए पेला भीलने केद कर्यो अने बेडीमां नाख्यो, संशयना हिंचका उपर चडेलो हालकलोल थयेलो राजा पण कशुं नक्की न करी शक्यो, तेनी आंखमां आंसुओ उभराई आव्यां अने भारे शोक साथे ते रोवा लाग्यो, आQ थतां 'कुमार मरण पाम्यो छे' एवी वात त्यां राजाना पडावमां चारे बाजु फेलाई गई, राजाना बधा सामंतो दुःखी थया, आलुं पायदळ झां पडी गयुं, मंत्रीओ उदास अने दुःखी मनवाळा थया, आखं अंतःपुर हाय हाय एम करतुं रोवा लाग्यु. आम लांबा वखत सुधी विलाप करीने भारे शोकने लीधे रतनावलीए जमीन उपर पडतुं मेल्यु-पछाड खाधी अथवा रत्नावलीने मूर्छा आववाथी ते जमीन उपर धडाक करती पड़ी गई, दासीओ तेने घेरी वळी महामुशीबते आश्वासन आपवा लागी. तेथी ते जरातरा स्वस्थ थई. एटलामां रात पडी गई, अंजनगिरि जेवां लागतां अन्धारां चारे कोर उतरी आव्यां. आ रीते मध्यरात थतां रतनावलीए पोतानी धावमाताने बोलावी अने कह्यु के-आटलुं बधुं बन्या पछी पण शुं मारे जीवन टकावी राखq जोईए ? हलका माणसोना अपवादो सहन करवा जोईए ? मारा प्रियपतिना घरमां तेमना स्वजनोनां श्यामल-झांखां पडी गयेलां-मोढा शुं जोयां करवानां ? विना कारणे कोप करता
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खळ पुरुषोनां वचनोने शुं सांभळ्यां करवानां ? आम बोलता बोलतां रतनावलीए पोतानी धायमाताने पोताना जीवना सोगन दइने कहा के तुं काई अन्यथा न करोश, हमणां तुं मने सहायक था. जेनी आवी स्थिति थई तेने हवे प्रेमी थयेला सुखनुं शुं काम छे ? वळी
किंपाकवृक्ष- फळ तो खानारने तेनुं परिणाम छेवटे आपे छे पण प्रियनो संयोग तो शरू थतां थतां ज दुःख आपे छे ए भारे दुःख छे. १
पृ०६३] हताश-जेणे मनुष्योनी आशाने हणी-मारी-नाखेल छे एवा विधाताए प्रियना संगमथी थनारा सुखने खरेखर हाथीना काननी, वीजळीना झबकारानी अने मेघ धनुषनी चपलता भेगी करीने बनावेल छे माटेज मार्नु छ के प्रियना संगमर्नु सुख चपळ छे - अस्थिर-छे टकतुं नथी. २
प्रियना वियोगरूप विषना वेगनी महत्ता-वेगनुं माहात्म्य एटले ए विषना वेगनो प्रभाव पंडित लोको जाणे छे माटे ज तेओ बिलगय-बिलमां गयेला-सर्पनी पेठे विलगय-विलगक-विशेषे करोने लागेला अथवा विविध रीते लागेला प्रेमनो त्याग करे छे. ३
मातारूप धात्री बोली-हे पुत्री ! कया कार्यने माटे सहाय करवा सारु तुं मारी पासे मागणी करे छे ?
रतनावली बोली-हे माता ! असह्य विरहनी आगमाथी उठेली बळतराने लीधे परिताप पामेला एवा मारा पोताना-जीवननो नाश करवा माटे अर्थात् मरो जवा माटे.
धात्री बोली-हे पुत्री ! तुं उतावळी था मा, हजु सुधी तारा
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पति बाबत कांई निश्चय जाणवामां आव्यो नथी, कांई नक्का जणाय पछी पण मरवानो अभिलाष तो करी शकाय एम छे. पछी रत्नावलीए ए धात्रीनुं एवं निषेधक वचन सांभळीने मौन राख्यु. क्षणांतरे धात्रीनी नजर चुकावीने अने पोतानो परिवार न जाणे ए रीते रत्नावली रहेबाना स्थानमाथी बहार नीकळी गई अने दूरना भागमां आवेला वनना निकुंजमां पेठी पछी पोताना बन्ने हाथना संपुटने जोडीने कहेवा लागी-हे वननी देवीओ ! हुं मंदपुण्य-कमनसीब-छु, मारं वचन सांभळो. तमारा सिवाय अहीं बीजं कोण छे जेनी पासे मारं कार्य-मारी पोतानी वात-कहीं शकुं ? १
__विरूप-नठारां लक्षणोना समूह द्वारा आ हुँ दुःख माटे ज निर्मित थयेल छु, परण्या पछी पण जेणीने-मने--आवं पतिना विरहनु दुःख शरू थइ गयेल छे. २.
माटे ज हमणां तमारी सामे उंचा वृक्ष उपर लटकीने-मारी जातने लटकावीने अर्थात् गळे फांसो खाईने मरूं छु. अपजशना मेलथी मेला थयेला एवा आ जीवनने टकावीने शुं करवू ? ३ ___ हे सिरिपुरराजाना पुत्र ! तुं पण दूर रहेलो छे छतां जाणी लेजे के ते रांक बाईए तारा विरहने लीधे आत्माने छोडी दीधेल छे-गळे फांसो खाधेल छे. ४
पृ०६४]आम कहीने ते रत्नावलीए केशपाशने बांधी दीधा,पोताना कपडानी गांठ खुब कठग बांधी अने उत्तरीय वस्त्रवडे-पोताना ओढवाना कपडा वडे-वृक्षनी डाळ उपर फांसो बनाव्यो, फांसाने पोतानी डोकमां बराबर बांध्यो अने पोते लटकी पडी. बराबर आ वखते धात्रीए
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तेन पथारीमां न जोतां ते, तेनी पाछळ दोडी गई. कर्म धर्मना संयोगने लोधे धात्री बराबर ज्यां फांसामां लटकती रत्नावली हती ते ज जग्याए पहोंची गई अने चन्द्रनी चांदनीना प्रकाशमां तेणे (धात्रीए) रत्नावलीने गळे फांसो खाती जोई. पछी तो धात्री हाय हाय एम जोरथी बूम मारती तत्कालिक बीजो कोई उपाय पोते करी शके एम न होवाथी जोर जोरथी कहेवा लागी के-भो भो देवो ! व्यंतरो ! खेचरो ! बचावो बचावो अने आ स्त्रीरत्नने तेना जीवननी भिक्षा आपो, एनो फांसो कापी नाखो, उपेक्षा करीने एटले आ स्त्रीना जीवन तरफ बेदरकार रहीने पापरूप कादवमां न पडो.
आ तरफ पेलो कनकचूड विद्याधर अने सुरसेन कुमार फरता फरता ते जग्याए आवी चडचा, तेमणे धात्रीए जे घोषणा करी ते सांभळी पछी आकाशमांथी नीचे उतरीने फांसो तेमणे कापी नाख्यो, तेणीना देहेने चंपी करीने ठीक क्यों अने तेओए ए फांसो खानारी बाईने पूछयुं - हे सुतनु ! तारा आवा खराब विचारनुं - तारी आवी दुर्दशानुं - कारण कोण थयेल छे ? रतनावलीए लांबो नीसासो नाखीने कयुं -मारां नठारां कर्मों. कुमार बोल्यो - ए तो ठीक पण कोईक विशेष हेतु पण होवो जाईए ए जणाव । पछी रत्नावळी बोली के विशेष हेतु तो - महासेनराजाना पुत्र सुरसेन कुमारनो विरह ज विशेष कारण छे. पछी रत्नावलीने कुमारे ओळखी काढी अने तेने कर्तुं के, जो ए कुमार ज विशेष कारण होय तो आवो खराब विचार करवानुं रह्यं -माडी वाळ. आम का पछी रत्नावली पण कुमारने ओलखी गई अने
शरमथी आंख
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नीचे ढाळी दई मौन रही. खरी वात जाण्या पछी धात्री बोली-लांबा वखते मळेला कुमारनुं स्वागत छे स्वागत छे, पछी तो कुमार आव्याना समाचार राजाने जणाव्या. आ वखते पेला कनकचूड विद्याधरे विनंति करी-बोल्यो-कुमार ! तमारा मनोरथ पूरा थाय, हवे मने मारे पोताने स्थाने पाछा फरवानी रजा-अनुमति-आपो. आ सांभळी तेनो-विद्याधरनो-वियोग थयो एथी कुमारनुं मन जरा कायर थयु तो पण महापराणे कुमारे विद्याधरने विदाय आपी, विद्याधरे तो पाछा वळतां ज पेला चारणमुनिनी पासे सारा भाव साथे प्रव्रज्या लीधी. कुमार पण रत्नावली साथे पोताना पडावमां गयो, राजाने मळ्यो अने बनेलो बधो ज वृत्तान्त कही संभळाव्यो. [पृ०६५] कुमारना आववाथी वधामणां थयां, पेला पकडी राखेला भीलनो आदर करीने तेने मुक्त करी दीधो, राजा हवे पोताना नगर तरफ पाछो फर्यो अने प्रयाण करतां करतां पोताना नगरमां पहोंच्यो. रहेवा माटे कुमारने सुन्दर मोटो महेल सोंपवामां आव्यो अने तेमां रहीने विविध क्रीडाओ करतो कुमार दिवसो वितावे छे. वखत जतां ते महासेन राजा मरण पाम्यो, तेनी पाछळ कुमारे मृतक कर्मो कर्या (मृतककर्मो एटले मर्या पाछळ जे कांई विधि करवामां आवे छे, ते मरणोत्तर बधी क्रियाओ). कुमारे राज्य स्वीकार्यु अने राजनीति प्रमाणे कुमार पृथ्वीनू परिपालन करे छे. वखत जतां मुनिधर्म ने सारी रीते जाण. नारा, सूत्र अर्थने बराबर समजेला, विहार करता करता ते कनकचूड मुनि त्यां बहारना उद्यान- वन--मां आवो पहोंच्या, ते मुनिने त्यां आज्या जाणी सुरसेनराजा तेने वन्दन करवा माटे आव्या, राजाए
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उत्तम भक्ति साथै मुनिने वन्दन कर्यु, मुनिए राजाने आशीर्वाद आप्यो अने राजा गुरुना चरणकमळ पासे बेठो, साधुए जिन भगवाने प्ररूपेला धर्मनी कथा करो, घणा प्राणीओने धर्मनो बोध थयो, धर्मकथा पूरी थतां मुनिए राजाने पूछयुं तमे लांबा वखत पहेलां जे अभिग्रहो -- नियमो - स्वीकारेला ते आ--मद्य न पीत्रु, मांस न खावुं रात्रे भोजन न कर नियमो बराबर सचवाय छे ?
·
राजा बोल्यो- सारी रीते सचवाय छे. पछी फरी सुनिए राजाने कथं - हवे तमे तमाम दोष रहित एवा जिननाथने देवबुद्धिथी स्वीकारो, सम्यक्त्व अंगीकार करो, कुवासनाद्वारा पेदा थयेल मिथ्यात्वनो सर्वथा त्याग करो. तमे एटलं करशो तोय खरीरीते परभवनुं हित कर्यु कहेवाशे राजा बोल्यो - एम एम - तमारूं एवं कथन बराबर छे, आजथी हुं जिनधर्मनो स्वीकार करूं कुं तमारा प्रभा बने लीचे में मिध्यात्वबुद्धिनो त्याग करी दीघेल छे. तमे मने तमाम प्रकारे कृतार्थ करी दीघो छे. ए रीते मुनिंनुं अभिनन्दन करीने राजा जेम आगो हतो तेम पाछो फरी गयो. कल्प (कल्प एटले मुनिने चोमासा सिवायना समयमां रहेवाना समयनो नियम ) पूरो थतां मुनि पण बीजा प्रदेश तरफ विहार करी गया. हवे राजाना शरीरमां तथाप्रकार- अमुक आवतां ते मरण पाभ्यो अने अविशुद्ध ने लीधे समकितने दोषवा कयूँ होवाथी ते मरण पामी यक्षपणे उत्पन्न थयो. आ प्रमाणे बिभेलकयक्षनी उत्पत्तिनी कथा छे वे महावीर जिनवर ते बिभेलकयक्षता उद्यानमांथी नोकळांने
प्रकारनी - वेदना
थई
अव्यवसाय - मनोवृत्ति
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शालिशीर्षक नामना गामनी बहारना बगीचा-उद्यान-मां आवीने प्रतिमा स्वीकारीने ध्यानमा रह्या.
