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________________ ९६ a. बधो य वखत मद्यने अडवुं ज न जोईए अर्थात् तेवा लोकोए कदी पण मद्यनो स्पर्श सरखो पण न करवो जोईए. ८ जेम उत्तम लोको मद्यने खरेखर अपेय गणे छे तेम मांस पण अभक्ष्य ज छे. ए मांसभक्षण उत्तम ध्याननो नाश करे छे, आर्त, रौद्र ध्यान तेनाथी बधे छे, संपातिम-उड़कणा जीवोनो संहार - विनाश थई जाय छे, मांसमां कृमियो, बीना जीवो पेदा थाय छे अने तमाम परिस्थितिमां मांसमां जीवो आव्या ज करे छे, [ ४०५८] मांसभक्षणथी रसो तरफ विशेष लालच पेदा थवा लागे छे, ए पारधी शिकारीना कामनुं कारण छे, मोटा मोटा रोगो अने असाध्य व्याधियोनुं निमित्त छे. जोनाराओनी आँखने बीभत्स लागे छे, दुर्गतिनो मोटो मार्ग छे शुभानुबंधी शुभानुभावने तो जलांजलि ज देवी पडे छे - एवं ए मांसभक्षण छे. आवुं तमाम दोषोना भंडाररूप ए मांसभक्षण छे एम समजी कयो डाह्यो माणस एना माटे मनथी पण अभिलाषा राखे ? वळी, काळजीपूर्वक वर्ती बीजाने पीडा न करवी ए वात धर्ममां प्रशंसनीय छे. जे लोको मांसभक्षी छे, तेमने माटे आकाशकमल - कुसुमनी पेठे ए प्रशंसनीय वात असंभवित छे. १ जे मनुष्यो आ असार शरीरना पोषण माटे मांसभक्षण करे छे, से लोको परभवोमां आवनारा तीक्ष्ण दुःखोने लक्ष्यमां राखता नथीगणता नथी. २ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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