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________________ ९७ . मोहने लीधे अभा थयेला--ऊभा करवामां आवेला तुच्छ सुख माटे कोण खरेखर डाह्यो माणस असंख्य भवोनी परम्परा सुधी भोगववी पडे एवी दुःखनी हारमाळा तरफ प्रवृत्त थाय ? ३ लोकशास्त्रोमां पण बहु प्रकारे वारंवार कहीने मांसभक्षणनो स्पष्ट निषेध करेल छे. तेमां ए अंगे जो अहीं अविरुद्ध वात कहेल छे ते आ छ-----४ ___मांस हिंसाने वधारनारुं छे, अधर्मने पण वधारनारुं छे तथा दुःखने पेदा करनारुं छे माटे कोईए पण मांसने न खावू जोईए. ५ पोताना मांसने जे मनुष्य बीजाना मांस द्वारा वधारवा इच्छे छे ते गमे त्यां जन्मे पण तेने हमेशां रहेठाण-जनमवानुं स्थान उद्वेगवाळु ज मळे छे. ६ जे दीक्षित होय, वा ब्रह्मचारी होय अने एवी दशामां मांस खाय ते अधर्मी अने पापी पुरुषार्थवालो स्पष्टरीते नरके ज जाय छे. ७ जे विनो-ब्राह्मणो-आकाशगामी हता ते मांसभक्षणने लीधे नीचे पड़ी गया छे तेथी-आ रीते ब्राह्मणोनुं अधःपतन जोईने मांस खावू न जोईए. ८ पृ०५९] वीर्य अने लोहीमांथी पेदा थयेला मांसने जे मनुष्य खाय छे अने खाधा पछी पाणीथी नहाईने पवित्र थवानो दावो करे छे, ते जोईने देवो तेनी हांसी करे छे. ९ हे भारत ! त्रण लोकमां जेटलां तीर्थो छे ते बधामां नहायार्नु पुण्य जे मनुष्य मांस नथी खातो तेने मळे छे अथवा जे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.004873
Book TitleMahavira Charit
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBechardas Doshi
PublisherPrakrit Vidya Mandal Ahmedabad
Publication Year1966
Total Pages154
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati, History, & Story
File Size6 MB
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