पृ० ६६] ते वखते महामास चालतो हतो,त्यां कटपूतना नामनी एक व्यंतरी रहेती हती. ज्यारे महावीर जिनवर त्रिपृष्ठनामना वासुदेवना अवतारमा हता त्यारे विजयवती नामनी कटपूतना, भगवाननी अन्तःपुरिका-अन्तःपुरमा रहेनारी-दासी हती, ते वखते भगवाने तेने बराबर साचवेली नहीं एटले कटतना नामनी दासी भगवान उपर देष राखती हती, अने मरती वखत सुधीमां तेनो ते द्वेष मटी न गयो-मटी न शक्यो तेथी संसारमा भ्रमण करता करता ते मनुष्यनुं जीवन पामी गई अने ते बालतप करती होवाथी व्यंतरी.थयेल. पण पूर्वभवना वैरने लीधे प्रतिमामा रहेला भगवाननुं तेज नहीं सहन करती भगवानने दुख देवा सारु तापसीनुं रूप तेणीए धयु. तेणीए वल्कलो पहेयाँ, माथा उपर जे मोटी लटकती जटा हती तेने सारी रीते हिम जेवा ठंडामा ठंडा पाणीमां पलाळी अने जटामांथी टपकता ते हिमबिंदु जेवा ठंडा पाणी वडे पोतार्नु आय शरीर भीनुं करी पछी ते स्वामीना-भगवानना शरीर उपरमाथा उपर-बेठी अने शरीरना बधां ज अंगोने खूब खूब धुणाववा-हलाववा-लागी. त्यार पछी एनी जटामांथी तथा वारंवार हालता अंगे अंगमांथी टपकतां हिमकण मिश्रित पाणीनां बिंदुओ घणा ज ठंडा पवन साथे भगवानना शरीरने-शरीर उपर बाणना समूहनी जेम वागवा मांड्यां. १
क्षणे क्षणे जटाना जूथमांथी अने पहेरलां वल्कलोमांथी गळती
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गळती दुस्सह कणिकाओ-टीपां-स्वामीना-जगगुरुना-शरीरमां गाढरीते चुभवा लागी. २ ___एक तो सहज रोते महामहिनानी टाढ खुब दुस्सह अने सखत होय छे ज. तो पछी शत्रुनी पेठे ऊभी थयेल आ दुष्ट व्यंतरीनी शक्तिद्वारा वरसती टाढनुं शुं कहेवू. ३
एवी टाढनी वेदनाथी त्रास पामेला-घवायेला-थीजी गयेलासामान्य माणसनुं तो आय शरीर फाटो जाय-चीराई जाय पण भगवाननुं आयुष्य निरुपेक्रम होवाथी तेमने ए शीत शरीर उपर कशी असर करतुं नथी. ४ ___ आ रीते रातना चारे पहर भगवानने शीत-टाढनो भारे दुस्सह उपसर्ग थयो अने सहतां सहतां संसारनो-रागद्वेषनो नाश करनारुं धर्मध्यान जिनने-भगवानने विशेष रोते लागी गयु.५
त्यार पछी आवी दुःसह पीडाने सहन करवाथी विशेष कर्मनो क्षय थतां भगवाननुं अवधिज्ञान विकस्युं अने ते ज्ञानद्वारा भगवान आखा लोकने जोवा लाग्या. पहेलां पण भगवानने गर्भमां हता त्यारथी पण [पृ० ६७] अवधिज्ञान तो हतुं पण ते अवधि मात्र देवभवकाल मात्र हतुं एटले देवभवमा जे जातनी शक्तिवालुं अवधिज्ञान होय तेटली ज शक्तिवालुं हतुं अने श्रुतसंपदामां भगवानने अग्यार अंगोनी विद्यानी जाण हती. हवे ज्यारे कटपूतना व्यंतरीओ जाण्यं के भगवान तो अकंप छे, जरा पण ध्यानमांथी
१ कोइ पण घातक उपायथी जे आयुष्य तुटे नहीं ते आयुष्य निरुपक्रम कहेवाय.
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चलित थता नथी त्यारे ते रात पूरी थता हारी गई - थाकी गई अने शांत थई, आ काम करवा माटे तेने पस्तावो थयो एटले भक्तिपूर्वक भगवानने पूजीने पोताने स्थाने चाली गई.
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स्वामी पण त्यांथी नीकलीने भद्दिया नाम नगरीमां छठु: चोमासुं करवा सारु जई पहोंच्या. आ वखते छ महिना पछी गोशाळो पण स्वामीने मळ्यो भगवानने जोईने गोशाळाने हर्ष थयो अने भगवानना चरणकमळने नमीने ते भारे प्रमोद पाम्यो अने पूर्वनी - पहेलानी पेठे ज ते भगवाननी सेवा करवा लाग्यो. भगवान पण त्यां विविध जातना तपना अभिग्रहो - नियमो साथे चतुर्मासखमण-चार महिनाना उपवास पूरा करीने चोमासुं पूरुं थतां बहार पार करीने गोशाळानी साथै ऋतुबद्ध (विहार करवानी ऋतुना महिना) आठ महिना सुधी कोई प्रकारना उपसर्गो विना-कशीय कनडगत विना मगध देशमां फरवा लाग्या.
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हवे सात चोमासुं करवा माटे आलहियया नामनी नगरीमां आव्या. भगवान त्यां पण चार महिनाना उपवास पूरा करने बहार पार करीने कंडाग नामना गाममां गया, त्यां मधुमथनकृष्णना ऊँचा शिखरवाळा भवनमां उचित एवा एक खूणामां कायोत्सर्ग करीने रह्या. गोशालो पण जीवनरक्षानी पेठे श्री जिननाथना माहात्म्यने धारण करतो पोताना पूर्वस्वभा मां आवी गयो, एटले अत्यार सुधी तेणे क्यांय अटकचाला के तोफान करवानुं मल्युं न हतुं तेथी ते लांबा काळ सुधी हाथपगने संकोचीने रहेलो अने एम रहेवाथी ते हेरान थई गयेलो, हवे
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आ वखते तेने बधीज छूट मळा गइ, सामेथी कोइ बीक पण न रही अने तेमी लाज शरमनो छांटो पण चाली गयो तेथी भांडनी पेठे मधुमथनी प्रतिमाना मुखमा अधिष्ठान-जननेंद्रिय-नाखीने रह्यो. आ वखते हाथमां फूलोने लईने धूपधाणा साथे पूजारी त्यां आवी पहोंच्यो. अने दूरथी ज विस्मय साथे ते प्रकारे ऊभा रहेला गोशालानो आ चेष्टामा लाल जोई विचार कर्यो-----
आ देवनी पूजा करता करतां मने घणो समय बीती गयो पण आज सुधी आ प्रमाणे भक्ति करतो कोई माणसने में जोयो नथी. १
तो आ कोई पिशाच हशे अथवा आने कोई ग्रहनो वळगाड वळगेलो हशे अथवा धातुना स्वभावना ऊंधापणाने लीधे शुं आ कोई पण आम उभो हो ? २
पृ० ६८] आम विचार करतो ते पूजारी ज्यारे मन्दिरनी अंदर आयो त्यारे तेणे पास आवीने गोशालाने नग्न जोईने ओळख्यो के
आ तो 'श्रमण' छे. ३ ____ पछी पूजारीए विचार कर्यो के जो हुं आने शिक्षा-दंड करीश तो लोको एम समजशे के आ धार्मिक-पूजारी दुष्ट छे. ४
माटे आ हकीकत गाममां जोइने लोकोने जणावू एटले लोको पोते ज जोईने एमने जे उचित लागशे ते करशे. आ अंगे मारे कोई अनर्थ करवानी शी जरूर ? ५
एम विचारीने पूजारीए गाममां जईने लोकोने आ बधी बनेली वात कही संभळावी अने गोशालो जे रीते वासुदेवनी मूर्तिनो आगळ ऊभो हतो ते पण जणाव्यु, ६
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पूजारीनी वात सांभळीने लोको रोषे भराया अने तेओए त्यां आवीने लाकड़ीओ तथा मुक्का मारीने गोशाळाने खूब कूटयो, आ कोई घेलो छे, एम समजीने तेने सारी रीते मार मारीने एटले तेनुं शरीर खोखरुं करीने बहु वखते केमे करीने छोडी दीधो. ७. , गोशाळो मुकाया पछी स्वामी मद्दण नामना गाममां जाईने बलदेवना घरमां-मन्दिरमा फासु-निर्दोष प्रदेशमा प्रतिमा धारण करीने रह्या. ८
गोशालो अपलक्षणो होवाथी ते त्यां पण मुकुंदनी प्रतिमाना मुखमां पोतानी जननेन्द्रिय दईने मुनिनी पेठे अप्रमत्त उभो रह्यो. ९
त्यां पण पूर्वनी पेठे ज कोपे भरायेला गामलोकोए बहु वखत सुधी खूब खूब गोशालाने पीटयो-मार्यों अने पछी तेने छोड्यो. तेने छोड्या पछी. १०
जिनेन्द्र त्यांथी निकली बहुसालग नामना गाम भणी जई त्यां शाळिवनमां धर्मध्यान उपर चड्या-धर्मध्यान करवा लाग्या. ११
त्यां सालज्ज नामनी व्यंतरीदेवी विना कारणे कोपे भराई अने त्यां रहेला जगगुरुने विविध उपसर्गों करवा लागी. १२.
[पृ०६९] पछी ते पापी व्यन्तरी उपसर्गों करता करतां पोतानी मेळे ज थाकी गई त्यारे भगवाननी पूजा करीने जेवी आवी हती तेवी पाछी चाली गई. १३
१ अप्पमत्त अप्रमत्तनो एक अर्थ प्रमाद विनानो खूब सावधान. आ अर्थ मुनिपक्षे घटावबो. गोशालकना पक्षे अप्पमत्त-आत्ममत्त पोतानी जातमां मदोन्मत्त अथवा एवो प्रमत्त-प्रमादी के एनी जेवो कोई बीजो प्रमादी नथी एवो अथवा अल्पमत्त-थोड़ोमत्त-घेलो-गांडो-उन्मत्त.
