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मनुष्य नथी खातो ते त्रण लोकमां जे जे तीर्थों छे तेमां नहाया बरोबर छे. १०
हे मानव ! जे माणस मांस खाय छे तेनी शुद्धि अग्निथी थती नथी, सूर्यथी थती नथी अने पाणीथी पण थती नथी, हे युधिष्ठिर ! एम धर्म कहे छे. ११
जे मनुष्य साधु संन्यासीनो वेष पहेरे छे, तेमनां निशानो राखे छे, माथुं मुंडावे छे, मोढुं मुंडावे छे ते बधुं ज तेनुं नकामुं छे ज्यां सुधी ते, मांस खाय छे अथवा साधु-संन्यासीनां निशानो राखवां, तेमनो वेष पहेरवो, माधुं मुंडाववुं के मोढुं मुंडाववुं - जे माणस मांस खाय छे तेने माटे - ए बधुं ज नकामुं छे. १२
जेम वननो हाथी निर्मळ पाणीना दरियामां न्हायो तो खरो पछी पाछो शरीर उपर धूळ नाखीने मेलुं करे छे तेथी तेनुं न्हावुं नकामुँ छे तेमज मांस खानारनुं तीर्थस्नान वगेरे बधुं ज नकामुं छे. १३
हे युधिष्ठिर ! प्रभास, पुष्कर, गंगा, कुरुक्षेत्र, सरस्वती, देविका, चन्द्रभागा, सिंधु मोटी नदी, १४
मलया नदी, यमुना - जमना नैमिषतीर्थ कौशिक तीर्थ अने लौहित्य महानद - १५
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ए बधां मोटां प्रभाववाळां तीर्थोमां स्नान करो एनुं जे पुण्य थाय, अने जे माणस मांसभक्षण न करे एनुं जे पुण्य थाय तो, हे युधिष्ठिर ! ए बे सरखां नथी पण मांस न खावानुं पुण्य चडी जाय छे. १६
तथा गया, सरयू,
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