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________________ खातां ज ताळवं फाटी जाय एवं तालपुट विष खाईने पोतानो नाश करवो उत्तम छे पण मद्यपाननी अवस्थामां थोडीवार पंण पोतानी जातने स्थापित नहीं करवी जोईए. २ ए कारणथी सारा सारा लोको पण ए जातना खराब मद्यपानने दूर ज मूकी राखे छे तथा वेद अने पुराणोमां मद्यनो निषेध ज करवामां आवेल छे. एमां कहेल छे के- ३ ___ गौडी, पैष्टी अने माधवी एम त्रण जातनी मदिरा समजवी घटे. जेम एक मदिरा खराब छे तेम बधी ज मदिरा खराब छे माटे उत्तम ब्राह्मणो तो एवी कनिष्ठ मदिराने पीता ज नथी. ४ तथा-- आ लोकोने पातकी गणवामां आव्या छे-स्त्री अने पुरुषनो घात करनार, कन्याने दूषित करनार अने मद्यप-दारुडियो-आ चार उपरांत पाँचमो जे तेमने साथ आपे छे तेने समजवो ५ तथा--- जे मनुष्य मोह-मूढताने लीधे दारु-सुरा पीने अग्निथी तपावेल लालचोळ सुरा पीए अर्थात् पछी प्रायश्चित माटे अग्निना वर्ण जेवी लालचोळ तपावेल सुरा पीए, तेम करतां तेनुं शरीर बळी गया पछी ते पापथी मुकाय खरो ? ६ जेना शरीरमा रहेल ब्रह्म-ब्राह्मणपणुं मद्यने लोधे एकवार प्लावित थाय छे–पलळी जाय छे तेनी ब्राह्मणता नाश पामे छे अंने ते शूद्र बनी जाय छे. ७ माटे हे देवानुप्रियो ! कदाचित् पण मद्य पीq योग्य नथी. तेमां य जे लोको स्वर्गना अने अपवर्ग-मोक्षना• सुखना इच्छुक छे तेमणे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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