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आश्चर्य तो ए छे के उपसर्गो करनारा ज थाकी जाय छे पण जेने उपसर्गों द्वारा दुःख देवामां आवे छे ते जगनाथ तो कोई पण स्थाने उपसर्गोने गणता ज नथी-गणकारता ज नथी. १४ । ___ हवे विहार करता स्वामी भुवनना तिलकरूप अने ज्यां-चोकचत्वर अने घरोनी बांधणी बराबर विभागपूर्वक करवामां आवेल छे एवा लोहग्गल-लोहार्गल नगरे पहोंच्या. १५
ते नगरना राजानुं नाम जितशत्रु. एणे पोताना उन्मत्त-अभिमानी तथा शूरवीर शत्रुओरूप हाथीओनो सिंहनी पेठे नाश करी नाख्यो हतो तथा ए राजा जगत आखामां प्रसिद्ध तथा समृद्धिशाळी हतो. १६
ते वखते ए राजानो सीमाडामा रहेता राजा-प्रत्यन्त राजा-साथे विरोध थयो अने ए अंगे छूटा मूकेला चार पुरुषो कोई अपूर्व-नवा -माणसनी शोधमां चारे कोर फरवा लाग्या. १७. ___ हवे ते चार पुरुषोए स्वामीने दीठा अने तेमने पूछवामां आव्यु छतांय कांई जवाब न मळवाथी शत्रुराजाना आ कोई चार पुरुषो छे, एम धारीने ते विमूढ लोकोए तेमने पकड्या. १८. . पकडीने तेओ स्वामीने तत्काळ राजसभामां बेठेला राजानी पासे लाव्या. हवे ए वखते जेनी हकीकत आगळ आवी गई छे ते उत्पल नामे निमित्तशास्त्री त्यां हतो, ते स्वामीने जोईने–१९.
एटलो बधो आनन्द पाम्यो जेथी तेना शरीरमां रोमांच थई गयो. उत्पले भक्तिपूर्वक स्वामीने वन्दन करीने राजाने कह्यु के आ कोई चरपुरुष नथी. २०
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किन्तु आ तो ते ज पुरुष छे जेणे ते वखते लोको मागे ते करताय वधारे कनकनी धाराओने पाणीनी धाराओ पेठे एक वरस सुधी वरसावेल हती अने याचकोना कुंटुंबने तेमनी इच्छा करतां वधारे सोनुं आपीने शांत कर्या हता २१
आ तो श्रीधर्मचक्रवर्ती छे, सिद्धार्थ महाराजाना कुलमां केतुसमान छे अने जेमणे पोतानी मेळे ज प्रव्रज्या स्वीकारेल छे ते महावीर जिन पोते छे. २२
(पृ०-७०) अथवा जेमना चरणमां देवो, खेचरो अने राजाना वृन्दो बन्दन करे छे एवी आमनी (महावीरस्वामीनी) कीर्तिं पण शुं तमे पहेलां सांभळी नथी ? २३ .. तमने मारा वचनमां श्रद्धा न बेसती होय तो निपुण दृष्टिथी तमे चक्र गज वज्र अने कमळनी निशानीवाळा तेमना हाथ ज जोई ल्यो. २४
आ रीते 'आ महावीर छे' एवी नक्की खात्री थया पछी राजा जितशत्रुओ विशेष रीते स्वामीनो सत्कार करीने गोशाळानी साथे श्रीजिनेन्द्र महावीरने छोड़ी दीधा. २५
पछी भगवान पुरिमताल-प्रयाग-नगरमां गया अने कायोत्सर्ग करीने ध्यान धरवा लाग्या. ते नगरमा वग्गुर नामे सेठ हतो जे कुबेर मंडारीनी पेठे समृद्धिवाळो हतो, बाणना भाथानी पेठे मग्गण गणने सहायरूप हतो. मग्गण एटले मार्गण-बाण. तोणीर एटले भाथु. बाण माटे भाथु सहारारूप छे तेम आ सेठ मग्गण एटले मागणनांटोळांने संहारारूप. मुनिनी पेठे बन्ने लोकमां एटले आ लोकमां अने परलोक
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जन्मान्तरमां हितकर प्रवृत्ति माटे परायण हतो. प्रकृतिए सरळ मधुरभाषी, दाक्षिण्यवाळो अने पोताना नाम प्रमाणे गुणवाळो एटले निर्मल गुणरूप हरणाने पकडी राखवा सारू वग्गुरा - पाश समान हतो. स्वाभाविक प्रेमना पात्र जेवी भद्रा नामे तेनी स्त्री हती, ते वांझणी हती, पुत्रने माटे घणा देवदेवीओनी सेंकडो मानताओ करी, विविध प्रकारनां सैंकड़ो ओसड पीधां अने अम करीकरीने ए छेवट था की गई. बीजे कोई वखते ते सेठनी साथे पालखोमां बेठेली, साथै बधा स्वजनो हता अने जातजातनां भक्ष्य तथा भोजनवाळी कीमती अने सरस रसोई बनावी शके तेवा रसोयाओने साथै लइने मोटी धूमधाम साथे उजाणी माटे नीकळी. चालती घालती ते विविध प्रकारना पक्षी आता मधुर अवाजोने लीधे मनोहर तथा जातजातना उत्तम वृक्षोनां सुगन्धी फूलोना परिमळथी महेकता सुन्दर एवा शकटमुख नामना उद्यानमां पहोंची. त्यां घणा वस्त्रत सुधी सरोवरमां जलक्रीडा कर्या पछी फूलोने चुंटतो वग्गुर सेठ अने तेनी स्त्री सेठाणी ए बन्नेए खलभली गयेल शिखरवालं, पथरा भींतमांथी नीकली पडचा छे एवं अने सुन्दर एवा मजबूतथांभला तूटी गयेला तथा पडशाल पण तूटी गइ छे एवं एक देवळ जोयुं. एवा ए देवळने जोइने ते बन्ने कुतूहलने लीधे तेमां पेठां. तेमां तेमणे जे शरदऋतुना चन्द्रनी जेम अत्यन्त प्रशांत आकृति - वाळी, घरेणां विनानी छतांय जगतनां कीमती रत्नो वडे सुशोभित [०७१] होय एवी शोभावाळी अने दर्शनमात्रथी चिंतामणीनी पेठे जेनुं अतिशयवालुं परम माहात्म्य जणाई आवतुं हतुं एवी श्री
भद्रा
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मल्लिजिननाथनी प्रतिमा जोई. ते प्रतिमाने जोईने ते बन्नना मनमा घणो ज भाव थयो अने तेमनो एवो अभिप्राय बंधायो के खरेखर आ प्रतिमानी जेवी कलायुक्त रूपलक्ष्मी छे ते जोतां आ कोई सामान्य प्रतिमा लागती नथी माटे अमारुं मनोरथनुं वृक्ष हवे जरूर फळg जोइए, एम विचारीने तेओ बन्ने ए प्रतिमानो स्तुति आ प्रमाणे करखा लाग्या___ आजे भारे दुःखनी बेडी तूटी गई छे, अमारे माटे अत्यार सुधी उत्तम सुगति मन्दिरनां बारणां बोडायेला हता ते आजे उघडी गयां छे, अमारा करकमळमां संसारनां साररूप सुखो आजे ज आवी गयां छे. १.
दोषना प्रवाहनो नाश करनार एवा तमे अमारा जोवामा आव्या त्यारथी ज हे नाथ ! आजे ज त्रिभुवननी लक्ष्मीओए अमारा तरफ जोयु. २
नखोना निर्मळ रत्नोमांथी झबकारा मारता किरणोना समूह वडे आकाश छवाई गयुं छे एवा तमारा स्थानना मंडपनी वच्चे तीक्ष्ण दुःखोना अग्निथी शेकायला शरीरवाळा अमे अहह ! केवी रीते आवी गया ! ३
कर्मनां लेपने धोई नाखेल एवा तमारा मुख कमळने ज्यारथी जोयुं त्यारथी मारवाडना रणमां भूलो पड़ी गयेलो मुसाफर जेम रहेठाण पामे तेम हे देव ! अमे आजे खरेखर निवास पाम्या. ४
- आ रीते उत्तम भक्तिथी भरेली, सुश्लिष्ट, मनने आनन्द आपनारी वाणी बड़े हर्षथी विकसित थयेलां नेत्रो साथे ए बन्नेए स्तुति करीने ए मन्दिरनी जमीन उपर पोतार्नु कपाळ बारंवार अडाड्यु
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भटकाड्युं अने पछी तेओ आम कहेवा लाग्यां- हे देव ! तमारी कृपार्थी जो हवे अमने पुत्र के पुत्री थशे तो अमे आ तमारा भवनने कनकना कलशोवाळा शिखरवा करावी. तेमां मोटा मोटा सुन्दर थांभलावाळी विशाळ शाळा - ओशरी करावीशुं. तेनी फरतो उत्तम कोट करावीशुं. कोट उपर सेंकडो कांगरा मुकावीने सुशोभित करावीशुं तथा तेनां एवां सुन्दर बारणां करावीशुं के जे बारणामां सारा आकारवाळी मजबूत पूतळीओ कोतरावेल हशे .
[पृ०७२] वळी, अमे हमेशां पण तमारा तरफ भक्तिपरापण रहीशुं तथा निरन्तर तमारी पूजानो महिमा करीशुं - ए रीते कहीने तेओ बन्ने उद्यानक्रीडा करीने पोताने घेरे गयां. हवे तेमनी भक्तिना प्राबल्यने लीधे जेनुं हृदय खेंचायेल छे एवी मन्दिरनी आसपास रहेनारी वानबंतर देवीना प्रभावथी भद्रा सेठाणीने गर्भ रह्यो, गर्भ रहेवाथा शेठने परचो मळ्यो एटले जे देवनी पोते स्तुति करी हती ते फळी खरी. गर्भ रह्यो त्यारथी - ते ज दिवसथी - जिनमन्दिरनुं समारकाम शरू करी दीधुं अने जलदी जलदी मन्दिरनो जीर्णोद्धार कर्यो, सवार, बपोर अने सांज एम त्रणे काळ पांच रंगना सुगन्धी फूलो वडे पूजा शरू थई, उत्तम विलासिनीओनुं नाट्य शरू थयुं, मधुर मधुर गूंजतां एवा चार प्रकारां वाजां वगडावा मांड्यां. आम करतां करतां तेमना दिवसो वीतवा लाग्या हवे अनियत विहारे फरता फरता सूरसेन नामे आचार्य जिनवन्दन माटे त्यां आवी चड्या, आचार्यने रहेवा योग्य स्थानमां तेओ व्यां रह्या, सूत्रवाचननी पोरसी पूरी थतां तेओ मल्लि जिनना
१ पुरुष प्रमाण छाया ज्यां सुधी होय त्यां सुचीनों समय पोरसी ( पौरषी कहेवाय ! सूत्रवचन माटे एटलो समय नियत होय छे.
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मन्दिरमा गया, देवोने वन्दन कयु, उपदेश करवा सारु उचित स्थानमां बेठा अने त्यां आवेला भव्य सत्त्वोने-प्राणीओने धर्मनो उपदेश करवा लाग्या. पोरसी पूरी थया पछी बराबर ए वखते पूजानी सामग्री साथे वग्गुर सेठ त्यां आव्या, जिननी पूजा अने वन्दना करीने आचार्यनी पासे बेठा, शेठे आचार्यना चरणकमळने वन्दन कयु, आचार्ये आशीर्वाद आप्या अने सेठ जमीन उपर बेठा, गुरुए एटले आचार्य पण तेमनी-शेठनी योग्यता प्रमाणे धर्मनो उपदेशं आपवो शरू कर्यो केवी रीते ?
जिननाथनु मन्दिर चणाव, तेनी प्रतिमानुं त्रणे काल पूजन करवू अने दान देवानी प्रवृत्ति-ए त्रणे वानां पुण्योवडे मेळवी शकाय छे. १
जेओ पोतानी धन समृद्धिना वैभव द्वारा तमाम सुखरूप वृक्षोना बीज जेवू अने तीक्ष्ण दुःखवाळी दुर्गतिने बंध करवानां कपाटकमाड-बारणां जेईं जिनमंदिर चणावे छे, ते लोको धन्य छे. २
[पृ० ७३] जे लोको हिमालय पर्वतना शिखरना शृङ्गार जेवू सुन्दर जिनभवन करावे छे तेओ पोताना धारेला पदार्थने अनायासे ज शा माटे न मेळवे-साधे ? ३
सामान्य पण जिनघर कराववाथी जे पुण्यनो राशि मळे छे तेने कोण मापी शके ? तो पछी जे जिनघर जीर्ण थयेल छे तेनो विधि
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पूर्वक उद्धार करवाथी तो वळी जे पुण्यराशिनो लाभ थाय छे तेनी तो शी वात ? ४
तो हे महायशस्वी ! तें तारा पोताना बाहुद्वारा उपार्जेल धन वडे आ जे जीर्णोद्धार करावेल छे ते खरेखर चोक्कस सारं करेल छे. ५
आ रोते जीर्णोद्धार करवा-करावामां न आवे तो वखत जतां तीर्थनो उच्छेद-नाश ज थई जाय अने जिन भगवान तरफ भक्ति न रहे, एम थतां एवे स्थाने साधुओ पण न आवे एथी सरवाळे नुकशान थाय ने भव्य लोकोने बोधिनो लाभ न थाय. ६
संसाररूप समुद्रने तरी जवा माटे वहाण जेवा एवा जिनभवनने कराव्या पछी एनी अंदर अत्यन्त शांति अने सुन्दर जिन प्रतिमा कराववी जोईए-स्थापवी जोइए. ७
ए जिनप्रतिमानी त्रणे काल अप्रमत्त मन राखीने उत्तम प्रयत्न पूर्वक पूजा करवी जोईए. ते पूजाना वळी आठ प्रकार आ प्रमाणे छे: ८
वासक्षेप पूजा, कुसुम पूजा, अक्षत पूजा, धूप पूजा, दीप पूजा, जलकलश पूजा, फूल पूजा, अने भोजन पूजा एटले खाद्य पदार्थोने धरवारूप पूजा. आ आठे प्रकारो मनुष्योना नेत्रोने आनन्द पमाडे एवा छे. ९
जिनेन्द्रोनी आ प्रकारे आठ प्रकारनी पूजा करवामां आवे तो ते पूजा खरेखर एवी कोई कल्याणरूप वस्तु नथी जेने ' आपणी पासे पूजा करनारनी सामे-न लावी आपे. १०
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१२१ ते आठ प्रकारनी पूजा आ प्रमाणे--
सर्वज्ञ भगवानना मस्तक उपर हरिचन्दन-उत्तमोत्तम चंदन अने धनसार-उत्तमकपर द्वारा बनावेला विशेष सुगन्धवाला वासक्षेप गंधो मूकवामां आवे तो भव्यलोको सुगंधीदेहवाळा थाय छे. ११
ताजी मालती कमल कदंब मल्लिका जुई वगेरनां पुष्योनी मालाओ द्वारा जिनपूजा करनारा शिवसुखने मेळवे छे. १२
[पृ० ७४] पाणीथी भरेक क्षेत्रमा चोखा नाखवामां आवे तो जरूर चोखा उगे ज तेम नखनी कांतिरूप पाणीथी भरेला एवा जिनपदरूप क्षेत्रमा अक्षतो चोखा मूकवामां आवे तो ते, दिव्यसुखरूप-सस्यनी संपत्तिने उगाडे एमां कोई आश्चर्य छे ? १३ ____ जगगुरुनी सामे मनुष्य धनसार-अगरनो धूप बळतो राखे तो धूपमांथी ऊछळता धूमाडाना गोटाना बाने पापने दूर करे छे अर्थात् धूमाडाना जे गोटा नीकळे छे तेनी ज पेठे जाणे पाप दूर थतुं होय एम समजवं. १४
जे लोको सुन्दर भक्तिपूर्वक जिनेन्द्रना मन्दिरमा दीपक दे छे-- मूके छे-करे छे ते लोको त्रण भुवननी अन्दर दीवा जेवा थाय छे. १५
त्रण लोकना प्रभुनी सामे जे लोको जल भरेला पूर्णपात्रो पूर्ण जलकलशो मूके छे ते लोको खरेखर पोतानां पूर्वे अर्जेला पापोने जलांजलि दे छे. १६
पाकी जवाने लीधे जेमांथी विशिष्ट गंध महेके छे तेवा उत्तम वृक्षोनां कळोवडे जेओ जिनपूजा करे छे तेओ मनवांछित फळोंने पामे छे. १७
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विविध जातना भक्ष्यो अने व्यंजनोथी युक्त तथा ओदन, चरुपाक वगेरे वस्तुओथी युक्त एवो बळी जे लोको जिन भगवान पासे धरे छे ते धन्य लोको डटायेल सुखनो निधि खोदवा माटे ज तेम करे छे. १८
__ अथवा आटलं ज शा माटे ? जे कांई पण सुन्दरतम चीज होय तेने पुण्यवंत लोक तीर्थंकरोनी सामे धरवाना काममा लेता होय छे. १९
अनिदान एटले निदान विनानु-कोई जातनी अपेक्षा-आशा राख्या विना देवामां आवतुं दान सुगतिना संगमर्नु कारण छे. एवं ज दान पुण्यानुबंधी होवाथी कल्याणर्नु कारण थाय. २०
ए दानना वळी त्रण भेद कहेला छे ----अभयप्रदान, ज्ञानदान अने जे लोको धर्ममा प्रवृत्त छे तेमने माटे वळी त्रीजं उपष्टंभ दान छे. उपष्टंभ दान एटले सहायता करवी- धर्मप्रवृत्तिपरायण लोकोने हरप्रकारे सहायता करवी. २१
तेमां अभयदान लौकिक (शास्त्रमां) पण छे अने लोकोत्तर (शास्त्रमा) पण प्रसिद्ध छे. जे लोका सिद्धि मेळववाना रसवाळा छे तेओ ए बन्ने प्रकारनुं अभयदान करे ए अंगे तमाम अवस्थाओमा पण कोई जातनो निषेध नथी. लोकोत्तर शास्त्र एटले जनशास्त्र अने लौकिकशास्त्र ऐटले महाभारत, पुराण, भागवत वगरे शास्त्रो.
पृ०७५] अनाज वगरनो खेतीने, विवेक वगरना राजाने कोई वखाणतुं नथी तेम पूर्वोक्त प्रकारना दान वगरना धर्मने कदी पण डाह्या माणसो वखाणता नथी. २३
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ते ज्ञानदान तो वळी दीवानी पेठे तमाम पदार्थोने अथवा तमस्थ-अंधारामा रहेला पदार्थोने प्रकाशित करे छे अने भवसमु. द्रमां पडेला जंतुओने तारवा माटे मजबूत वहाण जेवं छे. २४
विषम मिथ्यात्वरूप भयंकर अरण्यमां जेओ उन्मार्गे चडी गयेला जेवा छे तेमने माटे तो सन्मार्गनुं दर्शक अने मुक्तिनगरना उत्तम सार्थवाह समान छे. २५ __जेओ धर्ममां परायण साधु-मुनिजन छे तेमने सहायता करवारूप त्रीजुं दान छे. ए दान तो एवा मुनिजनोने औषध, वस्त्र, पात्र, कंबल वगेरे वस्तुओ आपीने थई शके छे. २६
ए मुनिओ महानुभावो छे अने तमाम जातनी पापप्रवृत्तिओथी तदन छेटे रहेनारा छे. एमने त्रीजु दान देवाथी तेओ संयम, तप बगेरनी आराधना करी शके छे. एमने आहार वगेरे न मळे तो तेओ संयम तप वगेरे धर्मनी आराधना केवी रीते करी शके ? २७
गृहस्थधर्मी लोके मात्र आटलो ज दानधर्म करे तोय लांबा भवरूप समुद्रनो पार पामी शके छे. केम के तेओ मुनिओने भोजन वगेरे आपीने तेमनी धर्माराधनामां सहायक बने छे. २८ - आ जातनां दान देनारा धन सार्थवाह, श्रेयांसकुमार अने मूलदेव वगेरे महानुभावो जगमां प्रसिद्ध छे अने एमनां दृष्टांतो आ प्रमाणे शास्त्रमा पण सुप्रसिद्ध छे. २९
१ मूळ गाथामां 'तमत्थाणं'छे तेनो पदच्छेद एक तो तं-तत्अत्थाणं अर्थानाम् करवो अने बीजो पदच्छेद तमस्थानाम् करवोबन्ने रीते अहीं अर्थ बतावेल छे.
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हे देवानुप्रिय ! आ प्रमाणे में तने त्रण प्रशस्त पदार्थ कया एटले मन्दिर कराव, प्रतिमानी पूजा करवी अने दान देवुं ए त्रण बात कही. तेमांनी प्रथम वात तो तें तारी मळे ज करेली छे. ३० बाकीनी बे वात जेओ श्रावकधर्ममां कुशळ बुद्धिवाळा छे तेओ करी शके छे माटे तुं श्रद्धा अने ज्ञानना साररूप एवा गृहस्थ धर्मनो स्वीकार कर. ३१
आ रीते गुरुए परमार्थवाळी वास्तविक बात कही देखाड्या पछी ते वग्गुर शेठना मनमां उत्तम विवेक उत्पन्न थयो एटले गुरुना चरणकमळने प्रणाम करीने ते कहेवा लाग्यो – हे भगवंत ! तमे मने सारो बोध आप्यो. [१०७६ ] हवे आप मने श्रावकधर्मनी समजण आपो अने शुं युक्त छे तथा शुं अयुक्त छे ते अंगे शिखामण आपो. पछी आचार्ये अनेक भेद प्रभेद रूप हजार शाखावाळो अने शुभ फळना अथवा सुखरूप फळना समूहने आपनारो एवा श्रावकधर्मरूप कल्प वृक्ष अंगे विस्तारथी समजण आपी अने ए वग्गुर सेठे सारा भाव साथै श्रावक धर्मनो स्वीकार कर्यो. त्यारथी मांडीने ए शेठ जिन भगवाननी आठ प्रकारे पूजा करवामां परायण रहे छे अने
अने ए रीते
मुनिओने दान देवामां पण चित्तने श्रावकधर्मने पाळे छे - आचरे छे. विशेष रीते धर्मपरायण थयो छे.
उजमाळ राखे छे पुत्रनो जन्म थया पछी तो ते
हवे एक वार ते शेठ धोळां कपडां पहेरीने फूल वगेरेनी समग्र
परिवार साथे श्री
एवी पूजा सामग्री साथै लईने पोताना तमाम - मल्लिजिननी प्रतिमाना पूजन माटे प्रवृत्त थयो.
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आ तरफ ते समये पुरिमताल नगर अने शकटमुख उद्याननी बच्चे प्रतिमाने स्वीकारीने ध्यानमग्न ऊभेला भगवान महावीरने ईशान इन्द्रे पोताना अवधिज्ञान द्वारा जोया. एटले ते ईशान इन्द्र करोडो देवोना परिवार साथे पांच रंगनां रत्नोथी बनेला विमानमा बेसीने ज्यां भगवंत ऊभा छे त्यां आव्यो. आवीने भगवन्तने त्रण प्रदक्षिणा दईने खुशी थतो वन्दन करवा लाग्यो. चन्दन करीने पोताना बन्ने हाथने एक बीजामा जोडीने भगवंतना चरितने गातो भगवंतना मुख तरफ नजर मांडीने उपासना करतो ऊभो छे. पेलो वग्गुर सेठ पण भगवंतने पडता मेलीने मल्लिजिनना मंदिर तरफ चाल्यो गयो । एने एम जतो जोईने ईशान इन्द्र कहेवा लाग्यो-- हे वग्गुर ! 'दूरना देवोनो साचो-सारो परचो मळे छे' आ लोक प्रसिद्ध कहेवत ते साची पाडी, केमके तुं प्रत्यक्ष एवा आ तीर्थङ्कर भगवंतने पडता मे लीने प्रतिमाने पूजवा जाय छे. तने खबर नथी लागती के, विषम भवना आवर्त-भमरीमा पडता त्रण जगतनो उद्धार करवा समर्थ धीर पुरुष एवा आ खुद भगवंत महावीर पोते जाते ज अहीं ध्यानमा ऊभा छे. पछी आ वात सांभळीने सेठने घणो पस्तावो थयो अने 'मिच्छामि दुक्कड़े' (एटले मारुं दुष्कृत मिथ्या थाओ) एम कहीने भगवंतने त्रण प्रदक्षिणा दईने वंदन करे छे अने भगवंतनो महिमा करे छे. त्यां घणा वखत सुधी शेठे भगवंतनी उपा. सना करी अने ज्यारे पेलो इन्द्र जेवी आव्यो हतो तेवो चाल्यो गयो पछी ते (शेठ) मल्लिजिनना भवनमा गयो.
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पछी जगगुरुए पण त्यांथी नीकळीने तुन्नाग नामना गाम तरफ प्रस्थान कर्यु. त्यां जतां मार्गमां वच्चे ताजा परणेला एक बीजाना हाथमा हाथ नाखीने बहूवर आवता हता. [पृ०७७] ते बन्नेनां कान टापरा - बूचाहता, आँखों बिलाडानी जेवी मांजरी हती, लटकतुं मोटुं पेट हतुं, डोक घणी लांबी हती, रूपे बन्ने काळां हतां अने शरीरनो तेमनो घाट सारो न हतो, दांत होउनी सीमाने वटावाने बेहार नीकळी गयेला लांबा हता. आ जातना जोडाने आवतुं जोईने गोशाळो खुशखुशाल थतो हसतो हसतो कहेवा लाग्यो- अहो ! मारा धर्मगुरुनी कृपाथी हुं घणाय देशोमां फर्यो कुं. आटलो व फरतां फरतां पण में आवो संजोग एटले आवुं जोडुं क्यांय पण जोयुं नथी. तो खरेखर --
विधाता भारे चीवटवाळो छे, भलेने माणसो एक बीजाथी दूर रहेतां होय छतांय जेने जे योग्य होय तेने बीजा एवा ज योग्य माणसनो मेळाप करावी दे छे. पछी ए बन्ने भले गमे त्यां रहेतां होय पण जुगतुं जोडुं विधाता जोडी ज आपे छे. १
सामे आवतां ए वरवहूने जोईने बराबर तेमनी सामे ऊभो रहीने गोशाळो आ बात वारंवार कहेवा लाग्यो अने ज्यारे ते ओम बोलतो न अटक्यो त्यारे ते बन्नेए गोशाळाने खूब पीटयो अने बांधीने वांसनी झाडीमां फेंकी दीघो. त्यां ते चत्तोपाट पड्यो अने मोटो अवाज करीने कहेवा लाग्यो के - हे स्वामी ! मारी उपेक्षा केम करो छो ? आ हुं अहीं वांसनी झाडीमां पड्यो छु, आ कष्टमांथी तमे मने सर्वप्रकारे मुकावो. ज्यारे गोशाळो वारंवार एम बोलतो हतो
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त्यारे सिद्धार्थे तेने उत्तर आप्यो-भद्र ! ते जाते ज जे काई करेल छे तेनुं फळ तुं जाते ज भोगव. ते शा माटे नकामो बराडा पाडे छे. स्वामी पण थोडे दूर जईने 'गोशाळो लांबा काळना सुख-दुःखने सरखी रीते सहन करवानो साथी छे.' एम पक्षपातनी दृष्टिए तेनी (गोशाळानी) वाट जोवा लाग्या. आ वखते ते वरवहूना जोडाए जाण्यु के आ कोई अपलखणो, आ देवार्यनो पीठवाहक एटले पाछळ फरनारो हशे अथवा छत्र धरनारो हशे माटे ज ते एनी वाट जोतो निश्चळ ऊभो छे. माटे हवे आने-गोशाळाने-पड्यो राखवो ठीक नथी एम विचारीने तेमणे गोशाळाने छोडी मेल्यो. ज्यारे गोशाळो आवीने मळ्यो त्यारे जगगुरु चालवा लाग्या. चालता चालतां तेओ गोभूमिमां पहोंच्या. त्यां चारोपाणी सुलभ होवाथी गायो चरे छे माटे ते जगानुं नाम गोभूमि छे. गोशाळाने कजियो करवामां मजा पडे छे तेथी ते [पृ०७८] त्यां गोवाळियाओने कहेवा लाग्यो-अरे म्लेच्छो ! अरे गन्दा रूपवाळाओ ! आ मार्ग क्यां जाय छे ? गोवाळिया बोल्या-अरे पाखंडी तुं शा माटे विना कारण अमने भांडे छे ! ते (गोशाळो) बोल्यो-अरे दासीना पुत्रो ! अरे पशुना पुत्रो ! जो तमे विचारशो नहीं एटले मार्ग विशे कहेशो नहीं तो हुँ तमने सारी रीते भांडीश. तमने ए शुं खोटुं का छे ? तमे एवा ज म्लेच्छ जातना छो, शुं हुं खरी वात पण न कही शकुं ? तमारी मने शी बीक छे ? आ सांभळीने खूब भारे क्रोधे भरायेला ते गोवाळियाओए भेगा थईने पाटुओ वडे, मुक्कीओ वडे अने ढेफां पाणकाओ वडे तेने मारीने बांध्यो अने वांसनी झाडीमां फेंकी दीधो. पछी
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आगळ कयुं ते ज प्रमाणे कोई मुसाफरने दया आवतां तेणे ए झाडीमाथी गोशाळकने बहार काढी छोडी मूक्यो अने त्रणजगतना गुरु गोशाळक छूटो थतां आठमुं चोमासुं करवा सारु राजगृह नगर तरफ चालवा लाग्या, त्यां तेमणे विविध अभिग्रहो साथे चार महिनाना उपवास कर्या अने ए उपवास पूरा थतां पारणा माटे बहार आहार ग्रहण कर्यो. हवे भगवानने एम लाग्यु के हजु नहीं निर्जरेलु घणुं कर्म बाकी छे. एम विचारी स्वामीए फरीवार पण सहायकोनो दाखलो लईने-सहायकोना दृष्टांतनो विचार करता पोताना कर्मनी निर्जरा माटे लाढा, वज्जभूमि अने शुद्धभूमि नामना अत्यन्त दुष्ट लोकोनी वसतिवाळा म्लेच्छदेशमां गोशाळक साथे विहार को. ते देशोमां वसता अनार्य लोकोए कदी पण धर्मनो अक्षर सांभळ्यो होतो नथी, ए लोको अनुकम्पा विनाना निर्दय, हाथमां खरडायेल लोहीवाळा अने परमाधार्मिक जमदेवनी सरखा होय छे. तेओ त्यां विहार करता भगवन्तने जोईने तेमर्नु अपमान करे छे, निन्दा करे छे, अने तथाप्रकारना बीजा उपायो द्वारा हेरान करे छे. करडाववा सारु दुष्ट एवा डाघिया कूतरा के शिकारी कूतराओने स्वामीनी सामे छोडी मेले छे. वळी,
रेचन शरीरनी खाल छोलवी, क्षारनो लेप वगेरे कष्टमय चिकित्सा करता वैद्यने जेम रोगी अभिनन्दन आपे छे, १
तेम जगन्नाथ पण घोर उपसर्ग करनारा तमाम लोकोने उपकारी बंधुनी बुद्धिथी राजो थईने सारी नजरथी जूए छे. २
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[पृ० ७९] जेणे पोतानी बाल्यावस्थामां अडधा अंगूठानां स्पर्शमात्रथी ऊंचा एवा मेरु पर्वतने कंपावेलो अने तेने लीधे आखी धरणी कंपी गई तथा ते उपरना मोटा मोटा कुलाचलो, तेमांनां तमाम प्राणीओ अने समुद्रो पण हली गया-खळभळी गया-३
एवी शक्तिवाळा अने अतुल बल-पराक्रमवाळा भगवान होवा छतांय ते जिनेन्द्रने निर्दय कर्म एक कीडानी पेठे आपदा आप्या करे छे. अहह ! ए केवं छे ? ४
वळी,
भगवाननी आपदा निवारवा माटे इन्द्रे तेमनी सेवामां सिद्धार्थने मेल्यो हतो ते पण गोशालकने जवाब आपती वखते ज चमके छे. ५
वळी बीजं-
आ त्रण भवनना रंगमंच उपर असाधारण मल्ल जेवा वीर भगवान पण जो सारी रीते प्रशांत चित्त राखीने आ प्रकारनी आपदाओ सहन करे छे, ६
तो मात्र थोडो ज अपकार कर्या छतांय एवा अपकारी लोको उपर यथार्थ भावोने जाणनारा महामुनिओ शा माटे रोष करता होय छे ? ७ ___अथवा थोडो पण घा पडतां ज माटीनू के कांकरानुं ढे' चूरेचूरा थई जाय छे अने निष्ठुर एवा लोढाना बनेला घणना घा पडवा छतांय वज्रने ते घा लागता नथी अर्थात् वज्रना चूरा थता नथी. ८ . हवे त्रिलोकना नाथ ते अनार्यभूमिओमां हेंडता-फरता-उत्तम आशयना विधानवाळु एबुं नवमुं चोमासुं आवतां-९
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वसति-रहेठाण न मळता शून्य-उजड-घरोमां अने झाडना मूळ पासे एटले झाडनी नीचे ए चोमासुं ध्यानपरायण बनीने वीतावे छे. १०
ए चोमासु पूरूं थतां स्वामी सिद्धार्थपुरमां आव्या अने त्यांथी कुम्मार गाम तरफ प्रस्थान कयु. ते सिद्धार्थपुर अने कुम्मार गामनी बेनी [पृ० ८०] वच्चे तलना खेतर पासे थई जता भगवानने गोशाळाए पछy--आ तलनो छोड़ नीपजशे के नहीं ? पछी तथाप्रकारनी भवितव्यताने लीधे जिन भगवान पोते ज बोल्याहे भद्र ! ए छोड नीपजशे पण साते पुष्पना जीवो मरीने आ ज तलना छोडनी एक तलशिंगमा सात तलरूपे उत्पन्न थशे. भगवाने कहेली आ वात उपर श्रद्धा नहीं धरावता अनार्य एवा गोशालके तलना छोड पासे जईने मूल साथे चोंटेल माटीना ढेफा साथे ए छोडने उखेडी नाख्यो अने एकांते एक कोर फेंको दीधो. आ वखते आसपास रहेनारा देवोए भगवाननुं वचन साचं पाडवा वादळांनी रचना करी, पाणी वरस्युं अने ए तलनो छोड जीवतो थयो, हवे ते तरफ जती आवती गायोनी खरी वडे चंपातो ए छोड पाणीथी पोची थयेल जमीनमां चोंटो गयो अने धीरे धीरे तेना मूळ मजबूत रीते जामी गयां, एने अंकुरो आव्यां-खील्यां-अने ते फुलवा लाग्यो.
वळी भगवान कुम्मारगाम नामना नगरे पहोंच्या, ते नगरनी बहार सूर्यमंडळ उपर नजरने स्थिर करीने, बन्ने हाथ रूप परिघ (परिव ऐटले बारणुं बंधकर्या पछी पाछल भीडवानी
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भोगळ) ऊंचा करीने माथे.लांबो मोटो जटावाळो, स्वभावे विनयी, शांत, दया दाक्षिण्य गुगथी युक्त, सत् धर्मध्याननो बिधिने शरू करनार एटले धर्मध्यानमा रहेलो एवो वेसियायग नामनो लौकिक तपस्वी खरे बोरे आतापना लेतो हतो. अहीं तेनी उत्पत्तिनो वृत्तांत कहेवामां आवे छे..
मगध देशमां धनधान्यथो समृद्ध अने लोकमां प्रसिद्ध अवा आभीरलोकोनां गोब्बर नामे गाममां ते गामनो अधिपति गोसंखी नामे कणबो रहेतो हतो. बंधुमती तेनी स्त्री निस्संतान हती. ते बन्ने परस्पर दृढ स्नेहवाळा होई विषय सुखने अनुभवता वखत वीतावता हता. आ तरफ ते गामनी पासे खेडय नामे गाम, ते गाममां बख्तर पहेरीने सज्ज थयेला, अनेक हथियार साथे राखनारा अवा म्लेच्छोनी धाड पडी. धाडे ए गामना रखेवाळोने मारी [पृ०८१] धनधान्य कांसु अने कपडां वगेरे बधुं गाममाथी लूंटी लीधुं, हाथमां हथियार राखनारा गामना सुभटो-चोकीदारोने मारी नाख्या. पछी बानमा लोकने पकडीने ए धाड पोताने स्थाने गई. तेमां गामनी एक बाइने बराबर ते वखते ज प्रसव थयो, तेना पतिने धाडवाळाए मारी नाख्यो अने हाथमां जन्मेला बाळ कवाळी ए बाई 'सुन्दर' छे एम करीने धाडना चोरोए साथे चलावी-लीधी. तेनी पासे हाथमां बाळक होवाथी ते जलदी जलदी साथे चाली शकती न होती. तेथी रोषे भरायेला चोरोए का-हे भद्रे ! जो तारे जीवतुं रहेq होय तो आ बाळकने छोडी दे. आ सांभळीने तेने मरणनी भारे बीक लागवाथी वृक्षनी छायामां तेणीए बाळकने छोडी दीधो अने ते
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चोरोनी साथे चाली नीकळी. हवे ते गोसंखी कणबी सवारना पहोरमा पोताना गोरुओने-बळद वगेरेने लइने ते जग्याए आव्यो, वृक्षनी छायामां पडेलो, संपूर्ण अङ्ग उपांगवाळो, रूपनी शोभावाळो, खोड़ खांपण वगरना आखा शरीरवाळो ते बाळक तेना जोवामां आव्यो. तेणे ते बाळकने त्यांथी लई लीधो अने पोतानो स्त्रीने सोंप्यो अने कडं के हे प्रिये ! तु अपुत्र छे माटे तने आ पुत्ररूप थशे. तेने सारी रीते साचवजे. सवारना पहोरमां ए कणबीए जाहेर कयु के मारी स्त्री गूढ गर्भवाळी हती, तेने हमणां ज प्रसव थयो अने पुत्रनो जन्म थयो. ए माटे ज-ए वातनी साबीती माटे ज बकराने मारी बधे लोहीनी गंध फेलावी दीधी अने ए बाईने सुवावडीनां कपडां पहेरावीने त्यां बेसाडी. वधामणुं थयु, स्वजनवर्गनो आदर सत्कार थयो. ए वात लोकोमां फेलाई गई, छठीनु जागरण, चन्द्रसूर्यनु दर्शन वगैरे संस्कारनां कृत्य थयां. योग्य वखते तेनु नाम वेसियायण राख्यु. काळक्रमे ते जुवान थयो. पेली तेनी माताने चोरोए चंपा नगरीमा लई जई वेचवा माटे राजरस्ता उपर उभी राखी. ए सुन्दर हती माटे एकवृद्ध वेश्याए तेने खरीदी तेने गणिकानी बधी विद्याओ शिखवी दीधी. वळी,
[पृ०८२]ए स्त्री सुरसुन्दरी करतां विशिष्ट रूप सौभाग्य अने उत्तम लावण्यवाळी हती, सुरतना-कामक्रीडाना विविध प्रकारोमां कुशळ तथा गीत अने नृत्यमां विचक्षण हती. १ ' उपचार करवो, बोलवू, बीजाना चित्तने समजी लेवू अने समयने अनुकूळ केवी केवी चेष्टाओ करवी ते बधामां ते कुशळ हा अने ए रीते ते स्त्रीनी ए नगरीमा ख्याति फेलाई. २
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पहेलांतो ते दर्शनमात्रथी ज-पोतानी जातने देखाडवा मात्रथी ज माणसने विक्षिप्त-चंचळ.करी नाखती. तो पछी उत्कृष्ट शृङ्गारना कपडामां ते सज्ज थयेली सुन्दर देखाती होय त्यारे तो तेनी वळी शी वात ! एटले एवी अवस्थामां तो माणसने लुब्ध करी ज नाखे. ३ . हवे आ तरफ ते वेसियायण धन कमावा माटे विविध प्रकाग्नु वणज वेपार करवा लाग्यो. अकवार ते घोनू-घीना डबानुं गाडं भरीने मित्रोनी साथे चम्पा नगरीए गयो. ते वखते ते नगरीमां कोई महोत्सव चालतो हतो. नगरना लोको उत्तम घरेणांगाठां पहेरी शरीरने शणगारी उत्तम पट्टण-नगरमां बनेलां चीरांशुक वगेरे कपडां पहेरी ओढी पोतानी इन्छा प्रमाणे स्वच्छन्दे-तरभेटाओमां, चोकोमां अने रासडा लेवानी जग्याओमां स्त्रीओ साथे विलास करता हता. आ रीते मोज करता नगरना लोकोने जोई वेसियायणने विचार थयो के, अहो ! आ लोको आम केवी मोज माणे छे, हुं पण आ प्रमाणे शा माटे मोज न माणुं ? मारी पासे पण केटलंक मोजमाणी शकुं एटलुं धन तो छे. ए धनने साचवी राखीने-राखी मूकीने-शु कर, छे ! धर्मस्थानमां दानमां अने भोगोपभोगमां धनने वापर ए ज तेनुं फळ छे अने ए रीते धन वपराय तो ज ते वखाणवा जोग छे. कहेवामां आवे छे के ----
दान, भोग अने नाश ए त्रण गति धननी छे अर्थात् ए त्रण रस्ते धन जनाई छे. जे दान देतो नथी, तेम भोगवतो नथी तेना धननी त्रीजी गति एटले नाश थई जाय छे. १
भाग्य योगे कोई पण रीते वभव सांपड्यो छतां य जे भोगववा इच्छतो नथी अने दान पण देतो नथी ते धनपालक मूरख छे. २
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एम विचार करीने वेसियायणे पग शणगार सज्यो, उत्तम कपडां पहेा. जोणु-नाटक-नाच जोवा गयो. त्यां ए टोळामां घणी वेश्याओ आवेली. तेमां तेनी ते ज पूर्वमाता-पहेलांनी माता-तेना जोवामां [पृ०८३]आवी. तेने जोईने वेसियायणनो तेना उपर अनुराग थयो. तेना शरीरमा कामदेव पांच बाणवाळो छतांय केम जाणे हजार बाणवाळो होय ए रीते उद्भव्यो. तांबूल देवा साथे तेने घरेणुं आप्यु. शरीर उपर धनसार मिश्रित चन्दनरसनो लेप करी केशपाशमां फूलनी माळा पहेरी हाथमां तांबूल- बीडुं राखी रातने वखते ते वेसियायण पेलीना घर तरफ उपड्यो. आ वखते वेसियायणनी कुळदेवीए विचार कर्यो केअहो! खरी हकीकतने नहीं जाणतो आ विचारो अकाज करवा तरफ वळ्यो छे माटे तेने साची वातनी समज पाडु, एम विचारीने तेणी (कुलदेवी) रस्ता वच्चे ज वाछडा साथे गायन रूप धरीने-बनावीने ते बेटी. हवे पेली वेश्याने त्यां उतावळे उतावळे जता वेसियायणनो पग गन्दी वस्तुमां पडयो अने बगडयो. तेने शंका थइ के मारो पग जरूर गन्दी वस्तुमां पड़वाथी बगडयो छे. त्यां पगने साफ करवा माटे तेने बीजं तो कांई मळ्यु नहों तेथी तेणे ते गन्दा पगने ते गायनी पासे ज बेठेला वाछडानी पीठ साथे लछवा मांडयो
के तरत ज मनुष्यनी भाषामां ते वाछडो गायने कहेवा लान्यो-हे माता! आने जो तो खरी ? ए केवो कशी शंका राख्या वगर मारा शरीर उपर--१
गन्दकीथी खरडायेला पोताना पगने लूछे छे. पण पोते धर्म
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व्यवहारने तो छोडीने गन्दो थयेलो छे. एनो तो विचार करतो नथी. शुं कोई पण माणस आ रीते गायना वाछडार्नु कदी पण अपमान करे खरो ? २
आ सांभळी गाय बोले छे के-हे पुत्र ! तुं जरा पण उतावळो था मा, कंई पण अधैर्य न कर. आ माणस धर्मविरुद्ध व्यवहार करी रह्यो छे एटले ए धर्मथी बहार छे. ३
__ पछी वाछडो बोल्यो-एम केम ? गाय बोली, हे पुत्र ! केटलं कहे ? आ अनार्य माणस ते छे जे पोतानी मातानी साथे पण सहवासने इच्छे छे ४.
माटे हे बच्चा ! आ बधुं ज तुं सहन कर, तुं धन्य छे के तेणे आटलं ज करीने तने छोडी दीधो. जे लोको पोताना धमनी मर्यादाने छोडी दे छे तेओ कयुं अकारज करता नथी ? ५
पृ०८४] ज्यां सुधी माणसमां लाज मर्यादा होय छे, त्यां सुधी ज तत्त्वनी रुचि टके छे, त्यां सुधी ज धर्म कर्मनो संबंध टके छे, त्यां सुधी ज लोकापवादनो भय लागे छे. ६
तमाम गुणोनी माता रूप लाजशरम-मर्यादा ज्यां सुधी नाश नथी पामी त्यां सुधी ज बधुं ठीकठीक चाले छे अने ज्यां ए लाज-- मर्यादा पग कोई पण रीते नाश पामो गई छे त्यां तमाम कुशळ कार्यनी चेष्टा पण नाश पामी जाय छे-टकती नथी. ७ ____ आ प्रमाणे पोताना वाछड़ानी सामे खास अभिप्राय साथे वचनोने बोलतो गायने जोईने उतावळे जता वेसियायणना मनमा एकदम शंका पड़ी अने ते विचारवा लाग्यो-अहो पहेलुं तो आ
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अचरज छे के आ तियंच-पशु छतां मनुष्यनी भाषामां वात करे छे. तेमां पण हुं मारी मातानी साथ सहवास माटे जाउं छं एवं मने दूषण बतावे छे. आ वात केम बनी शके ? कयां मारी माता ! कयां हुं ? आ स्थितिमां सहवास पण केवो ? आ बधी वात तद्दन कोई रीते घटती आवती नथी-बंधबेसती लागती नथी अथवा आ अंगे कोई कारण जरूर होवू जोईए.विधातानी चेष्टाओ विलक्षण देखाय छे अने आ बधुं संभवे पण खरं. माटे हवे ते वेश्या स्त्रीने ज जईने पूछीश. 'उत्थान जाणवू छे'-बनेली वातनो आगळ पाछळनो वृत्तांत जाणवो छे एम विचारीने ते तेणीने घरे गयो. एणीए उभी थइने एनो आदर कर्यो, बेसवाने आसन अपाव्युं अथवा बेसवाने आसन बताव्यु, तेना पग पखाळ्या. थोड़ीबार परस्पर आड़ीअकळी वातो थइ. हवे प्रसंग जोईने वेसियायणे तेणीने पूछ्यु हे भद्र ! तुं कयां जन्मेल छ ? तारी उत्पत्तिनो वृत्तांत तो कहे. तेणी हसती हसती बोली-ज्यां आटला बधा जन्मे छे त्यां हुँ पण जन्मी छं. वेसियायण बोल्यो-मश्करीनुं काम नथी. हुं खास कारण छे माटे पूर्छ छं. तेणी बोली-तुं मुग्ध-अणसमजु छे केमके पुरुषनी, राजानी, ऋषिना कुलनी, उत्तम स्त्रीनी तथा लक्ष्मीनी जातनी उत्पत्ति पूछाय नहीं. जो पूछवामां आवे तो पूछनारनी कुशलता केम रहे अर्थात् पूछनारो दुःखी थाय. १
कादवमांथी कमळ थाय छे, समुद्रमांथी चन्द्र थाय छे, छाणमांथी इंदीवर-विशेष प्रकार- कमळ थाय छ, अरणीना लाकडामाथी अग्नि थाय छे, सनी फण उपर मणि थाय छे, गायना पित्तथी
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गोरोचना थाय छे, कृमि नामना कीडाओमांथी रेशम थाय छे, पत्थरमांथी सोनु थाय छे अने गायना रुवाडामांथी धरो थाय छे. ए बधा गुणवाला पदार्थो पोताना गुणने लीधे ख्याति पामे छे. एना जन्मना कारणथी नहीं. माटे जन्मनी वात पूछीने शुं काम छे ? २ ।
पृ०८५] माटे तारे आ बाबत पूछीने शुं काम छे ? एम कहीने एणी हावभाव साथे स्त्रीनो विभ्रम देखाडवा लागी. त्यारे वेसियायणे का- तने बीजं पण एटलं ज मूल्य-किंमत आपीश जो तुं मने साची वात कहीश. आम कहोने देसियायणे तेने आकरा मोटामां मोटा सोगन आप्या, तुं जरापण खोटुं बोलीश नहीं एम पण का. आम कह्या पछी एणीए जेवी बात बनेल हती तेवी ज बराबर मूळथी मांडीने बधी वात कही. ते जातनी वात सांभळीने वेसियायणना मनमा शंका पडी के जो वळी आ स्त्रीए जेने वृक्षनी छायामां छोडी दीधो हतो-- पडतो मूक्यो हतो-ते हुं ज होउं ? आम होय तो गायनी वाणी पण बराबर घटी जाय, अने आम विचारीने पेली वेश्याने बमणुं धन आपीने ते, वेश्याने घेरथी पाछो फर्यो अने वळता रस्तामां ज्यां जतां जंतां गाय अने वाछडो जोयां हतां त्यां गाय के वाछडानी तपास करी. पण तेना जोवामां तो कांई ज न आव्यु. एटले ते वेसियायणे जाण्यु के खरेखर कोई खास देवे गाय-वाछडान रूप करी आम बात करीने अकारजमां पडतो मने बचावी लीधो छे अर्थात् अकारज आचरतो मने अटकावी दीधो छे. हवे ते वेसियायण गाडं लईने पोताने गाम गयो अने प्रसंग मळतां पोतानी उत्पत्तिनी वात विशे मातापिताने
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पूछवा लाग्यो. मातापिता बोल्यां--हे पुत्र ! तुं अमारी कूखेथी ज जन्मेलो छे, अन्यथा विकल्प न कर । एवो कोण होय के पारकाना छोरुओने-बालकोने पाळे ? पछी तो वेसियायण खूब आग्रह करी करीने पूछवा लाग्यो अने ज्यां सुधी खरो जवाब न मळे त्यां सुधौ खाधापीधा विना ज रहेवानुं नक्की कयु. त्यारे तेओए जे वात खरी हती ते बधी पहेलेथी ठेठ सुधी कही संभळावी. हवे वेसियायणना मनमां निश्चय थयो के ते(वेश्या) मारी माता ज हती. फरी पाछो चंपानगरीमा त्यां वेश्यानी पासे गयो अने तेणे बधी वात गणिकाने कही संभळावी. साथे एम पण का के जे रीते पोते तेनो पुत्र हतो अने तेने वृक्षनी छायामां छोडी देवामां आग्यो हतो वगेरे. पछी ते वेश्याने आ वात सांभळीने पोतानो आगलो बधो वृत्तान्त याद आवी गयो अने पतिना विरहना दुःखने लीधे पोते अकारजनी आवी प्रवृत्तिमां पडी गई अने पोताना छोकरा साथे कहेलां वचन संभारतां ते वीली पडो गई-झंखवाई गई-शरमाई गई अने आ बवू सांभळतां तेणीने भारे आघात लाग्यो. एटले पोताना ओढवाना वस्त्रवडे मोढुं ढांकीने लांबा पोकार पाडीने रोवा लागी तथा भारे विलाप करवा लागी. केवी रीते ?
हे पापी विधाता ! हे निर्दय विधाता ! हे बेशरम विधाता ! हे अनार्य विधाता ! हे लाजशरम-लाजमर्यादा वगरना विधाता ! तारा सिवाय बीजो एवो कोण छे जे आवा विडम्बनाना प्रपंचोने जाणे ?.१
- [पृ०८६]हे विधाता ! उत्तमकुलमा जन्मेलीने मने तें कुलीनस्त्रीना धमने मलिन करनारा अने आलोक अने परलोकमां दुष्ट एवा वेश्याना भावमा धकेली दीधी-बनावो धो. २
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वळी हे विधाता ! तेमांय आटलं ज करीने न अटक्यो पण मारा छोकराना सहवासमां पण तें मने धकेली दीधी. हाय ! हाय ! आ तो भारे अकारज थयु. आवो घटना तो क्यांय शास्त्रोमां पण संभळाती नथी. ३
__ जो मने पहेलां चोरोए पकडी त्यारे ज मारी नाखी होत तो शुं आ आQ असत्य छतां छुपाववा जेवू मारे आजे जोवू पडत ? ४
हवे शुं हुं मारो जातने कूचे पडीने छोडो दउं-मरी फीटुं अथवा वृक्ष उपर लटकीने गळे फांसी खाईने छोडी दउं ? चालता श्वासने अटकावीने जलदी छोड़ी दउं ? ५
आ रीतना मेरुपर्वत जेवा अतिशय भारे आ दुःखमांथी मुज पापणीनो हवे खरेखर हमणां बचाव थशे खरो ? ६
आ प्रमाणे असह्य दुःखरूप करवतथी ऊंडी वेराती-कपाती मनोवृत्तिवाळी ते घगा वखत सुधी रोक्कल-विलाप करीने आंखो मींचीने मूर्छामां पडी. ७
पोतानी माताने आ रीते मूर्छित थयेली जोईने वेसियायणे तेणीना उपर ठंडं पाणी छांटचं, कपडाना छेडावडे पवन नाल्यो अने पासे रहेलो दासीओ द्वारा तेना हाथ पग शरीर बधुं चंपाव्यु. आम केमे करीने तेणी भानमा आवी एटले वेसियायणे तेणीने कह्यु के-हे माता ! हवे शा माटे दुःखनो भार धारण करे छे ? आमां तारो शो अपराध छे-दोष छे ? आ विधाता ज एवो छे के जेओ स्वच्छन्दे जोडायेलां नयी तेमने जोडे छे अने जोडायेलाने विखूटां पाडे छे अने एम करवामां ज तेने रस पडे छे. खरी रीते तो अहीं ए विधातानो ज
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अपराध-दोष छे. ए विधाता विविध जातना संविधानना-पात्रना पहेरवेशोद्वारा नटनी जेम परवश पडेला मनुष्यने विविध रीते नडे छे-नचावे छे, अत्यन्त विरुद्ध एवां पण काम करावे छे, अगम्य -- ज्यां जवा जेवू नथी तेनी साथे पण संगम संपडावे छे, माटे तुं संताप करवो मूकी दे, धैर्य धारण कर अने जे आवी पड्युं छे तेने सहन करी ले. तेणी बोली-पुत्र ! आ नहीं सहो शकाय एवं अने खूब छुपाववा जेवु दुःख आवी पड्युं छे. आ बनावने संभारं छं तो जीवq कठण बनो जाय छे. वजनी गांठ जेवू कठोर हृदय करीने ज जीq छु. [पृ०८७]मुज अभागणीनु ए सिवाय बीजी रीते जीववानुं कोई कारण नथी.हे वत्स! हवे तो कोई ऊँचा वृक्षनी शाखा उपर लटकी जईने एटले गळे फांसो खाईने अथवा एवी बीजी पण कोई रीते पोताना कुलने कलंकित बनेल एवा मारा जीवननो अंत करवानी मारी वांछा छे, माटे तुं मने रजा आप, हवे मारे माटे तुं ज पूछवा योग्य छो. वेसियायणे का-हे माता ! आवा नठारा विचार करवानी जरूर न थी. ज्यारे तने हुँ अहींथी वेश्याना हाथमाथी छोडावं त्यारे तप अने नियमो वडे तुं शरण वगरना तारा आत्मानी साधना करजे, मृत्यु आव्या विना अकाळे आपघात करवो ए पण एक दोष-पाप छे एम आपणा मतना शास्त्रोमां कहेल छे. एम कहीने अने तेणीने बराबर स्थिर करीने घणुं धन आपीने वेश्यानी पासेथी तेणे पोतानी माताने छोडावी दीधी. पछी तेणीने पोताने गाम लई गयो, जीवन दान आप्युं अने तेणीने धर्मना मार्गमां स्थिर करी.
हवे एक वार आज बनाव अंगे विचार करतां करतां तेने पण वैराग्य आयो अने ते विचार करवा लाग्यो
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जेमां तीव्र जनापवादरूप प्राणीनो प्रवाह छे अने तेथी ज जे न तरी शकाय एवो छे तथा जेमां दुर्गतिरूप मगर तथा मृत्यु रूप माछलां छे तथा जेनो मध्यभाग भारे भयंकर छे एवा आ संसार समुद्रनो स्वभाव बराबर समज्या पछी पण प्राणीओ पोताना घरमां सुखे केम रही शके छे ? १.
मोहना प्रभावने ली जेमनां विवेकनां नेत्रो ढंकाई गयां छे एवा ए प्राणीओ एटलं पण जाणता नथी के शुं आजे सुखं थवानुं छे के दुःख थवानुं छे के कांई उचित थवानुं छे के अनुचित थवानुं छे ! तथा आ संसार सेववा जेवो छे के बीजुं कांई सेववा जें छे ए पण तेओ जाणता नथी. २.
ते वखते जो पेली गाये मारा ष्टानी हकीकत न कही होत तो हुं अने पछी धगधगता अग्निमां पडवा
माता संबन्धी संभोगनी दुश्चेतेवुं अकार्य जरूर करी बेसत पण खरेखर शुद्धि न थात. ३. [१०८८] आवी बधी जे विविध विटंबणाओ मने ऊभी थई तेनुं मूळ एक कारण तो भोगतो अभिलाष छे एम हुं समजुं छं. माटे हवे वा घृणास्पद भोगना अभिलाषने पडतो मेलुं अने तमाम जातनी उपाधि वगरना धर्मनुं आचरण करुं. ४
एम निश्चय करीने पोताना पिता गोसंखने अने माताने बहु प्रकारे समजावीने ए वेसियायणे प्राणामा नामनी तापसी प्रव्रज्यानो स्वीकार कर्यो. प्राणामा प्रवज्या स्वीकार्या पछी ते विविध प्रकारना १ प्राणीमात्रने - जे सामुं मळे ते तमाम मनुष्य पशु वगेरेने प्रणाम - करता रहेवु ए प्राणामा प्रत्रज्यानो मुख्य सिद्धांत छे.
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विशेष विशेष तप करतो रहे छे, पोताना मतनां धर्मशात्रोनो अभ्यास करे छे, प्राणीओनी रक्षा करे छे अने पोताना गुरुनी सेवा करे छे. एम करता करतां ते भणीगणीने पोताना धर्ममार्गमां कुशळ थई गयो. हवे एक वार ते वेसियायण विहार करतो करतो कुम्मारगामनी बहार रह्यो अने त्यां आतापना लेवा लाग्यो. आ रोते वेसियायणनी उत्पत्तिनो वृत्तांत छे. ____ आतापना लेता ते वेसियायगनी जटाना जूडामाथी बपोरना सूर्यना प्रचण्ड तापथी संताप पामेलो जूओ जमीन उपर पडवा लागी. जीवो तरफ दयाभावने लीधे ते वेसियायण जूओने पडतां ज पोताने हाथे उपाडीने पाछी जटाना मुगटमां-जटाना जूडामां मूकी दे छे. हवे आ तरफ ते बाजु भगवान महावीरनी साथे चालता गोशाळाए तेने जोईने पोताना अटकचाळा स्वभावने लीधे तेनी पासे आवीने मोटो अवाज करीने काभो ! भो ! शुं तमे मुनि छो के मुणिया छो ? अथवा जूओने रहेवा माटे शय्या-घर छो? स्त्री छो ? पुरुष छो ? बराबर खबर नथी पडती के तमे कोण छो ? अहो ! तमारुं आ गम्भीर रूप जाणवामां नथी आवतुं. गोशाळाए आम कह्या पछी ते वेसियायण क्षमाशील होवाथी कांई बोल्यो नहीं पण ज्यारे ते दुर्विनयरसिक-तोफान करवामां रस धरावतो गोशाळो एम बोलतो न अटक्यो अने त्रण त्रण वार फरी फरीने एम ज पूछवा लाग्यो त्यारे ते वेसियायणने क्रोध आवतां भभूकी उठ्यो----अर्थात् ते वेसियायण प्रशमशोलशरीरी-परम शीतळ प्रकृतिवाळो
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हतो तो पण गोशाळाना आवां दुष्ट वचनोथी ते मथाई गयो - वींधाई गयो अने चन्दन शीतळ छे पग तेने अतिशय घसतां जेम मांथी ताप पेदा थाय छे तेम तेनो को रूप अग्नि भभूकी उठ्यो . १
पछी तो भारे ज्वालाना - भडकाना पसाराने लीधे ठेठ आकाश सुधी व्यापेली एवी तेजोलेश्या तेणे गोशाळाने बाळवा माटे तेना उपर छोडी मूकी, २.
[पृ० ८९] बराबर आ ज वखते गोशाळा उपर छोडेली ते तेजोलेश्याने एकदम ओलवी नाखवा माटे पूरी समर्थ एवीगोशाळानी रक्षा माटे सामे शीतलेश्या श्रीजिन भगवाने छोड़ी. ३.
हवे ते शीतलेश्या पेली तेजोलेश्यानी आसपास बहार वीटाइ वळी तेथी ते तेजोलेश्या तरत ज जेम हिमनो वरसाद आवतां अग्निना अंगारा ठरी जाय- - शांत थई जाय तेम ओलबाई गई -ठरी गई - शांत थई गई. ४
आम बन्युं त्यारे त्रण लाकना प्रभुनी आवी असाधारण संपत - प्रभावशक्ति जोईने पेलो वेसियायण विनयनम्र बनी प्रभु पासे आवां वचनो बोलीने क्षमा मागवा लाग्यो. ५.
हे भगवन् ! मने एवी खबर न इती के आ दुःशील तमारो शिष्य हशे पण हवे हमणां ज आ बातनी खबर पडी माटे हमणां थयेला मारा अपराधनी क्षमा करो. ६.
आ रीते बोलता वेसियायणने जोईने गोशाळाए भगवंतने क-हे भगवंत ! आ जूनो शय्यातर वर उन्मत्तनी पेठे शुं बकी रह्यो छे ? भगवाने कह्युं - ज्यारे तुं मारी पासेथी खसीने तेनी पासे
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जईने एम बोलवा लाग्यो के शु तुं मुनि छे के मुणियो छे ? इत्यादि त्यारे ते तपस्वीए पेली वार तो तारुं कठोरवचन सहन कयु अने शांत रह्यो पग पछो ज्यारे तुं वारंवार एg ने एq कठोर वचन बोलतो रह्यो त्यारे तेणे तने बाळीने भस्म करी नाखवा माटे तारा उपर तेजोलेश्या छोडी. तेगे छोडेली ए तेजोलेश्या भारे उग्र, महा प्रभावाळी अने पाणी वगेरे ठंडी वस्तुओ पडतां पण न ओलवी शकाय एवी--आघात न पामे एवी भारे शक्तिवाळी हती. छोडेलो ते तेजोलेश्या हजु तारा शरीरना भागने थोडी पण अड़ी न हती
अटलामां में तेना सामथ्यने अटकाववा माटे बच्चे ज चन्द्र जेवी अने हिम जेवी खूब शोतळ एवो शोतलेश्या छोडी. ए शीतलेश्याना प्रभावने लीधे तारुं शरीर जरा पण दायुं नहीं अने जेवू छे तेवू ज बराबर जोईने तेनो कोपनो विकार शांत थई गयो अने ते वेसियायण तापस मने उद्देशीने एम कहेवा लाग्यो के, हे भगवंत ! मने खबर नहीं के आ तमारो शिष्य हो तो तमे आ मारो दुर्विनय क्षमा करो. आ बधी वात सांभळीने गोशाळो भयने लीधे बेबाकळो थई गयो अने भक्तिपूर्वक भगवंतने प्रणाम करीने कहेवा लाग्यो-हे भगवंत ! आवी तेजोलेश्यानी लब्धि केम करीने थाय ? भगवान बोल्या-हे गोशाला ! [पृ० ९०]जे मनुष्य निरन्तर-लागलागट छ छठनुं तप करी साथे आतापना ले अने पारणाने दिवसे नख साथे वाळेली मूठीमां माय तेटला लूखा उडदनी मात्र एवी एक मूठी आहार ले तथा एक चळु पाणी
१ छ टंक न खावानुं व्रत छठ कहेवाय छे-पहेलां एक टंक भोजन छोडवू पछी उपराउपर चार टंक भोजन छोडवू अने पारणाने दिवसे पण एक टंक भोजन छोडवू आर्नु नाम छठतप.
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पीए अने आ रीते छ महिना सुधी बराबर लागलागट करतो रहे तेने विपुल एवी तेजोलेश्यानी लब्धि सांपडे. भगवंते कहेलं आ तेजो. लेश्या पामवानुं विधान गोशाळाए बराबर ध्यानमा राख्यु. हवे एकवार स्वामीए कुम्मारगाम नगरमाथी सिद्धार्थपुर तरफ प्रस्थान कयु अने जेनी वात पहेलां आवी गई छे एवा तलना छोड़वाळी जग्या पासे पहोंच्या त्यारे गोशाळाए भगवंतने पूछयुहे भगवंत : मानुंछ के पेलो तलनो छोड़ उपज्यो नथी लागतो. भगवान बोल्या-भद्र ! एम न बोल, ते उपज्यो ज छे अने अमुक जम्यामां छे. एम भगवाने कह्या पछो गोशाळाने भगवानना वचनमां श्रद्धा न बेठी तेथी त्यां जे जग्या भगवंते बतावेली त्यां जईने एकांतमां उगेला ए तलना छोडनी तलनी सोंग पोताने हाथे फोडोने तेमांना एक एक तलने गणतो गणतो एम कहवा लाग्यो के-खरेखर तमाम जीवो आ रीते फरी फरीने पाछा वारंवार त्यां ज पोताना शरीरमां उत्पन्न थाय छे. ए प्रमाणे आ तलना छोड उपरथी गोशालाए एक सिद्धान्त स्थापित कर्यो तेनुं नाम पउट्टपरिहार-प्रवृत्तपरिहार प्रवृत्ति करवी एटले जन्म धरवो अने जन्म धरीने तेनो पछी परिहार करवो अने पाळु त्यां ज जन्मg अथवा पउपट्टपरिहार-प्रवृत्तपरिधार एटले जन्मधरवो अने पछी पण एनो ए ज जन्म घरवो. एवा पउपरिहाररूप नियतिवाद नामना सिद्धातनुं गोशाळाए सारी रीते अवलंबन कयु.. हवे ते कोईवार तेजोलेश्या शक्तिने साधवा माटे भगवानने छोडीने
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सावत्थी नगरीमा गयो, त्यां कुंभारनी शालामां-घरमा रह्यो अने लागलागट छ महिना उग्र तपकर्म कर्यु, तेम करवाथी तेने तेजोलेश्या सेद्ध थई. परीक्षा करवा माटे तेणे कूवाकांठ रहेली एक दासीनुं रीर बाळी नाख्यु पछी तेने निश्चय थई गयो के मने तेजोलेश्याती लब्धि मळी गई. ए रीते तेनुं मन प्रमोदथी भराइ गयुं अने निरंतर कुतूहळोने अवलोकवानी प्रबळ इच्छावाळो ते एकलो एकलो गामोमां अने आगरोमां-खाणोवाळा प्रदेशोंमां भमवा लाग्यो. _हवे एकवार एवं बन्युं के श्रीपार्श्वनाथ जिनना केटलाक शेष्यो धर्मनी प्रवृत्तिमां ढीला पड़ी गयेला हता अने अष्टांगनिमित्त शास्त्रना भारे जाणकार हता. १
तेओ कुतूहलने लीधे निरंकुशपणे स्वच्छंदे गामोमां अने आगरोमां भमता भमता गोशाळकने भेटी गया अने तेमनी साथे परस्पर वातचीत पण थई. २
ते ढीला पडो गयेला श्रमणाए गोशाळाने पोते जाणेला निमित्त शास्त्रनो मात्र लेश-थोड़ो भाग कही बताव्यो एटले गोशाळो पण मनुष्यनां भूत भविष्य वगेरेने कहेतो खीलवा लाग्यो. ३
पृ०९१] जे माणस प्रकृतिथीज उच्छंखल होय तेने काई कोण कही शके अने एवा प्रकृतिथी उदंड-कजीयाखोर-उच्छृखल अने
१ श्रावस्ती नगरीनो उल्लेख बौद्धग्रन्थोमां वारंवार आवे छे. वर्तमानमां ते सहेत महेत नामे दरभंगा पासे छे.
___२ अष्टांग निमित्त एटळे स्वरशास्त्र, सामुद्रिकशास्त्र, भूमिशास्त्र, खगोलशास्त्र, ज्योतिषशास्त्र, शुकनशास्त्र, वृष्टिशास्त्र अने उत्पातशास्त्र
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पाप परायण माणसनी पासे जो कोई चमत्कारी शक्ति आवी जाय तो पछी शुं कहेवू ? अर्थात् एवा माणसथी तो सौ कोई भय खाई जाय एटले तेने तो कोई कशु ज कहीं न शके. ४..
जेम राहुथी छूटो थयेलो चन्द्र शोभे छे तेम ते गोशाळा वगरना एकला मोह विनाना भगवान पण अधिक शोभावाळा थईने पृथ्वी उपर विहार करवा लाग्या. ५.
आ प्रमाणे अनुपम संजमनो घणो मोटो भार वहेवामां एकअसाधारण-धीर धवल-गोपुंगव जेवा अने जगतना गुरु एवा भगवान वीरना त्रण जगतमां प्रसिद्धि पामेला चरित्र संबन्ध-६.
बहु अनर्थ-हानि-दुःखो उपजावनार अने विनय विनाना गोशालकनी कथा साथे संबन्ध धरावनार आ छट्ठो प्रस्ताव सविस्तर पूरो थाय छे. ७ आ प्रमाणे गोशालकनी दुविनयवाळी कथा साथे
संबन्ध धरावनार
छठो प्रस्ताव
समाप्त
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